शिशुपाल वध हिंदी में
महाभारत केवल युद्ध की गाथा नहीं है, यह धर्म और अधर्म के संघर्ष की जीवंत व्याख्या है। इसी महाकाव्य का एक अत्यंत रोचक प्रसंग है – शिशुपाल वध (Shishupal Vadh in Hindi)। यह केवल एक शत्रु का अंत नहीं, बल्कि अहंकार, अपराध और धर्म के अपमान की सीमाओं को दर्शाने वाली लीला है। इस कथा में भगवान श्रीकृष्ण ने धैर्य, करुणा और अंततः न्याय का परिचय दिया।
शिशुपालवधम् (Shishupal Vadh in Hindi) महाकाव्य की रचना लगभग 8वीं शताब्दी ईस्वी में महाकवि माघ द्वारा कहा गया है। इसमें कुल 20 सर्ग (अध्याय) और लगभग 1,800+ श्लोक है। यह महाभारत के राजसूय यज्ञ प्रसंग पर आधारित महाकाव्य है। महाकवि माघ ने इसे कालिदास के उपमा सौंदर्य, भारवि के अर्थगौरव, और दण्डी के पदलालित्य का सम्मिलित रूप माना है — इसीलिए कहा जाता है:
“उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम्।
दण्डिनः पदलालित्यं माघे सन्निहितं त्रयम्॥”
इस महाकाव्य का 19वाँ सर्ग विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जिसमें एक ही वर्ण से शुरू होने वाले अनेक श्लोकों की रचना की गई है। यह काव्य शब्दकला की पराकाष्ठा माना जाता है। इस काव्य के माध्यम से न केवल शिशुपाल के अहंकार का पतन दर्शाया गया है, बल्कि यह भी स्पष्ट किया गया है कि ईश्वर बार-बार अधर्म को सहन करते हैं, लेकिन जब वह धर्म की सीमा को लांघता है – तो न्याय और विनाश निश्चित हो जाता है।
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शिशुपाल छेदी राज्य का राजा था और श्रीकृष्ण का चचेरा भाई भी। जन्म के समय उसके शरीर में तीन आँखें और चार हाथ थे, जिससे सब डर गए। तभी एक आकाशवाणी हुई कि जो व्यक्ति उसे गोद में लेकर उसके हाथ और आंख सामान्य कर देगा, वही एक दिन उसका वध करेगा। जैसे ही श्रीकृष्ण ने उसे गोद में उठाया, वह सामान्य हो गया। तभी कृष्ण की बुआ (शिशुपाल की माता) ने उनसे वचन लिया कि वे उसके 100 अपराधों को क्षमा करेंगे।
शिशुपाल अत्यंत घमंडी और द्वेषपूर्ण था। वह कृष्ण से द्वेष रखता था क्योंकि रुक्मिणी ने शिशुपाल को ठुकरा कर श्रीकृष्ण से विवाह कर लिया था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण को “श्रेष्ठ पुरुष” कहकर अग्रपूजा दी गई, जिससे शिशुपाल अपमानित हुआ।
उसने सभा में कृष्ण को ग्वाला, चोर और नीच वंश का कहकर अपमानित किया। श्रीकृष्ण ने धैर्य रखते हुए उसके 100 अपशब्दों को सहा। जब शिशुपाल ने 101वीं बार श्रीकृष्ण का घोर अपमान किया, तब कृष्ण ने सभा में ही सुदर्शन चक्र चलाकर उसका वध कर दिया। मृत्यु के बाद शिशुपाल की आत्मा श्रीकृष्ण में विलीन हो गई, क्योंकि वह निरंतर उन्हीं का स्मरण करता था – भले ही द्वेष भाव से।
शिशुपालवधम् (Shishupal Vadh in Hindi) महाकाव्य में श्रीकृष्ण द्वारा शिशुपाल का वधकी किया गया है। इस घटना को केवल एक धार्मिक कथा ही नहीं, बल्कि संस्कृत साहित्य के श्रेष्ठतम काव्यों में भी स्थान मिला है। संस्कृत के पंचमहाकाव्यों में एक है – “शिशुपालवधम्”, जिसकी रचना महाकवि माघ ने की थी। यह काव्य न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि अलंकार, छंद, शब्दशक्ति और काव्यकला की चरम सीमा का परिचायक भी है।
“शिशुपाल वध (Shishupal Vadh in Hindi)” केवल महाभारत की एक घटना नहीं है — यह कला, भाषा, न्याय और ईश्वरीय मर्यादा का संगम है। इसका साहित्यिक स्वरूप शिशुपालवधम् हमें यह भी बताता है कि भारत का प्राचीन काव्य कितना उत्कृष्ट, विचारशील और कलात्मक था।
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