Shloka of the Day
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ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
भावार्थ:
वह (अद:) परब्रह्म पुरुषोत्तम परमात्मा सभी प्रकार से पूर्ण है।
यह जगत भी पूर्ण है, क्योंकि यह पूर्ण उस पूर्ण पुरुषोत्तम से ही उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार परब्रह्म की पूर्णता से जगत पूर्ण होने पर भी वह परब्रह्म परिपूर्ण है। उस पूर्ण में से पूर्ण को निकाल देने पर भी वह पूर्ण ही शेष रहता है।
यह मंत्र बताता है कि परमात्मा पूर्ण है और यह जगत भी उसी से उत्पन्न होकर पूर्ण है। पूर्ण से पूर्ण का उदय होता है, फिर भी उसमें कोई कमी नहीं आती, क्योंकि ब्रह्म अनंत और अविभाज्य है। इसका संदेश यह है कि ईश्वर से निकली हर सृष्टि उसी की पूर्णता का अंश है, इसलिए जीवन में अभाव और अधूरापन का भाव छोड़कर हमें यह देखना चाहिए कि हम पहले से ही पूर्णता का ही हिस्सा हैं। यही दृष्टि हमें संतोष, शांति और आत्मज्ञान की ओर ले जाती है।
Source: बृहदारण्यक उपनिषद