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गायत्री मंत्र साधना व उपासना हिंदी में

गायत्री मंत्र (Gayatri Mantra Sadhana) एक ऋग्वेदिक मंत्र है। यह मंत्र उतना ही प्राचीन है, जितना ऋग्वेद। ऋग्वेद के काल निर्धारण के संबंध में विद्वानों में मतभेद है। परंतु नक्षत्र विषयक सूचनाओं तथा अन्य तथ्यात्मक सामग्री के आधार पर ऋग्वेद का काल कम से कम ईस्वी सन् से अनुमानतः 4000 हजार वर्ष पूर्व माना जाता है। इसलिए गायत्री मंत्र विगत 6000 हजार वर्षों से अपने उपासकों की रक्षा करता आ रहा है। ऋग्वेद संहिता के तृतीय मंडल के ‘अनेक देवता सूक्त’ (सूक्त संख्या 62) की ऋचा 10 में सवितृ देवता से बुद्धि को प्रेरणा देने की प्रार्थना करने वाला एक मंत्र है, जिसे ‘गायत्री मंत्र’ कहा जाता है। यह मंत्र इस प्रकार है-
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्यधीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

गायत्री मंत्र ही ऐसा है, जिसका विधान शास्त्रों ने चारों आश्रमों के लिए किया है। इस तरह यह ब्रह्मचारी को विद्या देता है, गृहस्थ को धन-समृद्धि व ऐश्वर्य, वानप्रस्थी को इष्ट के प्रति अथाह निष्ठा तथा विवेक और संन्यासी को अध्यात्म ज्ञान। यह एक ऐसा कल्पवृक्ष है, जिसका आश्रय लेने वाले की समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

गायत्री मंत्र (Gayatri Mantra Sadhana) का जाप यदि शुद्ध चित्त होकर निरंतर किया जाए तो जापक रोग-ग्रसित नहीं होता और उसके कष्ट भी दूर होते हैं। गायत्री मंत्र मनुष्य को नवजीवन प्रदान करने वाली एक प्रार्थना है। रामायण में भगवान श्री रामचंद्रजी ने लक्ष्मण से और महाभारत में भीष्म पितामह ने कौरव और पांडवों से गायत्री मंत्र की महिमा का गान किया है और श्रीकृष्ण ने तो यहां तक कह दिया कि मंत्रों में मैं ही गायत्री मंत्र हूं।

सभी मंत्रों में गायत्री मंत्र का स्थान सर्वोच्च है। देवी गायत्री वेदजननी, पापनाशिनी है। तभी तो, ब्रह्मयज्ञ में दस बार गायत्री मंत्र जप लेने से ही वेदाधिकार प्राप्त हो जाता है, जिससे उपनयन संस्कार संपन्न होता है। यह कहना भी अत्युक्ति नहीं होगी कि यदि मातृवत् रक्षा करने वाली कोई देवी है तो वो गायत्री ही है।

गायत्री को सभी वेदों तथा उपनिषदों का सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कूर्म पुराण में कहा गया हे की-
‘गायत्री चैव वेदांश्च तुलया समतोलयत्।
वेदा एकत्र सांगस्तु गायत्री चैकतः स्मृता ॥’
अर्थात्: गायत्री और सांगवेद दोनों को तराजू से तौलने पर गायत्री को ही श्रेष्ठता सिद्ध है।

गायत्री मंत्र (Gayatri Mantra Sadhana) के जप से मनुष्य का लोक तथा परलोक सुखमय व्यतीत होता है। गायत्री के संबंध में जितना भी लिखा जाए वह थोड़ा है। इसका विस्तृत वर्णन वेद, पुराण तथा स्मृति-ग्रंथों में विद्यमान है। इस पोस्ट में हमने गायत्री मंत्र की साधना एवं गायत्री उपासना के साथ-साथ गायत्री से संबंधित सभी विषयों को सविस्तार दिया गया है। वेद माता गायत्री में निष्ठा रखने वाले श्रद्धावान भक्तों के लिए यह सामग्री उपयोगी होगी।

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