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यथार्थ गीता हिंदी में

”यथार्थ गीता” (Yatharth Gita hindi) के लेखक एक संत हैं, जो शैक्षिक पदवी होने पर भी सद्गुरु कृपा के फलस्वरूप ईश्वरीय आदेशों से संचालित हैं। लेखन को आप साधना-भजन में व्यवधान मानते रहे हैं, किन्तु भगवद गीता के इस भाष्य में निर्देशन ही निमित्त बना है। भाष्य में कभी भी दोष होता हे, वहा भगवान सुधार देते थे।

‘पूज्य श्री परमहंस जी महाराज भी उसी स्तर के संत थे। पूज्य श्री परमहंसजी की वाणी तथा अन्तः प्रेरणा से भगवद गीता का जो अर्थ मिलता हे, उसी का संग्रह ‘यथार्थ गीता’ है। विश्व धर्म संसद में विश्व मानव धर्मशास्त्र “श्रीमद भगवद्गीता” के भाष्य यथार्थ गीता पर परमपूज्य परमहंस स्वामी श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज जी को प्रयाग के परमपावन पर्व महाकुम्भ के अवसर पर विश्वगुरु की उपाधि से विभूषित किया.

मानवमात्र का धर्मशास्त्र “श्रीमद भगवद्गीता” की विशुध्द व्याख्या यथार्थ गीता के लिए धर्मसंसद द्वारा हरिद्वार में महाकुम्ब के अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में परमपूज्य स्वामी श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज को भारत गौरव के सम्मान से विभूषित किया गया.

 

(Yatharth Gita hindi) परिचय:-

यथार्थ गीता (Yatharth Gita hindi) स्वामी अड़गड़ानंद जी द्वारा लिखी गई है, और 1994 में मुंबई के परमहंस ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित की गई है । यथार्थ गीता में 388 पेज में उपलब्ध हैं। यथार्थ गीता के पाठकों की सुविधा के लिए सरल भाषा में व्यक्त किया है। यथार्थ गीता को पढ़कर आप भगवद गीता के महत्व को समझ आसान हो सकते हैं।

भारत की सर्वोच्च श्री काशी विद्वतपरिषद ने दिनांक 1-3-2004 में  “ श्रीमद् भगवद् गीता”,  मनुस्मृति तथा वेदों  आदि को विश्वमानव का धर्मशास्त्र और यथार्थ गीता को परिभाषा के रूप में स्वीकार किया और यह उद्घोषित किया कि धर्म और धर्मशास्त्र अपरिवर्तनशील होने से आदिकाल से धर्मशास्त्र “श्रीमद् भगवद् गीता” ही रही है।

यथार्थ गीता की सूचि में संशय विषाद योग, कर्म पात्रता, शत्रुविनाश प्रेरणा, यज्ञकर्म स्पष्टीकरण, यज्ञभोक्ता महापुरुष महेश्वर, प्रयोगयोग, समग्र जानकारी, अक्षर ब्रह्मयोग, राजविद्या जाग्रति, विभूति विवरण, भक्तियोग, क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग, गुणत्रय विभाग योग, पुरुषोत्तम योग, दैवासुर सम्पद विभाग योग, सन्यास योग का विशेष वर्णन किया गया है। यह यथार्थ गीता का महत्वपूर्ण अंश माना गया है।

 

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