गायत्री रहस्यम हिंदी में
“गायत्री रहस्यम (Gayatri Rahasyam)” एक अद्भुत और अलौकिक ग्रंथ है, जो गायत्री मंत्र की वैदिक गहराई, आध्यात्मिक स्वरूप, और साधना की गोपनीयता को विस्तार से प्रकट करता है। यह केवल पुस्तक नहीं, अपितु उन साधकों के लिए एक प्रकाशपथ है, जो आत्मज्ञान, आत्मबल और ब्रह्मचेतना की ओर अग्रसर होना चाहते हैं।
गायत्री कोई साधारण मंत्र नहीं, अपितु स्वयं विष्णु, शिव और ब्रह्मा का ब्रह्मस्वरूप है। यही कारण है कि इस मंत्र को मंत्रों का राजा, वैदिक उपासना की आत्मा और वेदों की जननी कहा गया है। भगवद्गीता में स्वयं श्रीकृष्ण कहते हैं – “छन्दसामहम् गायत्री।” अर्थात, छंदों में मैं स्वयं गायत्री हूँ। इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि गायत्री मंत्र ईश्वर का साक्षात स्वरूप है।
वेदों में तथा पुराणों में अनेक उपासनाओं का वर्णन मिलता है परन्तु उन सभी उपासनाओं में गायत्री की उपासना का विशेष महत्त्व कहा गया है। गायत्री की उपासना “वैदिक उपासना”(Gayatri Rahasyam) कही जाती है यह गायत्री मन्त्र “वैदिक मन्त्र” है इसीलिये इसको ‘ब्रह्म-गायत्री’ भी कहा जाता है। ब्रह्मस्वरूप वेदों की माता होने के कारण भी इसको ‘ब्रह्म गायत्री’ कहते हैं। नित्य, नैमित्तिक और काम्य कर्म की सिद्धि के लिये गायत्री मन्त्र से बढ़कर और कोई मन्त्र नहीं है। समस्त त्रैर्वाणकों के लिये गायत्री ही परमगति है। त्रैर्वाणकों के अन्य कर्मों के करने में असमर्थ होने पर भी वे गायत्री से ही परमगति को प्राप्त कर लेते हैं।
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गायत्री ही परम तत्व है, और गायत्री ही मोक्ष का मार्ग। कलियुग में जब जप, तप, यज्ञ कठिन हो गया है, तब गायत्री उपासना ही वह सुगम साधना है जो आम जन को भी परम लाभ देती है। यह भक्त के दुःखों का नाश करती है, बुद्धि को निर्मल बनाती है, आत्मशक्ति को जाग्रत करती है, और समस्त प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करती है।
गायत्री(Gayatri Rahasyam) केवल एक मंत्र नहीं, बल्कि ब्रह्म की साक्षात चेतना है। यह मंत्र वेदों की जननी, ऋषियों की उपास्या, और साधकों के जीवन की दिव्य शक्ति है। “गायत्री रहस्यम” जैसी पुस्तकें हमें उस अदृश्य वैदिक ज्ञान से जोड़ती हैं, जो आज के युग में भी उतना ही प्रासंगिक और प्रभावशाली है।
यह ग्रंथ न केवल गायत्री के रहस्यों को उद्घाटित करता है, बल्कि यह बताता है कि कैसे एक सामान्य मनुष्य भी इस मंत्र की साधना से आत्मशक्ति, विवेक और परमगति को प्राप्त कर सकता है। यदि आपने अब तक गायत्री को केवल एक मंत्र समझा है — तो इस पुस्तक के माध्यम से आप गायत्री को ब्रह्म, शक्ति और साक्षात प्रकाश के रूप में अनुभव करेंगे।
अब समय है कि हम भी इस ब्रह्मरूप माता की शरण में जाकर अपने जीवन को दिव्य ऊर्जा से भर दें।
“ॐ भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥”
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