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श्री कालिका पुराण प्रथम भाग हिंदी में

कालिका पुराण (Kalika Puran) एक महत्वपूर्ण हिन्दू धर्मग्रंथ है जो देवी कालिका (मां काली) की उपासना, तांत्रिक विधियाँ और शक्ति साधना का विशेष वर्णन करता है। मार्कण्डेय पुराण की भाँति इसमें भी देवी के माहात्म्य की चर्चा विस्तार से की गयी है। इस पुराण के प्रमुख वक्ता मार्कण्डेय मुनि हैं। इस पुराण में कई कथाओं का रूप परम्परा से पायी जानेवाली कथाओं से हटकर है।

इसे 18 उपपुराणों में से एक माना जाता है और यह मुख्य रूप से शक्ति सम्प्रदाय का पुराण है। इसमें देवी कालिका की महिमा, उनकी उत्पत्ति, स्वरूप, लीलाओं, और पूजा विधियों का विस्तार से वर्णन है। यह पुराण भारत के पूर्वी हिस्सों में, विशेषकर असम में लोकप्रिय है और कामाख्या देवी मंदिर से भी संबंधित माना जाता है।

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कालिका पुराण (Kalika Puran) देवी पुराणों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कालिका पुराण में प्रमुखता से तांत्रिक साधना, यज्ञ, व्रत, पूजा, और देवी काली, भगवान शिव, कामाख्या देवी तथा अन्य देवी-देवताओं के स्वरूपों, उनकी शक्तियों, और महात्म्य का वर्णन है। इसमें देवी की पूजा में विशेष तांत्रिक विधियों और बलिदान की भी चर्चा की गई है, जो इसे अन्य पुराणों से अलग बनाती है।

महापुराणों में शक्ति से संबंधित महापुराण हो या न हो, उपपुराणों में कालिका पुराण अवश्य ही एक महत्वपूर्ण शाक्त उपपुराण है। यह पुराण देवी महात्म्य का वर्णन करता है और इसे देवी भागवत का हिस्सा माना जाता है। देवी भागवत महापुराण के पांचवें स्कंद को कालिका पुराण कहा जाता है। इस पुराण के दो मुख्य नाम हैं: (1) कालिका पुराण (2) काली पुराण।

कालिका पुराण में वर्तमान में 90 अध्याय हैं। पाठ के पहले भाग में देवी के चरित्र का प्रभुत्व है, जबकि दूसरे भाग में कामाख्या महात्म्य के साथ तांत्रिक पूजा का प्रभुत्व है। पूर्वार्ध में तपस्या का प्रभुत्व है जबकि उत्तरार्ध में पूजा और त्याग का बोलबाला है। इसी आधार पर कुछ विद्वान 45 अध्याय तक के कालिका पुराण को मूल पुराण तथा उत्तरार्ध को प्रक्षेपित खण्ड मानते हैं।

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कालिका पुराण (Kalika Puran) के वर्तमान मंगलाचरण में विष्णु की प्रार्थना, ब्रह्मा से रुष्ट शिव को मनाने के लिए विष्णु द्वारा शिव को समझाने के दृश्य विष्णु समर्थकों द्वारा दर्शाए गए हैं, परंतु संपूर्ण पुराण शिव और उनके परिवार का ही चरित्र चित्रण है। पाठ के पहले भाग में देवी-देवताओं का वर्णन और दूसरे भाग में उनसे जुड़े अनुष्ठान भी एक-दूसरे के पूरक हैं। अत: उपरोक्त आधारों पर कालिका पुराण के दो रूपों की उपस्थिति मानना ​​उचित प्रतीत नहीं होता।

कालिका पुराण विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत, खासकर असम में लोकप्रिय है, जहाँ कामाख्या मंदिर स्थित है। यह ग्रंथ उन साधकों और उपासकों के लिए मार्गदर्शन का स्रोत है जो तांत्रिक साधना करते हैं और शक्ति (दुर्गा, काली आदि) की उपासना में रुचि रखते हैं।

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