loader image

मीमांसा दर्शन (शास्त्र) हिंदी में

वेद तथा वैदिक धर्म के ऊपर जब बहुत आक्षेप हुआ उस समय मीमांसा दर्शन (Mimansa Darshan in Hindi) की रचना हुई। मीमांसा दर्शन में मुख्य विषय धर्म है। इस दर्शन के अनुसार “यतोऽभ्युदयनिःश्रेयसः सिद्धिः स धर्मः” अर्थात् जिससे इस लोक तथा परलोक में कल्याण की प्राप्ति हो उसी को धर्म कहते है। मीमांसा वैदिक व्याख्या की एक प्रणाली है। उनकी दार्शनिक चर्चाएं वेद (वेदः) के ब्राह्मणवादी या अनुष्ठानिक भाग पर एक प्रकार की आलोचनात्मक टिप्पणी के समान थीं। वह वेदों का शाब्दिक अर्थ करते हैं। पूर्व मीमांसा का केंद्रीय विषय कर्मकांड है।

यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ मीमांसा दर्शन अंग्रेजी में

मीमांसा दर्शन के मुख्य विषय ‘धर्म’ को जानने के लिए तथा वेदार्थ विचार के लिए है। वेद तो ज्ञान स्वरूप है, अतः वेद के अर्थ का विचार करने वाला मीमांसा शास्त्र भी दर्शन शास्त्र कहा जा जाता है। चूंकि धर्म के सम्बन्ध में विचार कायिक, वाचिक तथा मानसिक सभी प्रकार से आवश्यक है।

मीमांसा दर्शन के अनुसार तीन प्रकार से प्रपंच अर्थात् संसार मनुष्य को बन्धन में डालता है। भोगायतन शरीर, भोगसाधन इन्द्रियां तथा शब्द, स्पर्श, रूप आदि भोग्य विषय इन तीनों के द्वारा मनुष्य सुख तथा दुःख के विषय का साक्षात् अनुभव करता हुआ अनादिकाल से बन्धन में पड़ा रहता है। इन्हीं तीनों का आत्यन्तिक नाश होने से ही मुक्ति मिलती है। इसे ही मोक्ष कहा गया है। मोक्षावस्था में जीव में न सुख है न आनन्द है और न ज्ञान ही है, अर्थात् ‘तस्मात् निःसम्बन्धो निरानन्दश्च मोक्षः।

यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ सनातन धर्म में कितने शास्त्र-षड्दर्शन हैं।

मीमांसा दर्शन (शास्त्र) (Mimansa Darshan in Hindi) के द्वारा अन्तःकरण की शुद्धि हो सकती है अर्थात् मीमांसा दर्शन आध्यात्मिक चिन्तन के लिए भूमिका तैयार करता है। इसलिए भी इसे दर्शन कहने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। मीमांसा अर्थात् धर्म या वेद के अर्थ का विचार। यह पूर्व मीमांसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें ज्ञान का विचार करने के पूर्व कर्मकाण्ड तथा धर्म का विचार होता है। इसके बाद ही वेदान्त में कहे गए आत्मा के सम्बन्ध में साधक समझ सकता है। अतः मीमांसा को पूर्व मीमांसा और वेदान्त को उत्तर मीमांसा कहा गया है।

मीमांसा दर्शन (Mimansa Darshan in Hindi) का चरम ध्येय स्वर्ग प्राप्ति है। यह लौकिक दृष्टिकोण की चरम स्थिति है क्योंकि साधारण लोग स्वर्ग को ही परम पद समझते है। मीमांसा के 12 विषय है। ये है, धर्म-जिज्ञासा, कर्म-भेद, श्रेयत्व, प्रयोज्य-प्रयोजक भाव, कर्मों में कर्म, अधिकार सामान्य, विशेष, अतिदर्श, ओह, बाध, तंत्र तथा आवाब। इन सब का यज्ञ तथा वेद के मंत्रों से सम्बन्ध है।

यह भी पढ़े

चार वेद की संपूर्ण जानकारी

108-उपनिषद हिंदी में

शिव पंचाक्षर स्तोत्र

महाकाल लोक उज्जैन

श्री सत्यनाराण व्रत कथा

विष्णुपुराण हिंदी में

अंत्यकर्म श्राद्ध हिंदी में

Share

Related Books

Share
Share