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श्री नर्मदा पुराण हिंन्दी में

भारत की संस्कृति और परंपरा में नदियों को सदैव माता और देवी स्वरूपा माना गया है। जिस प्रकार गंगा, यमुना और सरस्वती का वर्णन वेद-पुराणों में मिलता है, उसी प्रकार मध्य भारत की जीवनदायिनी नर्मदा नदी का महत्व भी असाधारण है। नर्मदा को रेवा और शक्तिरूपिणी भी कहा जाता है। यह नदी केवल भौगोलिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत पूजनीय है। इसकी महिमा का विशेष वर्णन जिस ग्रंथ में मिलता है, वह है – नर्मदा पुराण (Narmada Puran in Hindi)।

नर्मदा पुराण अठारह महापुराणों में शामिल नहीं है, बल्कि इसे उपपुराण या स्थलपुराण कहा जाता है। इसका स्वरूप अपेक्षाकृत संक्षिप्त होते हुए भी यह असंख्य भक्तों के लिए श्रद्धा और भक्ति का आधार है। इसमें नर्मदा नदी की उत्पत्ति की पौराणिक कथाएँ, उसके तट पर स्थित पवित्र तीर्थस्थल, नर्मदा परिक्रमा की विधि और महत्व, तथा नर्मदा स्नान-दर्शन से मिलने वाले पुण्य का विस्तृत वर्णन किया गया है।

नर्मदा नदी के बारे में कहा जाता है कि “गंगा स्नान से जो पुण्य मिलता है, वही पुण्य नर्मदा के दर्शन से ही प्राप्त हो जाता है। यही कारण है कि नर्मदा को पापमोचनी और मोक्षदायिनी कहा गया है। गंगा में स्नान करने की जो महिमा है, वही महिमा नर्मदा के दर्शन मात्र में निहित मानी गई है।

नर्मदा पुराण की विशेषता यह है कि यह केवल धार्मिक उपदेशों का संकलन नहीं, बल्कि जीवन जीने का मार्ग भी प्रस्तुत करता है। इसमें वर्णित नर्मदा परिक्रमा साधक को धैर्य, संयम और आत्मशुद्धि का मार्ग दिखाती है। परिक्रमा करने वाले यात्री न केवल पवित्र स्थलों का दर्शन करते हैं, बल्कि अपने भीतर एक नई ऊर्जा और आध्यात्मिक अनुभूति का संचार भी अनुभव करते हैं।

यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ उचित समय पर सही पाठ करें

नर्मदा पुराण (Narmada Puran in Hindi) अठारह महापुराणों में से नहीं है, बल्कि इसे उपपुराण और स्थलपुराण की श्रेणी में रखा जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य नर्मदा नदी की महिमा, उत्पत्ति, तीर्थस्थलों और परिक्रमा का वर्णन करना है। यह ग्रंथ हमें यह बताता है कि नर्मदा केवल एक भौगोलिक नदी नहीं, बल्कि दैवीय शक्ति का साक्षात् स्वरूप है।

नर्मदा पुराण (Narmada Puran in Hindi) में बताया गया है कि नर्मदा भगवान शिव की तपस्या और उनके आंसुओं से प्रकट हुई हैं। इसलिए नर्मदा को शिवपुत्री और माता कहा जाता है। गंगा स्नान से जो पुण्य मिलता है, वही पुण्य नर्मदा के दर्शन मात्र से प्राप्त होता है। यही कारण है कि नर्मदा को पापमोचनी और मोक्षदायिनी कहा जाता है। अमरकंटक (नर्मदा का उद्गम), ओंकारेश्वर (ज्योतिर्लिंग), महेश्वर, मंडलेश्वर और भरुच जैसे स्थलों की पवित्रता का उल्लेख नर्मदा पुराण में विस्तार से मिलता है।

इस ग्रंथ में नर्मदा परिक्रमा की विधि, नियम और महत्व का विस्तृत वर्णन है। परिक्रमा का अर्थ है नदी के एक तट से चलते हुए समुद्र तक पहुँचना और दूसरे तट से लौटकर पुनः उद्गम तक पहुँचना। इसे करने से जन्म-जन्मांतर के पाप समाप्त हो जाते हैं। नर्मदा पुराण केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक साधना का मार्ग भी दिखाता है। नर्मदा तट पर ध्यान, जप और परिक्रमा साधक के जीवन को शुद्ध और शांत बनाते हैं।

नर्मदा पुराण (Narmada Puran in Hindi) न केवल नर्मदा नदी की महिमा का वर्णन करता है, बल्कि इसमें कई महत्वपूर्ण आध्यात्मिक और धार्मिक संदेश भी निहित हैं। इसे समझना साधक और तीर्थयात्रियों दोनों के लिए लाभकारी है। नर्मदा पुराण यह भी स्पष्ट करता है कि साधक यदि नर्मदा तट पर धर्म, भक्ति और साधना के मार्ग पर चलता है, तो वह जीवन के सभी पापों और बाधाओं से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।

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