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व्रत परिचय हिंदी में

व्रत (Vrata Parichaya) को किसी न किसी रूप में सभी धर्मो ने अपनाया है। हिन्दू सनातन धर्म में व्रत को धर्म का साधन माना गया है। समस्त संसार के प्राणी सुख की प्राप्ति और दुःख से छुटकारा पाना चाहता है। मानव जाती को अवगत कराने के लिये ऋषिमुनियों ने वेद, पुराण , मनुस्मृति आदि में मानव जाती का कल्याण करने के लिए अनेक व्रत के बारे में कहा गया है। समस्त धर्मो में व्रत और उपवास को श्रेष्ठ माना गया है।

सभी व्रतों का व्यवहार समझने के लिए समय निश्चित किया गया है। व्रतों में सत्य और अहिंसा का समय आजीवन बताया गया हे, इस तरह अन्य सभी व्रतों के लिए व्रतों के समय निर्धारित किया गया है। धर्म ग्रंथो में महाव्रत का समाप्ति समय सोलह वर्षों को कहा गया है। पंचमहाभूतव्रत, संतानाष्टमीव्रत, शक्रव्रत और शीलावाप्तिव्रत का एक वर्ष का समय बताया गया है।

 

व्रत परिचय:-

व्रत (Vrata Parichaya) सर्वप्रथम वेद द्वारा निर्धारित अग्नि की उपासना रूपी होता है। सभी देशो के सभी धर्मो में व्रत का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। व्रत करने से अन्तरात्मा शुद्ध होने के साथ-साथ भक्ति, श्रद्धा, पवित्रता और बुद्धि की वृद्धि होती है। विद्वानों के अनुसार नियमित व्रत और उपवास करने से दीर्ध जीवन प्राप्त होता है।

वाराह पुराण के अनुसार अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और सरलताको मानसिक व्रत; एकभुक्त, नक्तव्रत, निराहारादिको कायिक व्रत तथा मौन एवं हित, मित, सत्य, मृदु भाषण को वाचिक व्रत कहा गया है।

 

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