Mahishasura Mardini Stotram
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र (Mahishasura Mardini Stotram): बुराई से मुक्ति और जीवन में समृद्धि की कुंजी
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र(Mahishasura Mardini Stotram), देवी दुर्गा की शक्ति और उनके महिषासुर के वध की कथा का गान करने वाला एक अत्यंत प्रसिद्ध स्तोत्र है। यह स्तोत्र खासतौर पर नवरात्रि के दौरान श्रद्धालुओं द्वारा बड़े श्रद्धा भाव से पढ़ा जाता है, क्योंकि यह देवी दुर्गा की अवतारिक महिमा और उनके शौर्य को प्रकट करता है। महिषासुर मर्दिनी का अर्थ है “महिषासुर का वध करने वाली देवी”। महिषासुर, जो एक अत्यंत बलशाली राक्षस था, देवी दुर्गा के सामर्थ्य से परास्त हुआ। इस स्तोत्र के माध्यम से, देवी दुर्गा की विजय और उनके दिव्य रूप की पूजा की जाती है।
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महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र (Mahishasura Mardini Stotram) का उच्चारण करते समय भक्त देवी की उपासना करते हुए उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं। यह स्तोत्र न केवल दिव्य शक्ति की प्रतीक है, बल्कि यह हमें बुराई के खिलाफ लड़ने और जीवन में सकारात्मकता की दिशा में अग्रसर होने का प्रेरणा भी देता है। देवी दुर्गा का यह रूप उनके शक्तिशाली और अजेय रूप को दर्शाता है, जो हर प्रकार की विपत्ति और बुराई को समाप्त कर देती हैं।
इस स्तोत्र में देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है और यह भक्तों को मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक बल प्रदान करने का एक साधन माना जाता है। देवी दुर्गा की आराधना से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और सुरक्षा का वास होता है। महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ करने से बुराई का नाश होता है और भक्तों को जीवन में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलते हैं।
महिषासुर मर्दिनी का महत्व:
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र (Mahishasura Mardini Stotram) का अत्यधिक महत्व है क्योंकि यह देवी दुर्गा के विजय और उनके राक्षस महिषासुर पर जीत को अभिव्यक्त करता है। यह स्तोत्र न केवल देवी दुर्गा की शक्ति और साहस का प्रतीक है, बल्कि यह हमारे जीवन में बुराई और अंधकार से लड़ने की प्रेरणा भी देता है। देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों में वह शक्ति, साहस और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक हैं, जो बुराई से लड़ने में सक्षम हैं। महिषासुर मर्दिनी के रूप में देवी ने यह सिद्ध कर दिया कि जब तक संसार में बुराई और अत्याचार है, तब तक देवी अपनी शक्ति से उसे नष्ट करने के लिए प्रकट होती हैं।
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महिषासुर मर्दिनी (Mahishasura Mardini Stotram) का पाठ मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। जब भक्त देवी दुर्गा की स्तुति करते हैं, तो वे अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन का अनुभव करते हैं। यह स्तोत्र आत्मविश्वास को बढ़ाता है और व्यक्ति को आत्म-शक्ति का एहसास कराता है, जिससे वह अपने जीवन के समस्याओं का हल ढूंढने में सक्षम होता है।
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र (Mahishasura Mardini Stotram) का पाठ करते समय भक्तों को मानसिक शांति, संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है। यह स्तोत्र मानसिक तनाव, चिंता और नकारात्मक विचारों को दूर करने में मदद करता है। देवी दुर्गा की उपासना से हमें जीवन में सफलता, समृद्धि और शांति प्राप्त होती है, और यह स्तोत्र हमारी आस्था और विश्वास को दृढ़ करता है।
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र (Mahishasura Mardini Stotram) का पाठ करने के लाभ:
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का नियमित पाठ व्यक्ति के जीवन में अद्वितीय सकारात्मक प्रभाव डालता है। यह स्तोत्र न केवल देवी दुर्गा की शक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह भक्तों को मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक शांति और शक्ति प्रदान करने में सहायक होता है। इस स्तोत्र का पाठ करने के कई लाभ हैं। महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह बुराई का नाश करता है।
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महिषासुर के वध की कथा के माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि देवी दुर्गा उन सभी नकारात्मक शक्तियों और राक्षसी प्रवृत्तियों का नाश करती हैं जो किसी भी रूप में हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं। यह तनाव और चिंता को कम करता है और व्यक्ति को शांतिपूर्ण और संतुलित मानसिक स्थिति में रखता है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भक्त की आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह व्यक्ति को आत्मज्ञान की ओर अग्रसर करता है और उसका विश्वास और आस्था देवी दुर्गा में प्रगाढ़ होती है।
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र (Mahishasura Mardini Stotram) का पाठ करने से जीवन के विभिन्न कष्टों से मुक्ति मिलती है। महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ व्यक्ति के जीवन में एक सकारात्मक और शक्तिशाली बदलाव लाता है। यह न केवल शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सुधार लाने में मदद करता है। देवी दुर्गा की कृपा से भक्तों को सुरक्षा, समृद्धि, और शांति प्राप्त होती है, और वे जीवन के हर संघर्ष में विजयी होते हैं।
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श्री महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम्: Mahishasura Mardini Stotram
अयि गिरिनंदिनि नंदितमेदिनि विश्वविनोदिनि नंदिनुते
गिरिवरविंध्यशिरोधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकंठकुटुंबिनि भूरिकुटुंबिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 1 ॥
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि कल्मषमोषिणि घोररते ।
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिंधुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 2 ॥
अयि जगदंब मदंब कदंबवनप्रियवासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुंगहिमालय शृंगनिजालय मध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगंजिनि कैटभभंजिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 3 ॥
अयि शतखंड विखंडितरुंड वितुंडितशुंड गजाधिपते
रिपुगजगंड विदारणचंड पराक्रमशुंड मृगाधिपते ।
निजभुजदंड निपातितखंड विपातितमुंड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 4 ॥
अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचारधुरीण महाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।
दुरितदुरीह दुराशय दुर्मति दानवदूत कृतांतमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 5 ॥
अयि शरणागत वैरिवधूवर वीरवराभयदायकरे
त्रिभुवन मस्तक शूलविरोधि शिरोधिकृतामल शूलकरे ।
दुमिदुमितामर दुंदुभिनाद महो मुखरीकृत तिग्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 6 ॥
अयि निजहुंकृतिमात्र निराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।
शिव शिव शुंभ निशुंभ महाहव तर्पित भूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 7 ॥
धनुरनुसंग रणक्षणसंग परिस्फुरदंग नटत्कटके
कनक पिशंग पृषत्कनिषंगरसद्भट शृंग हतावटुके ।
कृतचतुरंग बलक्षितिरंग घटद्बहुरंग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 8 ॥
सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते ।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 9 ॥
जय जय जप्य जये जय शब्दपरस्तुति तत्पर विश्वनुते
भण भण भिंजिमि भिंकृतनूपुर सिंजितमोहित भूतपते ।
नटितनटार्ध नटीनटनायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 10 ॥
अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहर कांतियुते
श्रित रजनी रजनी रजनी रजनी रजनीकर वक्त्रवृते ।
सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 11 ॥
सहित महाहव मल्लम तल्लिक मल्लित रल्लक मल्लरते
विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक भिल्लिक भिल्लिक वर्ग वृते ।
सितकृत फुल्लसमुल्लसितारुण तल्लज पल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 12 ॥
अविरलगंडगलन्मदमेदुर मत्तमतंगज राजपते
त्रिभुवनभूषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहनमन्मथ राजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 13 ॥
कमलदलामल कोमलकांति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलय क्रमकेलिचलत्कलहंसकुले ।
अलिकुल संकुल कुवलय मंडल मौलिमिलद्भकुलालि कुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 14 ॥
करमुरलीरव वीजित कूजित लज्जितकोकिल मंजुमते
मिलित पुलिंद मनोहर गुंजित रंजितशैल निकुंजगते ।
निजगुणभूत महाशबरीगण सद्गुणसंभृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 15 ॥
कटितटपीत दुकूलविचित्र मयूखतिरस्कृत चंद्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चंद्ररुचे ।
जितकनकाचल मौलिपदोर्जित निर्भरकुंजर कुंभकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 16 ॥
विजित सहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृत सुरतारक संगरतारक संगरतारक सूनुसुते ।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधि समाधि सुजातरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 17 ॥
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं स शिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
तव पदमेव परंपदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 18 ॥
कनकलसत्कल सिंधुजलैरनुसिंचिनुते गुणरंगभुवं
भजति स किं न शचीकुचकुंभ तटीपरिरंभ सुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवं
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 19 ॥
तव विमलेंदुकुलं वदनेंदुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूत पुरींदुमुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 20 ॥
अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथाऽनुभितासिरते ।
यदुचितमत्र भवत्युररि कुरुतादुरुतापमपाकुरु ते [मे]
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 21 ॥
इति श्री महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् ॥
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श्री महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का हिंदी अर्थ:
अर्थ:
हे गिरिराज हिमालय की पुत्री! संपूर्ण पृथ्वी को आनंदित करनेवाली! विश्व को मोहित करनेवाली! नंदी द्वारा पूजित देवी! विंध्याचल पर्वत पर निवास करनेवाली! विष्णु के सौंदर्य में रमण करनेवाली! विजयियों द्वारा पूजित! शिव के कुल की कन्या! असीम करुणा से परिपूर्ण! कुशलताओं की मूर्ति! आपके चरणकमल सभी देवताओं और असुरों द्वारा वंदित हैं। ॥1॥
अर्थ:
हे देवताओं पर कृपा करनेवाली! दुष्टों का संहार करनेवाली! दुष्टों के दुर्वचन सहन न करनेवाली! आनंद में रत रहनेवाली देवी!
तीनों लोकों का पालन करनेवाली! शिव को प्रसन्न करनेवाली! पापों का नाश करनेवाली! जयघोष प्रिय करनेवाली देवी! दानवों के क्रोध को शांत करनेवाली! दिति के पुत्रों का नाश करनेवाली! दुर्जनों का विनाश करनेवाली! सिद्धों द्वारा पूजित देवी! जय हो, जय हो, हे महिषासुरमर्दिनी! ॥2॥
अर्थ:
हे जगदम्बा! हे मेरी माता! जो कदंब वन में आनंदपूर्वक वास करती हैं, जो ऊँचे हिमालय पर्वत के शिखरों के बीच अपने निवास में विराजमान हैं। हे मधुर वाणी वाली! जो मधु और कैटभ नामक दैत्यों का संहार करनेवाली हैं, जो रास-लीला में रमण करनेवाली हैं। जय हो, जय हो, हे रम्य केशों वाली शैलपुत्री महिषासुरमर्दिनि! ॥3॥
अर्थ:
हे देवी! आपने हाथी के सिर (गजमुख) को सैकड़ों टुकड़ों में चूर कर दिया, शत्रु रूपी विशाल हाथियों के मस्तकों को भेद डाला, अपने प्रचंड पराक्रम से हिंसक जानवरों के स्वामी को भी परास्त कर दिया। अपने मजबूत भुजदंड से सेनापतियों के सिर और धड़ों को ध्वस्त कर दिया। जय हो, जय हो, हे रमणीय केशों वाली शैलपुत्री महिषासुरमर्दिनि! ॥4॥
अर्थ:
हे देवी! जो रणभूमि में शत्रुओं का संहार करनेवाली और अपने शत्रुओं को नष्ट करने की अद्वितीय शक्ति रखती हैं। जो महाशिव के दूत के रूप में प्रमथाधिपति (राक्षसों के राजा) को भी पराजित करती हैं। जो पापों का नाश करनेवाली और दुष्ट इच्छाओं से मुक्त करनेवाली हैं। जो दानवों के दूतों का अंत करनेवाली हैं। जय हो, जय हो, हे महिषासुरमर्दिनि, रम्य केशों वाली शैलपुत्री! ॥5॥
अर्थ:
हे देवी! जो शरणागतों को शरण देनेवाली और अपने भक्तों को निर्भीकता का वरदान देनेवाली हैं। जो त्रिभुवन के शत्रुओं का शूलों से नाश करनेवाली और शरीर पर अमल (शुद्ध) शूल धारण करनेवाली हैं। जो देवताओं के बंशी की ध्वनि से गूंजती हैं और तिग्म (तीव्र) शूल से महादेव के आदेश का पालन करनेवाली हैं। जय हो, जय हो, हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य केशों वाली शैलपुत्री!॥6॥
अर्थ:
हे देवी! जो अपनी शक्ति से सभी शत्रुओं की कठिनता को नष्ट करनेवाली हैं, जिनकी आँखों से धुआँ निकलता है और जो धूम्रध्वजित हैं।
जो युद्ध के मैदान में शत्रुओं के रक्तबीज को नष्ट करती हैं, और उन रक्तबीजों को फिर से नष्ट करनेवाली हैं। जो शुंभ और निशुंभ जैसे राक्षसों की महाहवन में तर्पित होकर भूत और पिशाचों का संहार करती हैं। जय हो, जय हो, हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य केशों वाली शैलपुत्री! ॥7॥
अर्थ:
हे देवी! जो धनुष और बाण के साथ रणभूमि में युद्धरत रहती हैं, जिनके तेजस्वी अंग अंग में नृत्य करते हुए दिखाई देते हैं। जो स्वर्ण-पीत वस्त्र पहने हुए, रथ में सुसज्जित, सैन्य की शृंग के साथ शत्रुों का संहार करती हैं। जो चारों दिशाओं में बला की शक्ति रखती हैं, जो दुर्गम स्थानों में रथ की ध्वनि करती हुई दुश्मनों का विनाश करती हैं। जय हो, जय हो, हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य केशों वाली शैलपुत्री! ॥8॥
अर्थ:
हे देवी! जो सुरललनाओं के संग नृत्य करती हैं, जो उनके शरीर की लय में हर कदम अभिव्यक्त होता है। जो शंख, घंटी, ढोलक आदि के संगीत में मग्न रहती हैं, और अपने नृत्य से उत्साहित होकर गान करती हैं। जिनकी ध्वनियाँ धूमधाम से गूंजती हैं और मृदंग की आवाज़ के साथ मनमोहक संगीत में रच जाती हैं। जय हो, जय हो, हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य केशों वाली शैलपुत्री! ॥9॥
अर्थ:
जय हो, जय हो! जो जप, स्तुति, और वचनों से हमेशा प्रकट होती हैं, जिनकी प्रशंसा और स्तुति सभी विश्व में हो रही है। जिनकी नूपुरों की मधुर ध्वनि से सभी दुष्टों का हृदय छिन्न-भिन्न हो जाता है, जो भूतों और पिशाचों के स्वामी को भी मोहित करती हैं। जो नृत्य करती हैं, और अपनी नृत्य कला से नृत्याचार्य की भूमिका निभाती हैं, जो नृत्य और गान से हर एक प्राणी को आनंदित करती हैं। जय हो, जय हो, हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य केशों वाली शैलपुत्री! ॥10॥
अर्थ:
हे देवी! जो हर दिशा में सुगंधित और सुंदर हैं, जो अपने कान्ति से सबको मोहित करती हैं। जिनके मुखमंडल की कांति रात्रि के अंधकार को भी प्रकाशमय बना देती है। जिनकी आँखों में भ्रमर (मधुमक्खी) की तरह मृदुलता और आकर्षण है, जो भ्रमरों के राजा की तरह सुंदरता और रूप में अद्वितीय हैं। जय हो, जय हो, हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य केशों वाली शैलपुत्री! ॥11॥
अर्थ:
जो महाक्रूर शत्रुओं का संहार करती हैं, जो अपने युद्ध में मल्लों और योद्धाओं के संग सम्मिलित होती हैं। जिनके पैरों के निशान और पत्तों की लता नृत्य करती हुई आकर्षक लगती है, जो बिल्लियों और अन्य पशुओं के वर्ग को भी अपने रूप से मोहित करती हैं। जिनकी शुभ्रता से निखरते हुए सुंदर और ताजे पत्ते अपने प्रफुल्लित रूप में प्रस्फुटित होते हैं। जय हो, जय हो, हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य केशों वाली शैलपुत्री!॥12॥
अर्थ:
जो मत्त हाथी की तरह मदमत्त और दुर्गम शत्रुओं का संहार करती हैं, जो त्रिभुवन की आभूषण हैं, और रूप और गुण की निधि हैं, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड की सुंदरता और शक्ति का प्रतीक हैं। जो सुदीप्त और लालसामनस रूप से, मोहन (कामदेव) के समान मनमोहक और आकर्षक हैं। जय हो, जय हो, हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य केशों वाली शैलपुत्री!॥13॥
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अर्थ:
हे देवी! आपके मस्तक की कांति कमलदल के समान निर्मल और कोमल है, आपकी सुंदरता समस्त कलाओं का निवास है। आपकी चाल, केलि करती हुई हंसों की पंक्तियों की तरह मधुर और मनोहर है। आपके इर्द-गिर्द भ्रमर समूह कमल-मंडल की शोभा में घिरे हुए हैं, जिनसे आपका सौंदर्य और भी निखरता है। जय हो, जय हो, हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य केशों वाली शैलसुते!॥14॥
अर्थ:
हे देवी! आपकी करकमलों की मुरली की ध्वनि से कोयल तक लज्जित हो जाती है, आपकी मीठी ध्वनि कोकिल के मधुर गीत को भी मात देती है। आपके रमणीय शैल निकुंज (पर्वतीय उपवनों) में पुलिंद (वनवासी जाति) भी आनन्दित होकर गूंज उठते हैं। आपके गुणों से समृद्ध महान शबरीगण भी आपके लीला स्थल पर एकत्र होते हैं। जय हो, जय हो, हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य केशों वाली शैलपुत्री!॥15॥
अर्थ:
हे देवी! आपकी कटि प्रदेश पर बंधा पीतांबर इतना दीप्तिमान है कि उसकी चमक चंद्रमा के प्रकाश को भी तिरस्कृत कर देती है। आपके चरणों के नाखूनों की आभा से नतमस्तक देवताओं और असुरों के मस्तक पर जड़े रत्न भी चमक उठते हैं। आपके वक्षस्थल की भव्यता, सुवर्ण पर्वत (सुमेरु) की ऊंचाई और विशाल हाथी के उन्नत कुंभ (माथे) से भी श्रेष्ठ है। जय हो, जय हो, हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य केशों वाली शैलसुते!॥16॥
अर्थ:
हे देवी! आपने हजारों भुजाओं वाले असुरों को जीत लिया है, और आप अनगिनत देवताओं द्वारा नित्य पूजित हैं। आपने तारकासुर और उसके पुत्रों (सिंहमुख और सुरपद्म) के संहार द्वारा देवताओं का कल्याण किया है। आप सुरथ और समाधि नामक राजाओं के समान स्थिर समाधिस्थ चित्त को भी प्रसन्न करती हैं। जय हो, जय हो, हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य केशों वाली शैलसुते!॥17॥
अर्थ:
हे करुणामयी शिवे! जो भक्त प्रतिदिन आपके कमल जैसे चरणों की सेवा करता है, वह निश्चित ही परमकल्याण को प्राप्त करता है। हे कमलनयनी! जो आपके चरणों का आश्रय लेता है, वह स्वयं कमलवत (निर्मल और पवित्र) क्यों नहीं हो जाएगा? यदि मैं भी आपके परम चरणों को ही परम लक्ष्य मानकर निरंतर भजूं, तो मेरे लिए भी कल्याण क्यों नहीं होगा? जय हो, जय हो, हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य केशों वाली शैलसुते!॥18॥
अर्थ:
हे देवी! जो भक्त आपके गुणरूपी पवित्र रंगभूमि को स्वर्ण के समान निर्मल गंगा जल से सींचता है (अर्थात् आपके गुणों का स्तुति रूपी पूजन करता है), क्या वह इन्द्राणी (शची देवी) के उन्नत कुचों के आलिंगन सुख का अनुभव नहीं करेगा? (अर्थात् स्वर्गीय सुखों का अनुभव क्यों न करेगा?) हे नतमस्तक देवताओं द्वारा पूजित! हे कल्याणमयी! मैं भी आपके चरणों की शरण ग्रहण करता हूं। जय हो, जय हो, हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य केशों वाली शैलसुते!॥19॥
अर्थ:
हे देवी! आपके विमल चंद्रवदन (चाँद जैसे निर्मल मुख) की कान्ति सम्पूर्ण जगत को पवित्र कर देती है। तो फिर इन्द्रपुरी (स्वर्गलोक) की सुंदर अप्सराएँ आपके सौंदर्य से विमुख कैसे हो सकती हैं? (अर्थात वे भी आपकी ओर आकर्षित हो जाती हैं।) मेरे विचार से, यदि आपकी कृपा हो जाए, तो शिवनाम (शिव के समान कल्याणकारी) धन से मेरा जीवन भरपूर हो जाएगा। जय हो, जय हो, हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य केशों वाली शैलसुते!॥20॥
अर्थ:
हे देवी! आपकी कृपा से ही मैं, जो अत्यंत दीन और दुर्बल हूं, सद्गति की प्राप्ति कर सकूं। हे संसार की माता! आप सदा ही अपनी दया से समस्त प्राणियों के दुखों को दूर करती हैं। आपके कृपा से ही संसार में सब कुछ अपने उचित स्थान पर रहता है और सभी जीव सुखी होते हैं। हे महिषासुरमर्दिनी! मेरे दुखों को दूर करने के लिए आप मुझे अपनी कृपा से समृद्ध करें। जय हो, जय हो, हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य केशों वाली शैलसुते!॥21॥
यह श्री महिषासुरमर्दिनी का स्तोत्र संपूर्ण।
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