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भवानी अष्टकम् | Bhavani Ashtakam in Hindi & English

भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में देवी भवानी—यानी माँ पार्वती—को करुणा, शक्ति और शरण का स्रोत माना गया है। जब जीवन में सभी सहारे छूट जाते हैं, तब केवल “माँ” की शरण ही शांति देती है। आदि शंकराचार्य द्वारा रचित “भवानी अष्टकम् (Bhavani Ashtakam)” एक ऐसा ही स्तोत्र है जो हमें परमात्मा के प्रति पूर्ण आत्मसमर्पण और भक्ति का मार्ग दिखाता है। यदि इसे श्रद्धा, एकाग्रता और नियमपूर्वक किया जाए, तो साधक को मानसिक शांति, भय से मुक्ति, और आध्यात्मिक ऊर्जा की अनुभूति होती है।

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यह अष्टक बताता है कि जब जीवन में न विधि-विधान काम आते हैं, न ज्ञान और न कोई संबंधी, तब केवल माँ भवानी ही वह “एकमात्र गति” हैं, जिनकी शरण लेने पर जीवन रूपी भवसागर भी पार हो जाता है। यह स्तोत्र किसी विशेष धर्म या विद्या का आग्रह नहीं करता — यह तो केवल हृदय के आर्तनाद पर ध्यान देता है। यदि आपने सब खो दिया हो, फिर भी यदि आपके पास “माँ भवानी” का नाम है — तो आपने कुछ भी नहीं खोया।

“भवानी अष्टकम्” का संक्षिप्त परिचय:

“भवानी अष्टकम् (Bhavani Ashtakam)” एक अत्यंत प्रसिद्ध संस्कृत स्तोत्र है, जिसकी रचना आदि शंकराचार्य ने की थी। यह स्तुति देवी भवानी—अर्थात् माता पार्वती—को समर्पित है, जो संहार और करुणा दोनों की प्रतीक हैं। “अष्टकम्” शब्द का अर्थ है – आठ पदों या श्लोकों का समूह। इस स्तोत्र में आठ श्लोकों के माध्यम से एक साधक या भक्त अपनी असहायता, अज्ञानता और सांसारिक पापों को स्वीकार करते हुए माता भवानी से पूर्ण आत्मसमर्पण की भावना से शरण माँगता है।

इस स्तोत्र की सबसे विशेष बात यह है कि इसमें न कोई याचना है, न कोई विशेष अनुष्ठान का आग्रह — बस एक विनम्र पुकार है कि “हे माँ! मुझे कुछ नहीं आता, पर आप ही मेरी एकमात्र शरण हो।” “भवानी अष्टकम्” न केवल देवी की महिमा का वर्णन करता है, बल्कि यह बताता है कि जब ज्ञान, पुण्य, मंत्र, व्रत, तीर्थ और संपूर्ण साधन भी निष्फल हो जाएँ, तब सच्ची भक्ति और पूर्ण समर्पण ही मुक्ति का मार्ग बनते हैं।

भवानी अष्टकम् Bhavani Ashtakam” क्यों पढ़ें?

भवानी अष्टकम्” केवल एक स्तोत्र नहीं है, यह एक भक्त की आर्त पुकार है — एक ऐसा शरणागत जिसकी आशाएं संसार से टूट चुकी हैं और जिसकी दृष्टि अब केवल माँ भवानी की करुणा पर टिकी है। इस स्तोत्र को पढ़ने और मनन करने से जीवन में कई स्तरों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। स्तुति में साधक स्वयं को पापी, कुकर्मी और अयोग्य मानते हुए भी माँ को याद करता है। यह हमें सिखाता है कि माँ की कृपा बिना भेदभाव के मिलती है, चाहे हम कितने ही पापी क्यों न हों — यदि हमारी पुकार सच्ची है।

यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ उचित समय पर सही पाठ करें

स्त्रोत के अंतिम श्लोक में कहा गया है कि विवाद, विषाद, अग्नि, शत्रु, वन, पर्वत — किसी भी स्थिति में — माँ भवानी मेरी रक्षक हैं। यह विश्वास भय, चिंता और संकट से बाहर निकलने का मनोबल देता है। यदि आपने कभी पूजा नहीं की, शास्त्र नहीं पढ़े, या अध्यात्म से दूरी रही — तब भी आप इस अष्टक को पढ़कर भक्ति का पहला कदम रख सकते हैं। यह स्तोत्र हर किसी के लिए है — विद्वान के लिए भी, सामान्य व्यक्ति के लिए भी।

“भवानी अष्टकम् (Bhavani Ashtakam)” केवल एक संस्कृत स्तोत्र नहीं, बल्कि एक डूबी हुई आत्मा की करुण पुकार है। यह वह मार्ग है जहाँ साधक अपनी सीमितता, अज्ञानता, और असमर्थता को स्वीकार कर माँ भवानी के चरणों में समर्पित हो जाता है। इस अष्टक की सबसे सुंदर बात यह है कि इसमें कोई दिखावा नहीं, कोई औपचारिकता नहीं — केवल शुद्ध भाव, विनम्रता और आत्मसमर्पण है। जब हम यह स्तोत्र पढ़ते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे हम माँ से कह रहे हों।

जो व्यक्ति इसे श्रद्धा से पढ़ता है, वह माँ की कृपा से अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश, और भय से साहस की ओर अग्रसर होता है। माँ भवानी की शरण में आने के लिए आपको योग्य बनने की ज़रूरत नहीं — केवल सच्चे हृदय से पुकारना ही काफी है।

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