loader image

Ek Mukhi Hanuman Kavach

blog
Ek Mukhi Hanuman Kavach

एकमुखी हनुमान कवच | Ek Mukhi Hanuman Kavach

हनुमान — शक्ति, भक्ति और सुरक्षा का ऐसा दिव्य स्वरूप जिनकी केवल स्मृति से ही शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संकट दूर हो जाते हैं। वे न केवल राम के दूत हैं, बल्कि दीन-दुखियों के रक्षक, शत्रुओं के संहारक, और साधकों के अनन्य सहायक भी हैं। परंतु क्या आप जानते हैं कि श्री हनुमान जी का एक अत्यंत गोपनीय कवच भी है, जिसे “एकमुखी हनुमान कवच” (Ek Mukhi Hanuman Kavach) के नाम से जाना जाता है?

यहां एक क्लिक में पढ़िए ~ बजरंग बाण पाठ

“एकमुखी हनुमान कवच” (Ek Mukhi Hanuman Kavach) इतना शक्तिशाली और रहस्यमय है कि स्वयं भगवान शिव ने माता पार्वती को इसकी महिमा सुनाई थी। यह वही दिव्य ज्ञान है जिसे भगवान श्रीराम ने युद्धभूमि में विभीषण को सौंपा था, जब समस्त लंका भय और अशुभ शक्तियों से घिरी हुई थी। यह कवच किसी भी साधक के लिए एक वज्र कवच है – जो उसे भूत-प्रेत, तंत्र-मंत्र, ग्रहबाधा, नजर दोष, शत्रु बाधा, मानसिक तनाव, आकस्मिक दुर्घटनाएँ और युद्ध जैसे संकटों से बचाता है।

हनुमान जी के अनेक स्वरूप हैं — पंचमुखी, दशमुखी इत्यादि। परंतु ‘एकमुखी हनुमान’ उनके एकनिष्ठ भक्ति, एकाग्रता और एकसूत्रता के प्रतीक हैं। “एकमुखी हनुमान कवच” (Ek Mukhi Hanuman Kavach) में उनका एकमुख रूप दर्शाता है कि जो साधक अपने लक्ष्य (रामभक्ति) में एकनिष्ठ होता है, उसके लिए कोई भी शक्ति हानिकारक नहीं रह सकती।

हनुमान जी केवल संकटमोचक नहीं हैं, वे स्वयं शक्ति और शिवत्व के प्रकट रूप हैं। “एकमुखी हनुमान कवच” (Ek Mukhi Hanuman Kavach) वह दुर्लभ ब्रह्मास्त्र है जो साधक को अदृश्य बंधनों से मुक्त कर सकता है। यदि आप जीवन में निरंतर संकट, आकस्मिक विघ्न, या आध्यात्मिक दुर्बलता का अनुभव कर रहे हैं — तो यह कवच आपके लिए समाधान बन सकता है।

“एकमुखी हनुमान कवच” (Ek Mukhi Hanuman Kavach) प्रेम, श्रद्धा और नियम से पढ़ें — और अपने जीवन में हनुमान कृपा का स्पंदन स्वयं महसूस करें।

यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ उचित समय पर सही पाठ करें

एकमुखी हनुमान कवच (Ek Mukhi Hanuman Kavach)

एकदा सुखमासीनं शंकरं लोकशंकरम्।
प्रपच्छ गिरिजा कान्तं कर्पूरधवलं शिवम्॥१॥
अर्थ:
एक बार, जब समस्त लोकों के कल्याणकर्ता भगवान शंकर सुखपूर्वक आसन पर विराजमान थे, तब उनकी पत्नी माता पार्वती ने कर्पूर के समान उज्ज्वल और श्वेत कान्ति वाले भगवान शिव से प्रश्न किया।

॥ पार्वत्युवाचः ॥
भगवन् देवदेवेश लोकनाथ जगत्प्रभो।
शोकाकुलानां लोकानां केन रक्षा भवेद्भव॥२॥
संग्रामे संकटे घोरे भूतप्रेतादिभये।
दुःखदावाग्निसंतप्तचेतसां दुःखभागिनाम्॥३॥
अर्थ:
हे भगवन्! हे देवताओं के भी देवता, हे लोकों के स्वामी, हे समस्त जगत के प्रभु! जो लोग शोक से व्याकुल हैं, उनके दुःखों से रक्षा किस उपाय से हो सकती है? जब मनुष्य भयंकर युद्धों, संकटों, या भूत-प्रेत जैसे भयावह प्रसंगों में फँस जाता है, या जब वह जीवन के दुःखरूपी अग्नि में तप रहा होता है, तो ऐसे दुःखभोगी प्राणियों की रक्षा कौन और किस उपाय से हो सकती है — हे प्रभो, कृपा कर यह बताइए।

॥ महादेव उवाचः ॥
श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया।
विभीषणाय रामेण प्रेम्णा दत्तं च यत्पुरा॥४॥
अर्थ:
हे देवी! सुनो, मैं तुम्हें एक अत्यंत पवित्र और कल्याणकारी रहस्य बताने जा रहा हूँ। यह वही दिव्य कवच है, जो भगवान श्रीराम ने अपने प्रेम से विभीषण को बहुत पहले प्रदान किया था, लोकों के कल्याण के उद्देश्य से।

कवच कपिनाथस्य वायुपुत्रस्य धीमतः।
गुह्यं तत्ते प्रवक्ष्यामि विशेषाच्छणु सुन्दरी॥५॥
अर्थ:
हे सुन्दरी पार्वती! मैं तुम्हें हनुमान कवच का रहस्य बताने जा रहा हूँ। यह कवच कपिनाथ (हनुमान) के लिए, जो वायुपुत्र (पवनपुत्र) हैं, अत्यंत बुद्धिमान और शक्तिशाली हैं। मैं यह रहस्य तुम्हें विशेष रूप से बता रहा हूँ।

॥ विनियोगः ॥
ॐ अस्य श्री हनुमान कवच स्तोत्र मन्त्रस्य श्री रामचंद्र ऋषिः
श्री वीरो हनुमान् परमात्माँ देवता, अनुष्टुप छन्दः, मारुतात्मज इति बीजम्,
अंजनीसुनुरीति शक्तिः, लक्ष्मण प्राणदाता इति जीवः, श्रीराम भक्ति रिति कवचम्,
लंकाप्रदाहक इति कीलकम् मम सकल कार्य सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । ६ ।

॥ मन्त्रः ॥
ॐ ऐं श्रीं ह्राँ ह्रीं हूं हैं ह्रौं हंः । ७ ।
इस मन्त्र को यथाशक्ति जपें ।

।। करन्यासः ।।॥
ॐ ह्राँ अंगुष्ठाभ्यां नमः ।८ ।
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्याँ नमः । ९ ।
ॐ हूं मध्यमाभ्याँ नमः । १० ।
ॐ हैं अनामिकाभ्याँ नमः । ११ ।
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्याँ नमः । १२ ।
ॐ ह्रः करतल करपृष्ठाभ्याँ नमः । १३ ।
॥ हृदयादिन्यास ॥
ॐ अंजनी सूतवे नमः, हृदयाय नमः । १४ ।
ॐ रुद्रमूर्तये नमः, शिरसे स्वाहा । १५ ।
ॐ वातात्मजाय नमः, शिखायं वषट । १६ ।
ॐ रामभक्तिरताय नमः, कवचाय हुम् । १७ ।
ॐ वज्र कवचाय नमः, नेत्रत्र्याय वौषट् । १८ ।
ॐ ब्रह्मास्त्र निवारणाय नमः, अस्त्राय फट् । १९ ।

॥ ध्यान ॥
ॐ ध्यायेद बालदिवाकर द्युतिनिभं देवारिदर्पापहं।
देवेन्द्र प्रमुख प्रशस्तयशसं देदीप्यमानं रुचा॥२०॥
सुग्रीवादि समस्त वानरयुतं सुव्यक्ततत्वप्रियं।
संरक्त्तारूण लोचनं पवनजं पीताम्बरालंकतम्॥२१॥
अर्थ:
इस मन्त्र के माध्यम से ध्यान करो उस बाल रूप के हनुमान पर, जो सूर्य के समान तेजस्वी हैं, और जो देवों के शत्रुता को नष्ट करने वाले हैं। वे देवताओं के बीच सबसे प्रमुख और महान यशस्वी हैं, और उनका तेज अत्यंत प्रकाशित और आकर्षक है। वे सुग्रीव और अन्य वानरसेनाओं के प्रिय हैं। उनकी दृष्टि लालिमा से भरपूर है, और वे पवन के पुत्र हैं। वे पीले वस्त्रों से सुशोभित हैं और सभी तत्वों में सुसंगत और प्रिय हनुमान जी का ध्यान करना चाहिये ।

उद्यन्मार्तण्ड कोटि प्रकट रुचि युतं चारुबीरासनस्थं।
मौंजी यज्ञोपवीताऽभरण रुचि शिखा शोभितं कुण्डलाढयम्॥२२॥
भक्तानामिष्टदम्नप्रणतमुनजनं वेदनादप्रमोदं।
ध्यायेद्देवं विधेय प्लवगकुलपति गोष्पदीभूतवर्धिम्॥२३॥
अर्थ:
ध्यान करो उस हनुमानजी पर, जिनकी प्रभा सूर्य के अनगिनत कोटियों के समान तेजस्वी है। वे सुंदर, वीरता से भरे हुए, चारु आसन पर विराजमान हैं। उनका यज्ञोपवीत और आभूषण अत्यंत आकर्षक है। उनकी केश-शिखा और कुंडल अलंकरण में सुसज्जित हैं। हनुमानजी अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करने वाले हैं। वे वेदों में वर्णित आनंद और सौभाग्य देने वाले हैं। ध्यान करने वाला जो भी भक्त उन्हें ध्यान करता है, वह सभी विपत्तियों और दुःखों से मुक्त होता है। उनका रूप वानर कुलपति, गायों के संरक्षक और सम्पूर्ण जगत को बल देने वाला है।

वज्राङ्ग पिंगकेशाढ्यं स्वर्णकुण्डल मण्डितम्।
उद्यदक्षिण दोर्दण्डं हनुमन्तं विचिन्तये॥२४॥
स्फटिकाभं स्वर्णकान्ति द्विभुजं च कृताञ्जलिम्।
कुण्डलद्वय संशोभि मुखाम्भोजं हरिं भजे॥२५॥
अर्थ:
हनुमानजी का शरीर वज्र के समान है। उनका चेहरा पीत रंग का है। उनके कान सोने के कुंडल से अलंकृत हैं। उनका दक्षिण दिशा की ओर उठता हुआ दोर्दण्ड (गदा) अत्यंत शक्तिशाली और दिव्य है। हनुमानजी का मुख स्फटिक जैसी चमक वाला है और उनके आभूषण सोने के समान चमकते हैं। उनके दो हाथ हैं, और वे अंजलि मुद्रा में बैठे हैं। उनके कुंडल उनके मुख के सौंदर्य को और बढ़ाते हैं। इन सबको ध्यान करके, भक्त हरि का ध्यान करें और उन्हें स्मरण करें।

यहां पढ़ें-” सुन्दरकाण्ड पाठ ” आपके सभी रोगों को दूर करने के लिए

।। हनुमान मन्त्र ।।
निम्नलिखित मन्त्र सावधानी से जपें-
ॐ नमो भगवते हनुमदाख्य रुद्राय सर्व दुष्ट जन मुख स्तम्भनं कुरु कुरु ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ठं ठं ठं फट् स्वाहा, ॐ नमो हनुमते शोभिताननाय यशोऽलंकृताय अंजनी गर्भसम्भूताय रामलक्ष्मणनंदकाय कपि सैन्य प्राकाशय पर्वतोत्पाटनाय सुग्रीवसाह्य करणाय परोच्चाटनाय कुमार ब्रह्मचर्याय गम्भीर शब्दोदयाय ॐ ह्रां ह्रीं हूँ सर्व दुष्ट ग्रह निवारणाय स्वाहा ।

ॐ नमो हनुमते सर्व ग्राहन्भूत भविष्यद्वर्तमान दूरस्थ समीप स्थान् छिंधि छिंधि भिधि भिधि सर्व काल दुष्ट बुद्धिमुच्चाटयोच्चाटय परबलान क्षोभय क्षोभय मम सर्व कार्याणि साधय साधय ॐ ह्रां ह्रीं हूँ फट् देहि ॐ शिव सिद्धि ऊँ हाँ ह्रीं हूँ स्वाहा।

ॐ नमो हनुमते पर कृत यन्त्र मन्त्र पराहङ्कार भूत प्रेत पिशाच पर दृष्टि सर्व तर्जन चेटक विद्या सर्व ग्रह भयं निवारय निवारय, वध वध, पच पच, दल दल, विलय विलय सर्वाणिकुयन्त्राणि कुट्टय कुट्टय, ऊँ हाँ ह्रीं हूँ फट् स्वाहा।

ॐ नमो हनुमते पाहि पाहि ऐहि ऐहि सर्व ग्रह भूतानाँ शाकिनी डाकिनीनां विषमदुष्टानाँ सर्वेषामाकर्षय कर्षय, मर्दय मर्दय, छेदय छेदय, मृत्यून् मारय मारय, शोषय शोषय, प्रज्वल प्रज्वल, भूत मण्डल, पिशाच मण्डल, निरसनाय भूत ज्वर, प्रेत ज्वर, चातुर्थिक ज्वर, विष्णु ज्वर, महेश ज्वरं, छिन्धि छिन्धि, भिधि भिधि, अक्षि शूल, पक्ष शूल, शिरोऽभ्यंतर शूल, गुल्म शूल, पित्त शूल, ब्रह्म राक्षस कुल पिशाच कुलच्छेदनं कुरु प्रबल नाग कुल ।
विषं निर्विषं कुरु कुरु झटति झटति, ऊँ हाँ ह्रीं हूं फट् सर्व ग्रह निवारणाय स्वाहा । ॐ नमो हनुमते पवन पुत्राय वैश्वानर पाप दृष्टि, चोर, दृष्टि हनुमदाज्ञा स्फुर ॐ स्वाहा, ऊँ हाँ ह्रीं हूँ फट् घे घे स्वाहा।

॥ श्री राम उवाचः ॥
हनुमान पूर्वतः पातु दक्षिणे पवनात्मजः,
पातु प्रतीच्यां रक्षोघ्नः पातु सागरपारगः॥१॥
अर्थ:
पूर्व दिशा से रक्षा करें हनुमानजी। दक्षिण दिशा से रक्षा करें पवनपुत्र (हनुमान)। पश्चिम दिशा से रक्षोघ्न (भय और बुरी शक्तियों का नाश करने वाले) हनुमानजी रक्षा करें। उत्तर दिशा से समुद्र पार करने वाले वीर हनुमान आपकी सुरक्षा करें।

उदीच्यामूर्ध्वगः पातु केसरीप्रिय नन्दनः,
अधस्ताद् विष्णु भक्तस्तु पातु मध्यं च पावनिः॥२॥
अर्थ:
ऊपर से रक्षा करें हनुमानजी, जो केसरीप्रिय नंदन हैं। नीचे रक्षा करें विष्णुभक्त, अर्थात भक्तों के पांव या नीचे के हिस्से की सुरक्षा करें। बीच से रक्षा करें पवनपुत्र हनुमान, अर्थात शरीर के मध्य भाग को भी पवनात्मज सुरक्षित करें।

अवान्तर दिशः पातु सीता शोकविनाशकः,
लंकाविदाहकः पातु सर्वापद्भ्यो निरंतरम्॥३॥
अर्थ:
अंतर दिशाओं से रक्षा करें हनुमानजी, जो सीता और भक्तों के रक्षक तथा शोक नाशक हैं। लंका को जलाने वाले वीर हनुमान लगातार सभी प्रकार की आपदाओं और संकटों से रक्षा करें।

सुग्रीव सचिवः पातु मस्तकं वायुनन्दनः,
भालं पातु महावीरो ध्रुवोंमध्ये निरन्तरम्॥४॥
अर्थ:
सुग्रीव के सचिव आपके सिर की रक्षा करें। वायुपुत्र आपके सिर के शीर्ष भाग की रक्षा करें। महावीर हनुमान आपके मध्य भाग की निरंतर रक्षा करें।

नेत्रेच्छायापहारी च पातु नः प्लवगेश्वरः,
कपोले कर्णमूले च पातु श्री राम किंकरः॥५॥
अर्थ:
आंखों से निकलने वाले भय और छाया को नष्ट करने वाला हनुमानजी आपकी आँखों की रक्षा करें। सिर और कान के मूल भागों की रक्षा करें हनुमानजी, जो श्रीराम के प्रिय कंकर हैं।

नासाग्रमञ्जनीसूनु पातु वक्त्रं हरीश्वर,
वाचं रुद्रप्रिय पातु जिह्वा पिंगल लोचनः॥६॥
अर्थ:
नाक के अग्रभाग और नासिका की रक्षा करें हनुमानजी, जो हरीश्वर हैं। मुख और वाणी की रक्षा करें, विशेषकर जिह्वा को, जो रुद्रप्रिय है। यह कवच हनुमानजी की शक्ति और दिव्यता से मुख और वाणी की सुरक्षा करता है।

पातु दन्तान फाल्गुनेष्टाश्चिबुकं दैत्यापादहा,
पातु कण्ठं च दैत्यारीः स्कन्धौ पातु सुरार्चितः॥७॥
अर्थ:
दांतों की रक्षा करें हनुमानजी, जो फाल्गुनेष्टा हैं। चिबुक की रक्षा करें, जो दैत्यापाद है। कण्ठ की रक्षा करें दैत्यारी से। कंधे की रक्षा करें, जिन्हें देवों द्वारा पूजित और सम्मानित किया गया है।

भुजौ पातु महातेजाः करौ तो चरणायुधः,
नखान नखायुधः पातु कुक्षि पातु कपीश्वरः॥८॥
अर्थ:
भुज की रक्षा करें हनुमानजी, जो महाशक्ति और तेजस्वी हैं। कर की रक्षा करें, जो चरणायुध समान हैं। नखों की रक्षा करें, जो नखायुध हैं। कुक्षि की रक्षा करें हनुमानजी, जो कपि-स्वामी हैं।

वक्षो मुद्रापहारी च पातु पार्श्वे भुजायुधः,
लंकाविभञ्जनः पातु पृष्ठदेशे निरन्तरम्॥९॥
अर्थ:
वक्ष की रक्षा करें हनुमानजी, जो संकटों और भय से छुटकारा देने वाले हैं। पार्श्व की रक्षा करें, जहां भुजायुध हैं। पीठ की रक्षा करें हनुमानजी, जो लंका-विभंजन के रूप में निरंतर रक्षा करते हैं।

वाभि च रामदूतस्तु कटिं पात्वनिलात्मजः,
गुह्यं पातु महाप्राज्ञो लिंग पातु शिव प्रियः॥१०॥
अर्थ:
कमर की रक्षा करें हनुमानजी, जो रामदूत हैं। गुप्त अंग की रक्षा करें, जो महाप्राज्ञ और शिवप्रिय हनुमान हैं।

ऊरु च जानुनी पातु लंका प्रासाद भज्जनः,
जंघे पातु कपिश्रेष्ठो गुल्फौ पातु महाबलः॥११॥
अर्थ:
जाँघ और जानुनी की रक्षा करें हनुमानजी, जो लंका प्रासाद भंजन हैं। जंघों की रक्षा करें, जो कपिश्रेष्ठ हैं। गुल्फ की रक्षा करें, जो महाबलवान हनुमान हैं।

अचलोद्धारकः पातु पादौ भाष्कर सन्निभः,
अङ्गान्यमित सत्त्वाढयः पातु पादाँगुलीस्तथा॥१२॥
अर्थ:
पाँव की सुरक्षा करें हनुमानजी, जो सूर्य जैसे तेजस्वी और अचल हैं। पाँव की अंगुलियों की रक्षा करें, जो असीमित शक्ति और सत्त्व के धनी हैं।

सर्वाङ्गानि महाशूरः पातु रोमाणि चात्मवान्,
हनुमत्कवच यस्तु पठेद् विद्वान् विचक्षणः॥१३॥
अर्थ:
सभी अंगों की रक्षा करें हनुमानजी, जो महाशूर और वीर हैं। शरीर के रोम-रोम तक सुरक्षित रहें, जो सच्चे और आत्मवान हैं। जो विद्वान और विवेकशील व्यक्ति हनुमान कवच का पाठ करता है, उसके संपूर्ण शरीर और आत्मा की सुरक्षा होती है।

स एव पुरुषश्रेष्ठो भुक्ति मुक्ति च विन्दति,
त्रिकालमेककालं वा पठेन्मासत्रयम् सदा॥१४॥
अर्थ:
वही व्यक्ति जो सर्वश्रेष्ठ पुरुष है, वह हनुमान कवच का पाठ करता है। उसे सुख-भोग और मुक्ति दोनों की प्राप्ति होती है। चाहे वह व्यक्ति इसे तीनों समयों में या एक बार पढ़े, या इसे तीन महीने तक लगातार पढ़े, हमेशा उसे हनुमानजी की कृपा और सुरक्षा प्राप्त होती है।

सर्वानरिपुनक्षणाजित्वा स पुमाश्रियमाप्नुयात्,
मध्यरात्रे जले स्थित्वा सप्तधारम् पठेद यदि॥१५॥
अर्थ:
जो व्यक्ति सभी शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों पर विजय प्राप्त करना चाहता है, वह हनुमान कवच का पाठ मध्यरात्रि में जल के पास खड़े होकर सप्तधारा करे, उसे आश्रय प्राप्त होती है।

क्षयापस्मार कुष्ठादि ताप ज्वर निवारणम्।
अश्वत्थमूलेऽर्कवारे स्थित्वा पठति यः पुमान्॥१६॥
अर्थ:
जो व्यक्ति क्षय, अपस्मार, कुष्ठ और अन्य रोग, ताप और ज्वर से मुक्त होना चाहता है, वह अश्वत्थ (पीपल) के पेड़ के नीचे, रविवार के दिन, हनुमान कवच का पाठ करे।

अचलाँ श्रियमाप्नोति संग्रामे विजयं तथा,
लिखित्वा पूजयेद यस्तु सर्वत्र विजयी भवेत्॥१७॥
अर्थ:
जो व्यक्ति हनुमान कवच को लिखकर पूजता है, उसे स्थायी धन, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। जो व्यक्ति इसे करता है, वह संग्राम में विजयी होता है। ऐसे व्यक्ति को सर्वत्र विजय और सफलता प्राप्त होती है।

यः करे धारयेन्नित्यं स पुमान् श्रियमाप्नुयात्,
विवादे द्यूतकाले च द्यूते राजकुले रणे॥१८॥
अर्थ:
जो व्यक्ति हनुमान कवच को निरंतर धारण या स्मरण करता है, वह ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि प्राप्त करता है। चाहे वह व्यक्ति विवाद, जुए या द्यूत के समय, या राजघराने के युद्ध में क्यों न हो, उसे सदैव विजय और सफलता प्राप्त होती है।

दशवारं पठेद् रात्रौ मिताहारो जितेन्द्रियः,
विजयं लभते लोके मानुषेषु नराधिपः॥१९॥
अर्थ:
जो व्यक्ति रात में दस बार हनुमान कवच का पाठ करता है, और मिताहारी तथा जितेन्द्रिय होता है, वह लोक में विजय प्राप्त करता है और मानुषों में श्रेष्ठ माना जाता है।

यहां पढ़ें- “हनुमान चालीसा ” बुक

भूत प्रेत महादुर्गे रणे सागर सम्प्लवे,
सिंह व्याघ्रभये चोग्रे शर शस्त्रास्त्र पातने॥२०॥
अर्थ:
भूत-प्रेत और महादुर्गाओं से रक्षा करें, चाहे वे रणभूमि में या समुद्र पार करते समय क्यों न हों। सिंह और व्याघ्र के भय से, और तीर, शस्त्र और अस्त्र के प्रहार से भी रक्षा करें हनुमानजी।

श्रृंखला बन्धने चैव काराग्रह नियन्त्रणे,
कायस्तोभे वह्नि चक्रे क्षेत्रे घोरे सुदारणे॥२१॥
अर्थ:
श्रृंखला और बंधनों से सुरक्षा दें हनुमानजी। कारागृह और कैद के नियंत्रण से भी रक्षा करें। शरीर पर किसी प्रकार की चोट, आग या चक्र से सुरक्षा दें। भयंकर क्षेत्रों और दुर्गम परिस्थितियों में भी रक्षा करें।

शोके महारणे चैव बालग्रहविनाशनम्,
सर्वदा तु पठेन्नित्यं जयमाप्नुत्यसंशयम्॥२२॥
अर्थ:
हनुमानजी शोक और महा-संकट से रक्षा करें। बालग्रह के प्रभाव से भी सुरक्षा दें। जो व्यक्ति हनुमान कवच का निरंतर और नियमित पाठ करता है, वह निश्चित रूप से विजय और सफलता प्राप्त करता है।

भूर्जे व वसने रक्ते क्षीमे व ताल पत्रके,
त्रिगन्धे नाथ मश्यैव विलिख्य धारयेन्नरः॥२३॥
अर्थ:
हनुमान कवच लाल वस्त्र या ताल पत्र पर लिखा जा सकता है। इसे त्रिगंध के साथ लिखा और धारण किया जाए। जो व्यक्ति इसे लिखकर धारयेत्, उसे हनुमानजी की शक्ति और सुरक्षा प्राप्त होती है।

पञ्च सप्त त्रिलोहैर्वा गोपित कवचं शुभम्,
गले कटयाँ बाहुमूले कण्ठे शिरसि धारितम् ॥२४॥
सर्वान् कामान् वाप्नुयात् सत्यं श्रीराम भाषितं ॥२५॥
अर्थ:
हनुमान कवच को पाँच या सात प्रकार के त्रिलोह में भी सुरक्षित रूप से लिखा जा सकता है। इसे गले में, कटि या बाहुओं में, कंठ और शिरोभाग पर धारण किया जा सकता है। ऐसा करने वाला व्यक्ति सभी काम और इच्छाएँ प्राप्त करता है, और यह श्रीराम द्वारा सत्य रूप में कहा गया है।

इति श्री ब्रह्माण्ड पुराणे श्री नारद एवं श्री अगस्त्य मुनि संवादे श्री राम प्रोक्तं एकमुखी हनुमत्कवचं सम्पूर्णम् ॥

यह भी पढ़े

उपनिषद की जानकारी

श्री सत्यनारायण कथा

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता प्रथम अध्याय

चार वेद की संपूर्ण जानकारी

विष्णुपुराण हिंदी में

अंत्यकर्म श्राद्ध हिंदी में

राघवयादवीयम्

Share
0

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share
Share