loader image

गरुड़ पुराण हिंदी में

महर्षि वेदव्यास ने अठारह पुराणों का संकलन किया। इन में से तीन पुराण- श्रीमद्भागवत् महापुराण, विष्णुपुराण और गरुड़पुराण (Garuda Puran Hindi) को कलिकाल में महत्त्वपूर्ण माना गया है। इन तीनों पुराणों में भी गरुड़पुराण का महत्त्व अधिक है।

गरुड़ पुराण (Garuda Puran Hindi) हिन्दू धर्म के 18 पवित्र पुराणों में से वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बन्धित एक महापुराण है। यह पुराण सनातन हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद सद्गति प्रदान करने वाला माना जाता है। भगवान श्री हरी विष्णु को इस पुराण के अधिष्ठातृ देव माना जाता हैं। इसलिए यह पुराण वैष्णव पुराण है। गरुड़ पुराण को हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्रवण करने का प्रावधान है।

यहां एक क्लिक में पढ़े ~ गरुड़ पुराण अंग्रेजी में

गरुड़ पुराण कहता हे की मनुष्य के कर्मो का फल मनुष्य को जीवन में तो मिलता है। परन्तु मनुष्य के मृत्यु के बाद भी कर्मो का फल मिलता है। इसलिए कर्मो के ज्ञान को प्राप्त करने के लिए हिन्दू धर्म में किसी मनुष्य के मृत्यु के बाद मृतक को गरुड़ पुराण का श्रवण कराने से मृतक को जन्म-मृत्यु से जुड़े सभी सत्य का ज्ञान जान सकता है।

परिचय:-

गरुड़ पुराण (Garuda Puran Hindi) में 19,000 श्लोक है। परन्तु वर्तमान समय में पाण्डुलिपियों में कुल 8,000 श्लोक ही उपलब्ध हैं। इस पुराण को पूर्वखण्ड और उत्तरखण्ड दो भागो में विभाजित किया गया है। पूर्वखण्ड में 229 अध्याय हैं। उत्तरखण्ड में अध्यायों की संख्या 34 से लेकर 49 तक मिलती है। पूर्वखण्ड को आचार खण्ड भी कहते हैं। उत्तरखण्ड को प्रेतखण्ड’ या ‘प्रेतकल्प’ भी कहा जाता है।

गरुड़ पुराण की 90 प्रतिशत सामग्री पूर्वखण्ड में है, और 10 प्रतिशत सामग्री उत्तरखण्ड में है। गरुड़ पुराण के पूर्वखण्ड में विविध विषयों का समावेश किया गया है। इसमें जीव और जीवन से सम्बन्धित कथाऐं हैं। प्रेतखण्ड में मुख्य मनुष्य के मृत्यु बाद जीव की गति और उससे जुड़े हुए कर्मो से सम्बन्धित कथाऐं है। गरुड़ पुराण वैसा नहीं हे, जैसा पुराण के लिए भारतीय साहित्य में कहा गया है। इस पुराण में वर्णित कथाऐ भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ को सुनाई थी। फिर गरुड़जी ने महर्षि कश्यप को सुनाई थी।

गरुड़ पुराण के पूर्वखण्ड में भगवान विष्णु की भक्ति और उपासना की विधियों का वर्णन है। प्रेतखण्ड में प्रेत कल्प का विस्तार से वर्णन के साथ-साथ विभिन्न नरकों में जीव के जाने का वर्णन मिलता है। इसमें मृत्यु के बाद आत्मा की क्या गति होती है, आत्मा किस प्रकार की योनियों में जन्म लेता उसका वर्णन, प्रेत योनि से मुक्ति किस प्रकार पाई जाती उसका वर्णन, और नरकों के दारूण दुख से कैसे मोक्ष प्राप्त करने का वर्णन आदि का विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है।

 

गरुड़ पुराण कथा:-

भगवान श्री हरी विष्णु का वाहन पक्षीराज गरुड़ को कहा जाता है। एक बार भगवान विष्णु से पक्षीराज गरुड़ ने प्रश्न पूछा की मृत्यु के बाद प्राणियों की स्थिति, जीव की यमलोक-यात्रा, विभिन्न कर्मों से प्राप्त होने वाले नरकों, योनियों तथा पापियों की दुर्गति से संबंधित अनेक गूढ़ एवं रहस्ययुक्त है।

गरुड़जी की जिज्ञासा शान्त करने लिए भगवान विष्णु ने उन्हें जो ज्ञानमय उपदेश दिया था, यह ज्ञानमय उपदेश को गरुड़ पुराण कहते है। गरुड़जी के प्रश्न पूछने पर ही स्वयं भगवान विष्णु के मुख से मृत्यु के उपरान्त के गूढ़रहस्य और परम कल्याणकारी वचन प्रकट हुए। भगवान श्री हरी विष्णु के निर्धारित यह पुराण प्रमुख रूप से वैष्णव पुराण है। गरुड़ पुराण ज्ञान ब्रह्माजी ने महर्षि वेदव्यास को सुनाया था। तत्पश्चात् महर्षि वेदव्यास ने अपने शिष्य महर्षि सूतजी को तथा महर्षि सूतजी ने नैमिषारण्य में शौनकादि ऋषि-मुनियों को प्रदान किया था।

हिन्दू धर्म के सोलह संस्कारों में तीन जन्म से पूर्व, चार जीवनकाल में तथा एक संस्कार मृत्यु के उपरान्त किया जाने वाला अन्तिम अर्थात् अन्त्येष्टि कर्म है, जिस का सम्बन्ध दाहसंस्कार व अन्य अनुष्ठानों से है। ‘मत्स्य पुराण’ के अनुसार मृत्यु से बारह दिनों तक मृतक की आत्मा अपने आवास व सगे-सम्बन्धियों के आस-पास ही रहती है। मृतक की आत्मा अन्त्येष्टि कर्म का संचालन कर रहे पुरोहित के शरीर में भी देवरूप में प्रवेश करती है। शास्त्रों के अनुसार मृतक की आत्मा गरुड़पुराण की कथा को सुनती है जिस से कि उसे मुक्ति मिल सके। ‘पितृमेधसूत्र‘ के अनुसार जिस प्रकार मनुष्य को जीवन में संस्कार के निर्वहन से जय मिलती है, उसी प्रकार मरणोपरान्त किए जाने वाले अन्त्येष्टि संस्कार के निर्वहन से मृतक को स्वर्ग प्राप्त होता है।

प्रत्येक व्यक्ति के लिए दो संस्कार ऋणस्वरूप हैं जिन्हें करना अनिवार्य है, पहला- जन्म से सम्बन्धित जातकर्म और दूसरा – अन्त्येष्टिकर्म ।

 

यह भी पढ़े:

सम्पूर्ण श्रीमद भागवत गीता in Hindi

“वाल्मीकि रामायण” in Hindi

“महाभारत” in Hindi

“रामचरितमानस” in Hindi

 

Share

Related Books

Share
Share