गीता संग्रह हिंदी में
‘गीता’- इस शब्दका सनातन धर्म और संस्कृतिमें अत्यन्त विशिष्ट महत्त्व है। कुरुक्षेत्रमें युद्धके लिये कौरवों और पाण्डवोंकी सेनाएँ भयानक अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित होकर खड़ी थीं। महाविनाशकी स्पष्ट सम्भावना तथा स्वजनोंके मोहके कारण अर्जुन अपने कर्तव्यसे विचलित होकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये थे। इन्हीं विषम परिस्थितियों में भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुनको जिस ज्ञानामृतका पान कराकर उत्साहित एवं स्वस्थचित्त किया, वही भगवद्गीता है। महाभारतमें समाहित सात सौ श्लोकोंवाली इस दिव्य रचनामें जो ज्ञान समाहित है, वह मनुष्यमात्रके लिये विषम-से-विषम परिस्थितियों में भी संजीवनीतुल्य है। इसी कारण यह जन-जनमें लोकप्रिय होकर मात्र ‘गीता’ के नामसे प्रख्यात हुई।
वह धर्म ब्रह्मपदकी प्राप्ति कराने के लिये पर्याप्त था, वह सारा का सारा धर्म उसी रूपमें फिर दुहरा देना अब मेरे वशकी बात भी नहीं है। उस समय योगयुक्त होकर मैंने परमात्मतत्त्वका वर्णन किया था। अब उस विषयका ज्ञान करानेके लिये मैं एक प्राचीन इतिहासका वर्णन करता है। फिर भगवान्ने अर्जुनको जो नवीन उपदेश दिया, वह उत्तरगीताके रूप में उपलब्ध होता है।
गीता संग्रह पुस्तक में गणेशगीता, अष्टावक्रगीता, भिक्षुगीता, नारदगीता, पुत्रगीता, रामगीता, उत्तरगीता, अवधूतगीता, यमगीता, भगवतीगीता इत्यादि 25 गीता-ग्रन्थों का अनुवाद संग्रह किया गया है।