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Hanumanji ki Asht Siddhiya

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Hanumanji ki Asht Siddhiya

हनुमान जी और उनकी आठ सिद्धियां (Asht Siddhiya)

श्री हनुमान जी, जिन्हें बजरंगबली, पवनपुत्र, महावीर और संकटमोचन जैसे अनेक नामों से जाना जाता है, हिन्दू धर्म में एक अत्यंत पूज्य और शक्तिशाली देवता हैं। हनुमान जी को अष्ट सिद्धियाँ (Asht Siddhiya) प्राप्त थीं — आठ ऐसी दिव्य शक्तियाँ जो किसी भी साधारण प्राणी के लिए दुर्लभ हैं। ये शक्तियाँ न केवल उन्हें अलौकिक बनाती हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि सच्ची भक्ति और सेवा से कोई भी व्यक्ति आध्यात्मिक ऊँचाइयाँ प्राप्त कर सकता है। वे शक्ति, बुद्धि, भक्ति और वीरता के प्रतीक हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हनुमान जी को आठ दिव्य सिद्धियाँ प्राप्त थीं, जिन्हें अष्ट सिद्धियाँ कहा जाता है?

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सनातन धर्म में श्री हनुमान जी का स्थान अत्यंत विशिष्ट और गौरवमयी है। वे केवल एक वीर योद्धा या वानर नहीं, बल्कि अद्वितीय भक्ति, अद्भुत बल, और दिव्य बुद्धि के स्वरूप हैं। जब भी भक्तिभाव, साहस और त्याग की बात होती है, तो हनुमान जी का नाम सर्वोपरि होता है। उनका नाम लेते ही मन में श्रद्धा, साहस और सुरक्षा का भाव जागृत होता है। वे हर युग में अपने भक्तों की रक्षा करने वाले संकटमोचन हैं।

हनुमान जी की अष्ट सिद्धियाँ(Asht Siddhi)—अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व—ना केवल चमत्कारी शक्तियाँ हैं, बल्कि उनमें गहरे आध्यात्मिक और नैतिक संदेश भी छिपे हुए हैं। इन सिद्धियों से वे इच्छानुसार आकार बदल सकते थे, आकाश में उड़ सकते थे, और राक्षसों को परास्त कर सकते थे। यह लेख हनुमान जी की उन्हीं आठ सिद्धियों पर आधारित है – उनके अर्थ, प्रयोग और आध्यात्मिक महत्व को समझने का प्रयास।

अष्ट सिद्धियाँ (Asht Siddhiya) क्या हैं?

“सिद्धि” का अर्थ है—ऐसी अलौकिक शक्ति जो साधना, तपस्या या दिव्य कृपा से प्राप्त होती है। हिन्दू धर्म में ऐसी कई सिद्धियों का उल्लेख है, लेकिन विशेष रूप से आठ प्रमुख सिद्धियाँ हैं जिन्हें अष्ट सिद्धियाँ कहा जाता है। ये शक्तियाँ योगियों, तपस्वियों और महान आत्माओं को प्राप्त होती हैं, और हनुमान जी इन सभी सिद्धियों के स्वामी माने जाते हैं। इन सिद्धियों के बारे में हनुमान चालीसा में तुलसीदास जी लिखते हैं:

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, अस बर दीन्ह जानकी माता।”
अर्थात: हनुमान जी को माता सीता ने वरदान दिया कि वे आठों सिद्धियाँ और नौ निधियाँ देने में सक्षम होंगे।

हनुमान जी की आठ सिद्धियाँ:

अणिमा (Aṇima) –

अणिमा का अर्थ है – अणु के समान सूक्ष्म हो जाना। यह सिद्धि साधक को अपनी देह को इतना सूक्ष्म बना लेने की शक्ति देती है कि वह किसी के भी नेत्रों से ओझल हो जाए। जब कोई व्यक्ति इस सिद्धि को प्राप्त कर लेता है, तो वह हवा में, किसी बंद दरवाज़े के आर-पार या सूक्ष्म मार्गों से प्रवेश कर सकता है, जैसे कि कोई कण या तरंग।

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लंका दहन की कथा में हनुमान जी ने अणिमा सिद्धि का अद्भुत उपयोग किया। जब वे सीता माता की खोज में लंका पहुँचे, तो राक्षसों की नगरी में बिना देखे जाना संभव नहीं था। ऐसे में उन्होंने अपने शरीर को इतना सूक्ष्म कर लिया कि वे लंका के भीतर सहज ही प्रवेश कर गए।

अणिमा सिद्धि केवल शारीरिक रूपांतरण नहीं है, बल्कि यह अहंकार को सूक्ष्म करने का प्रतीक भी है। हनुमान जी ने यह सिद्ध किया कि “जहाँ सेवा भाव होता है, वहाँ अपने अस्तित्व को छोटा करना पड़ता है।”

महिमा (Mahima) –

महिमा का अर्थ है – अपने शरीर को अनंत, विशाल और विराट बना लेने की शक्ति।
इस सिद्धि से साधक अपने आकार को इतना बढ़ा सकता है कि वह पर्वतों से ऊँचा और दिशाओं से व्यापक प्रतीत हो। यह केवल भौतिक विस्तार नहीं, बल्कि आत्मबल और दिव्यता के प्रभाव का विस्तार भी दर्शाता है।

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हनुमान जी ने कई अवसरों पर महिमा सिद्धि का प्रयोग किया। विशेष रूप से तब जब वे रामायण के युद्ध प्रसंगों में या संजीवनी लाने के समय हिमालय पर्वत तक गए, तब उन्होंने अपना आकार इतना विशाल कर लिया कि पर्वत उठाना भी उनके लिए सहज हो गया। महिमा सिद्धि केवल शारीरिक विस्तार नहीं है, बल्कि यह महानता, आत्मविश्वास और ब्रह्म चेतना का प्रतीक है। हनुमान जी ने इस सिद्धि का प्रयोग कभी अभिमान से नहीं किया, बल्कि धर्म की रक्षा और राम कार्य की पूर्ति हेतु किया।

गरिमा (Garima) –

गरिमा का अर्थ है – अपने शरीर को इतना भारी बना लेना कि कोई उसे हिला भी न सके। यह सिद्धि साधक को गुरुत्वाकर्षण से परे, द्रव्य और द्रव्यरहित जगत पर नियंत्रण की शक्ति देती है। जब कोई इस सिद्धि को प्राप्त कर लेता है, तो वह अपने शरीर को पर्वत से भी भारी कर सकता है — जिसे कोई न उठा सके, न हिला सके।

हनुमान जी ने गरिमा सिद्धि का उपयोग कई बार किया, विशेषतः तब जब उन्हें शत्रुओं को भ्रमित करना होता था या अडिग शक्ति का परिचय देना होता था। गरिमा सिद्धि केवल शरीर को भारी बनाने की नहीं, बल्कि दृढ़ निष्ठा, आत्मबल, और स्थिरता की भी प्रतीक है। हनुमान जी ने यह सिद्ध किया कि “जो सत्य और धर्म पर अडिग रहता है, उसे कोई हिला नहीं सकता।”

लघिमा (Laghima) –

लघिमा का अर्थ है – अपने शरीर को इतना हल्का बना लेना कि वह वायु से भी अधिक सूक्ष्म हो जाए। यह सिद्धि साधक को गुरुत्वाकर्षण के सभी नियमों से मुक्त कर देती है। इस शक्ति से वह आकाश में उड़ सकता है, जल पर चल सकता है, और कहीं भी बिना अवरोध गति कर सकता है।(Asht Siddhiya)

हनुमान जी ने लघिमा सिद्धि का अद्भुत प्रयोग तब किया जब वे समुद्र लांघकर लंका पहुँचे। जब जामवंत ने उन्हें उनकी शक्ति की याद दिलाई, तब हनुमान जी ने अपने शरीर को हल्का और ऊर्जावान कर आकाश मार्ग से उड़ान भरी। लघिमा सिद्धि का आंतरिक अर्थ है – मन और अहंकार को हल्का करना। जब व्यक्ति मोह, माया और अभिमान से मुक्त होता है, तब उसका चित्त हल्का होता है और वह जीवन के कठिनतम मार्गों को भी पार कर सकता है।

प्राप्ति (Prapti) –

प्राप्ति का अर्थ है – इच्छानुसार किसी भी वस्तु या स्थान की प्राप्ति। यह सिद्धि साधक को कहीं भी, किसी भी समय, किसी भी वस्तु को प्राप्त करने की अद्भुत शक्ति देती है — चाहे वह स्थान भौतिक हो या आध्यात्मिक, और वस्तु सुलभ हो या दुर्लभ।

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हनुमान जी ने प्राप्ति सिद्धि का उपयोग कई बार किया, लेकिन सबसे प्रसिद्ध प्रसंग है – संजीवनी बूटी लाने का। जब लक्ष्मण मूर्छित हो गए और हनुमान जी को हिमालय से विशेष औषधि लाने को कहा गया, तो उन्होंने बिना देरी किए, अत्यंत तीव्रता से पर्वत तक यात्रा की। प्राप्ति सिद्धि हमें सिखाती है कि “जब नीयत सही हो, सेवा का भाव हो, और मन में श्रद्धा हो, तब कोई भी चीज असंभव नहीं रहती।

प्राकाम्य (Prakamya) –

प्राकाम्य का अर्थ है – जिस वस्तु, स्थान, या कार्य की इच्छा हो, वह तुरंत पूर्ण हो जाए।
यह सिद्धि साधक को प्राकृतिक नियमों के बाहर जाकर कार्य सिद्ध करने की शक्ति देती है। इससे व्यक्ति जल, आकाश, या किसी भी माध्यम में जाकर इच्छित कार्य कर सकता है।

हनुमान जी ने प्राकाम्य सिद्धि का अद्भुत उपयोग तब किया जब वे लंका में अशोक वाटिका पहुँचे और वहाँ सीता माता को ढूँढ़ निकाला। प्राकाम्य सिद्धि केवल बाहरी इच्छाओं की पूर्ति नहीं है, बल्कि यह संकल्प की शुद्धता और मन की एकाग्रता का फल है। हनुमान जी की यह सिद्धि हमें सिखाती है कि “अगर मन पूरी तरह एक लक्ष्य पर केंद्रित हो और वह लक्ष्य निस्वार्थ सेवा हो — तो ब्रह्मांड की सारी शक्तियाँ भी उस इच्छा को पूर्ण करने में सहायक बन जाती हैं।(Asht Siddhiya)

ईशित्व (Isitva) –

ईशित्व का अर्थ है – अपने इच्छानुसार सभी वस्तुओं, प्राणियों और घटनाओं पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त करना, अर्थात् सम्पूर्ण ब्रह्मांड की सत्ता पर आधिपत्य। यह सिद्धि साधक को परम सत्ता की तरह कार्य करने की क्षमता देती है। इस सिद्धि के द्वारा साधक सर्वशक्तिमान की तरह कार्य कर सकता है, उसे अपने आसपास के हर प्राणी और परिस्थिति पर पूर्ण प्रभाव डालने की शक्ति मिलती है।

हनुमान जी ने ईशित्व सिद्धि का अद्भुत उपयोग तब किया, जब उन्होंने राक्षसों को अपनी शक्ति का एहसास कराया। रामायण में एक प्रसंग है, जब हनुमान जी ने अपनी शक्तियों से राक्षसों को शरण देने के बजाय उन्हें पराजित किया। ईशित्व सिद्धि का एक गहरा अर्थ है – सभी जीवों के प्रति दया और निष्कलंक उद्देश्य। हनुमान जी ने इस सिद्धि को कभी भी अपने स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि रामकाज और धर्म की रक्षा के लिए इस्तेमाल किया।

वशित्व (Vasitva) –

वशित्व का अर्थ है – किसी भी वस्तु, प्राणी या स्थिति को अपनी इच्छानुसार वश में करना। यह सिद्धि साधक को अपने आसपास के सभी प्राणियों, तत्वों और घटनाओं पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त करने की शक्ति देती है। इसका मतलब है कि साधक बिना किसी संघर्ष या बाधा के अपनी इच्छाओं और कार्यों को साकार कर सकता है।

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हनुमान जी ने वशित्व सिद्धि का उपयोग कई अवसरों पर किया, विशेषकर जब उन्होंने राक्षसों और दुष्ट शक्तियों को पराजित किया और अपनी उपस्थिति से उनके हृदयों में भय उत्पन्न किया। वशित्व सिद्धि हमें सिखाती है कि “जब हमारा मन शुद्ध होता है और हमारा उद्देश्य धर्म के अनुसार होता है, तब हम अपने भीतर से बाहर की दुनिया को भी प्रभावित कर सकते हैं।

हनुमान जी की अष्ट सिद्धियाँ(Asht Siddhiya) न केवल उनकी शक्ति और क्षमता को दर्शाती हैं, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती हैं कि शक्ति का सही उपयोग हमेशा धर्म, भक्ति और मानवता की सेवा के लिए होना चाहिए। हनुमान जी ने हमेशा अपनी शक्तियों का प्रयोग राम के भक्ति मार्ग को फैलाने, अधर्म से युद्ध करने और समाज की भलाई के लिए किया।

यह हमें यह सिखाता है कि यदि हम अपने जीवन में ये सिद्धियाँ प्राप्त नहीं कर सकते, तो भी हमें अपनी शक्ति और क्षमताओं का उपयोग अच्छे कार्यों के लिए करना चाहिए।

हनुमान जी की आठ सिद्धियाँ (Asht Siddhiya) हमें न केवल भक्ति और सेवा का महत्व सिखाती हैं, बल्कि यह भी दिखाती हैं कि अगर व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति निष्ठावान हो, तो वह किसी भी कठिनाई को पार कर सकता है। हनुमान जी का जीवन हमें प्रेरणा देता है कि जीवन में चाहे जैसे भी हालात हों, हमें अपने आत्मविश्वास और शक्तियों पर विश्वास रखना चाहिए।

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