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हरिवंश पुराण हिंदी में

हरिवंश पुराण (Harivamsha Puran) वेदार्थप्रकाशक महाभारत ग्रन्थका ही अन्तिम पर्व है। आदिपर्व के अनुक्रमणिकाध्याय में महाभारत को सौ पर्वो वाला ग्रन्थ बतलाया गया है। उसके अन्तिम तीन पर्व इस हरिवंश पुराण में ही शामिल हैं। यह बात अनुक्रमणिकाध्यायमें स्पष्टरूपसे निर्दिष्ट है-
हरिवंशस्ततः पर्व पुराणं खिलसंज्ञितम् ।
विष्णुपर्व शिशोश्चर्या विष्णोः कंसवधस्तथा ॥
भविष्यं पर्व चाप्युक्तं खिलेष्वेवाद्भुतं महत् ।
एतत्पवंशतं पूर्ण व्यासेनोक्तं महात्मना ॥

जैसे वेदविहित सोमयाग उपनिषदोंके बिना साङ्ग सम्पन्न नहीं होता, वैसे ही श्रीमहाभारतका पारायण भी हरिवंश-पारायणके बिना पूर्ण नहीं होता। किंतु हरिवंश पुराण का पारायण गीता आदिकी तरह स्वतन्त्र भी किया जाता है। इस तरह यह पुराणं खिलसंज्ञितम् आदिपर्व (२८२ ) के आधारपर ‘हरिवंशपुराण’ तथा ‘हरिवंशपर्व’ इन दोनों ही नामोंसे विद्वानोंके बीच विख्यात है।

पुराण भारतका वास्तविक इतिहास है। पुराणों से ही भारतीय जीवनका आदर्श और भारत की सनातन संस्कृति का वास्तविक ज्ञान प्राप्त होता है। प्राचीन भारतीयता की झाँकी, भारतके वास्तविक उत्कर्षकी झलक पुराणों में ही प्राप्त होती है। पुराण न केवल इतिहास है, परंतु वेद के गूढ़ तत्त्वों की अदभुत व्याख्या है। इसमें विश्व कल्याण के त्रिविध उन्नतिका सुन्दर सोपान प्रस्तुत किया गया है।

हरिवंश पुराण (Harivamsha Puran) महाभारत ग्रंथ का अन्तिम हरिवंश पर्व है। इसमें महाभारत के अन्तिम तीन पर्वों को मिलाया गया है। ‘हरिवंशस्ततः पर्व पुराणं खिलसंज्ञितम्’। इसलिये यह पुराण ‘हरिवंश पुराण’ और महाभारत के ‘हरिवंश पर्व’ इन दोनों नामों से प्रसिद्ध है।

श्रवणं हरिवंशस्य कर्तव्यं च यथाविधि ।
जुहुयाच्च दशांशेन दूर्वामाज्यपरिप्लुताम् ॥

अर्थ:
यों भी इसके श्रवण की बहुत महिमा है। जो फल अठारहों पुराणों सुनने से मिलता है, वह अकेले हरिवंश पुराण के सुनने से हो जाता है-

यह हरिवंश पर्व, विष्णु पर्व और भविष्य पर्व तीन भागों में बांटा हुआ है। भविष्य पर्व में कहा गया है की ‘जो फल अठारहों पुराणों के सुनने से मिलता है, वह अकेले हरिवंश पुराण को केवल सुनने से ही मिलता है। हरिवंश पुराण को सुनने पर शरीर, वाणी और मनके द्वारा किये गये पापों का संहार हो जाता है। जैसे सूर्य के उदय होने पर अन्धकार का नाश होता है। उसी तरह जो हरिवंश पुराण को सुनता है और सुनाता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर भगवान श्री हरी विष्णु के परम धाम को प्राप्त हो जाता है।

 

परिचय:-

हरिवंशपुराण (Harivamsha Puran) में हरिवंशपर्व, विष्णुपर्व और भविष्यपर्व यह 3 पर्व है। इस पुराण के तीनो पर्व के 318 अध्याय और 12,000 श्लोक हैं। हरिवंश पुराण में वैवस्वत मनु और यम की उत्पत्ति के बारे में बताया है और साथ ही भगवान विष्णु के अवतारों के बारे में बताया गया है। आगे देवताओं का कालनेमि के साथ युद्ध का वर्णन है, जिसमें भगवान विष्णु ने देवताओं को सान्त्वना दी और अपने अवतारों की बात निश्चित कर देवताओं को अपने स्थान पर भेज दिया। इसके बाद नारद और कंस के संवाद हैं।

इस पुराण में भगवान विष्णु का कृष्ण के रूप में जन्म बताया गया है। जिसमें कंस का देवकी के पुत्रों का वध से लेकर कृष्ण के जन्म लेने तक की कथा है। फिर भगवान कृष्ण की ब्रज यात्रा के बारे में बताया है, जिसमें कृष्ण की बाल-लीलाओं का वर्णन है।

इसमें धेनुकासुर वध, गोवर्धन उत्सव का वर्णन किया गया है। आगे कंस की मृत्यु के साथ उग्रसेन के राज्यदान का वर्णन है। आगे बाणसुर प्रसंग में दोनों के विषय में बताया है। भगवान कृष्ण के द्वारा शंकर की उपासना का वर्णन है। हंस-डिम्भक प्रसंग का वर्णन है। अंत में श्रीकृष्ण और नन्द-यशोदा मिलन का वर्णन है।

 

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