मङ्गलाचरण हिंदी में
मंगलाचरण (Mangalacharan) वह श्लोक अथवा पद्य जो शुभ कार्य के पहले मंगल कामना से पढ़ा या कहा जाता है, उसे मङ्गलाचरण कहते हैं। अर्थात किसी का कार्य श्रीगणेश करने से पहले पढ़ा जानेवाला कोई मांगलिक मंत्र, श्लोक या पद्यमय रचना। प्रायः ग्रन्थों के आरम्भ में उनकी सफल समाप्ति के निमित्त श्लोक या पद्य लिखा जाता है। उदाहरण के लिए, गोस्वामी जी ने प्रायः सर्वत्र शिव जी की या गणेश जी की वन्दना की है।
मंगलाचरण (Mangalacharan) का श्लोक देखने पर ऐसा जान पड़ता है कि यहाँ नारायण शब्द का अर्थ है भगवान श्री कृष्ण और नरोत्तम का अर्थ है नर अर्जुन। महाभारत में प्रायः सर्वत्र इन्हीं दोनों का नर-नारायण के अवतार के रूप में उल्लेख हुआ है। मंगलाचरण में ग्रन्थ के इन दोनों प्रधान पात्र तथा भगवान के मूर्ति-युगल को प्रणाम करना मंगलाचरण को नमस्कारात्मक होने के साथ ही वस्तु निर्देशात्मक भी बना देता है।
मंगलाचरण अथर्ववेद चतुर्थ काण्डका 13वाँ सूक्त तथा ऋग्वेदके दशम मण्डलका 137वाँ सूक्त ‘ रोगनिवारण- सूक्त’ के नामसे प्रसिद्ध हैं। अथर्ववेदमें अनुष्टुप् छन्दके इस सूक्तके ऋषि शंताति तथा देवता चन्द्रमा एवं विश्वेदेवा हैं । जब कि ऋग्वेदमें प्रथम मन्त्रके ऋषि भरद्वाज, द्वितीयके कश्यप, तृतीयके गौतम, चतुर्थके अत्रि, पञ्चमके विश्वामित्र, षष्ठके जमदग्नि तथा सप्तम मन्त्रके ऋषि वसिष्ठजी हैं और देवता विश्वेदेवा हैं । इस सूक्तके जप- पाठसे रोगोंसे मुक्ति अर्थात् आरोग्यता प्राप्त होती है। ऋषिने रोगमुक्ति के लिये ही देवोंसे प्रार्थना की है।