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सामवेद हिंदी में

भारतीय संस्कृति के सबसे प्राचीन धार्मिक ग्रंथ वेद हैं, जो चार हिस्सों में विभाजित ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वेद हैं। इस अद्‌भुत ज्ञान कोष के वेदो मे सामवेद का स्थान तृतीय क्रम पर आता हैं। संपूर्ण सामवेद में कुल 1875 संगीतमय मंत्र हैं, इस में 1504 मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं। सामवेद में 99 मंत्र के अलावा सभी मंत्र ऋग्वेद के ही पाए जाते हैं।

 

सामवेद के दो भाग हैं :-

1 आर्चिक और
2 गान

 

सामवेद का अर्थ :-

सामवेद हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध चार वेदों में से एक है। ‘साम‘ शब्द का अर्थ है ‘गान‘, सामवेद का अर्थ गीत हैं, क्योकि इस में मुख्य गीत-संगीत हैं। सामवेद में यज्ञ, अनुष्ठान और हवन में गाए जाने वाले मंत्र हैं। ऋषि मुनियो द्वारा सामवेद को संगीत के साथ गान करके देवताओ की स्तुति की जाती थी। सामवेद में वर्तमान समय में प्रपंच ह्रदय, दिव्यावदान, चरणव्युह तथा जैमिनि गृहसूत्र को देखने पर 13 शाखाओं का पता चलता है। इस 13 सखाओ में से 3 सखाये मिलती हैं जो निचे दी गई हैं।

 

सामवेद में तीन आचार्यों की सखाए हैं :-

1 कौथुमीय,
2 जैमिनीय और
3 राणायनीय

सामवेद के प्रमुख देव सूर्य देव हैं। इस में मुख्य सूर्य देव की स्तुति के मंत्र हैं, किन्तु इंद्र सोम का भी इसमें पर्याप्त वर्णन है। भारतीय संगीत के इतिहास के क्षेत्र में सामवेद का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। सामवेद भारतीय संगीत का मूल रूप कहा जा है। सामवेद का प्रथम द्रष्टा वेदव्यास के शिष्य जैमिनि को माना जाता है।
सामवेद गीत-संगीत में प्रमुख है। प्राचीन आर्यों द्वारा सामवेद के मंत्रो का गान किया जाता था। चार वेदो में आकर में सामवेद सब से छोटा वेद हैं। सामवेद के 1875 मन्त्रों में से 99 को छोड़ कर सभी ऋगवेद के हैं, केवल 17 मंत्र अथर्ववेद और यजुर्वेद के पाये जाते हैं। फ़िर भी सामवेद की प्रतिष्ठा सब से अधिक हैं।

 

सामवेद का महत्त्व :-

सामवेद का महत्त्व भगवद गीता में कहा हैं की वेदानां सामवेदोऽस्मि।। इस के अलावा महाभारत के अनुशासन पर्व में भी सामवेद की महत्ता का वर्णन मिलता की सामवेदश्च वेदानां यजुषां शतरुद्रीयम्।। अग्निपुराण में सामवेद के मंत्रो का विधिपूर्वक जप करने से मनुष्य रोग-पीड़ा से मुक्त हो जाता हे, और मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं। सामवेद के मंत्रो को गायन पद्धति ऋषिओ द्वारा विकसित की गई हैं। इस तथ्य को विद्वानों ने भी स्वीकार किया हे की समस्त स्वर, ताल, लय, छंद, नृत्य मुद्रा, भाव आदि सामवेद के ही अंश हैं।

 

सामवेद के श्रेष्ठ तथ्य :-

  • सामवेद से तात्पर्य है कि वह ग्रन्थ जिसके मंत्र गाये जा सकते हैं, और जो संगीतमय भी हैं।
  • यज्ञ, अनुष्ठान और हवन के समय में मंत्रो का गायन किया जाता हैं, इसमें यज्ञानुष्ठान के उद्गातृ वर्ग के उपयोगी मंत्रो का संकलन है।
  • इसका नाम सामवेद इसलिये पड़ा है कि इसमें गायन-पद्धति के निश्चित मंत्र ही हैं।
  • सामवेद में इसके अधिकांश मन्त्र ॠग्वेद में उपलब्ध होते हैं, कुछ मन्त्र स्वतन्त्र भी हैं. सामवेद में मूल रूप से 75 मंत्र हैं, और शेष ॠग्वेद से लिये गये हैं।
  • वेद की महानता, गायन करने वाले जो कि साम गान करने वाले कहलाते थे। उन्होंने वेदगान में केवल तीन स्वरों के प्रयोग का उल्लेख किया है जो उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित कहलाते हैं।
  • सामगान व्यावहारिक संगीत था. उसका विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं हैं।
  • वैदिक काल में कई प्रकार के वाद्य यंत्रों का उल्लेख मिलता है, जिनमें से तंतु वाद्यों में कन्नड़ वीणा, कर्करी और वीणा, घन वाद्य यंत्र के अंतर्गत दुंदुभि, आडंबर, वनस्पति तथा सुषिर यंत्र के अंतर्गतः तुरभ, नादी तथा बंकुरा आदि यंत्र विशेष उल्लेखनीय हैं।

 

संगीत स्वर :-

सामवेद की गायन पद्धति का वर्णन नारदीय शिक्षा ग्रंथ में मिलता है, जिसको आधुनिक भारतीय और कर्नाटक संगीत में स्वरों के क्रम में सा-रे-गा-मा-पा-धा-नि-सा के नाम से जानते हैं।
षडज् – सा
ऋषभ – रे
गांधार – गा
मध्यम – म
पंचम – प
धैवत – ध
निषाद – नि

 

परंपरा :-

शाखा– वेदो में सामवेद की 1001 शाखाएँ मिलती हे जो ऋग्वेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद से बहोत ज्यादा हैं। सामवेद की 1001 सखाओ में मंत्रों के अलग अलग व्याखान, गाने के तरीके और मंत्रों के क्रम मिलते हैं। यह भारतीय विद्वान इसे एक ही वेदराशि का अंश मानते हैं, पश्चिमी विद्वान इसे बाद में लिखा गया ग्रंथ मानते हैं। परंतु सामवेद का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता हैं, जिसे भारतीय संस्कृति में प्रथम स्थान प्राप्त हैं और पश्चिमी लोग पुरातन वेद के नाम से जानते है। ऋग्वेद में सामगान या साम की चर्चा 31 जगहों पर हुई है। जो वैरूपं, बृहतं, गौरवीति, रेवतं, अर्के इत्यादि नामों से. यजुर्वेद में सामगान को रथंतरं, बृहतं आदि नामों से जाना गया है। इसके अतिरिक्त ऐतरेय ब्राह्मण में भी बृहत्, रथंतरं, वैरूपं, वैराजं आदि की चर्चा की हुई मिलती हैं।

 

ब्राह्मण ग्रंथ :-

जैसा कि इसकी 1001 शाखाएँ थी इतने ही ब्राह्मण ग्रंथ भी होने चाहिएँ, पर करीब करीब 10 ही शाखाएँ उपलब्ध हैं – तांड्य. षटविँश इत्यादि. छान्दोग्य उपनिषद इसी वेद का उपनिषद है – जो सबसे बड़ा उपनिषद भी कहा जाता है।

 

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विवेकचूडामणि
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चाणक्य नीति
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