वेदांत दर्शन (ब्रह्मसूत्र) हिंदी में
वेदांत दर्शन (Vedant Darshan) (ब्रह्मसूत्र) के रचयिता महर्षि वेदव्यास ऋषि है। यह ग्रंथ बहोत ही महत्त्व पूर्ण है। वेदव्यास रचित ब्रह्मसूत्र में परब्रह्म के स्वरुप का अंगों और उपांगों सहित सम्पूर्ण वर्णन किया गया है। इसीलिये वेदांत दर्शन को ब्रह्मसूत्र के नाम से भी जाना जता है। वेदांत दर्शन (ब्रह्मसूत्र) ज्ञानयोग का स्रोत होने से मुनष्य को ज्ञान प्राप्ति करने की दिशा मिलती है।
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वेदांत दर्शन (ब्रह्मसूत्र) का मुख्य स्रोत उपनिषद को माना जाता है, जो वेदो के चरम सिद्धांतो का निदर्शन करता है। वैदिक साहित्य का अंतिम भाग उपनिषद को माना जाता है। इसलिए इन्हे “वेदांत दर्शन” भी कहते है। ‘वेदान्त’ शब्द का अर्थ ‘वेदों का अन्त’ होता है।
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Toggle(Vedant Darshan)परिचय:-
वेदांत दर्शन के रचियता महर्षि वेदव्याद ऋषि है। इस धर्म ग्रंथ में 4 अध्याय और 16 पाद, जो प्रत्येक अध्याय में चार पाद दिए गए है। वेदांत दर्शन में सूत्रों की कुल संख्या 555 मिलती है।
वेदांत दर्शन (Vedant Darshan) को उत्तर मीमांसा के नाम से भी जाना जाता है। इस ग्रंथ में ब्रह्म, जीव और प्रकृति के स्वरुप और परस्पर सम्बन्ध आदि के विषयों का वर्णन किया गया है। वेदांत दर्शन में ज्ञानयोग, अद्वैत वेदान्त, द्वैतकी, भास्कर, विशिष्ट, वल्लभ, चैतन्य, निम्बार्क, वाचस्पति मिश्र, सुरेश्वर और विज्ञान भिक्षु आदि शाखाएँ है। इन शाखाओ में द्वैत वेदान्त, विशिष्ट अद्वैत और द्वैतकी यह तीन शाखाएँ मुख्य है। यह तीनो शाखाओ को प्रचार करनेवाले आदि शंकराचार्य, रामानुज और मध्वाचार्य को माना जाता है।
वेदांत दर्शन भाष्य धार्मिक और उपनिषदों के पाठको के लिए अत्यन्त लाभकारी है। उपनिषदों के पारायण के बाद वेदांत दर्शन का पारायण अवश्य करना चाहिए। इसलिए आशा है कि वेदांत दर्शन का अवश्य पठनपाठन करेंगे।


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