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गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र हिंदी में

गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र (Gajendra Moksha in hindi) का उल्लेख सनातन धर्म के प्रधान ग्रंथ “भागवत पुराण” के 8 वें स्कन्ध में वर्णन मिलता है। इस स्तोत्र में कुल 33 श्लोक दिए गए हैं। गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ करने से पित्तर दोष से मुक्ति के लिए ख़ासा महत्वपूर्ण माना गया है। इस स्तोत्र का जाप या पाठ जीवन में किसी भी प्रकार की परेशानियों से तत्काल मुक्ति के लिए भी जाना जाता है। गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र (Gajendra Moksha in hindi) में गजेन्द्र नामक हाथी का मगरमच्छ के साथ हुए युद्ध का वर्णन किया गया है।

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गजेन्द्र मोक्ष (Gajendra Moksha in hindi) कथा:-

द्रविड़ देश में एक पाण्ड्यवंशी राजा इंद्रद्युम्न भगवान विष्णु के परम भक्त थे। राजा इंद्रद्युम्न राज्य को त्याग कर मलय-पर्वत पर रह कर तपस्या कर रहे थे। राजा इंद्रद्युम्न सर्वदा परमब्रह्म परमात्मा श्री हरि विष्णु की आराधना में तल्लीन रहते थे।

एक बार संयोग वश महर्षि अगस्त्य अपने समस्त शिष्यों के साथ राजा इंद्रद्युम्न के पास पहुँच गए। मौनव्रती राजा इंद्रद्युम्न परमब्रह्म परमात्मा के ध्यान में थे। राजा इंद्रद्युम्न ने महर्षि अगस्त्य पाद्ध, न अघ्र्य और न स्वागत नहीं किया। यह देख महर्षि अगस्त्य ने अपमान समजकर क्रोधवश राजा को शाप दे दिया घोर अज्ञानमयी हाथी की योनि प्राप्त हो। राजा इन्द्रद्युम्न ने इसे श्री विष्णु का विधान समझकर स्वीकार कर लिया।

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त्रिकुट नामक पर्वत के घने वन में हथनियों के साथ अत्यंत शक्तिशाली और अति पराक्रमी गजेन्द्र नाम का हाथी रहता था। बार गजेन्द्र अपने साथियो सहित प्यास की तीव्रता से व्याकुल होकर सरोवर के तट पर जा पहुंचा। जैसे ही तृषा बुझा ने के लिए सरोवर में प्रवेश किया तब अचानक एक मगरमच्छ ने आकर उसका पैर पकड़ लिया था। गजेन्द्र ने पैर छुड़ाने के लिए बहोत प्रयास किया परन्तु उसका वश नहीं चला, पैर नहीं छूटा। महर्षि अगत्स्य के शाप के कारण राजा इंद्रद्युम्न ही गजेन्द्र रूप में थे।

गजेन्द्र के प्राण संकट में पड़ गए पराक्रम का अहंकार चूर-चूर हो गया। परंतु पूर्व जन्म की निरंतर विष्णु भक्ति के फलस्वरूप गजेन्द्र को भगवत्स्मृति हो गई। गजेन्द्र मन को एकाग्र कर पूर्वजन्म में सीखे श्रेष्ठ स्त्रोत द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति करने लगा।

गजेन्द्र की स्तुति सुनकर भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर चक्र से मगरमच्छ का मुंह फाड़कर गजेन्द्र को मुक्त कर दिया। भगवान विष्णु ने सबके समक्ष कहा- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर तुम्हारी की हुई स्तुति करेंगे, उन्हें मैं मृत्यु के समय निर्मल बुद्धि का दान करूँगा।

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गजेन्द्र की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने सबके समक्ष कहा- “प्यारे गजेन्द्र ! जो लोग ब्रह्म मुहूर्त में उठकर तुम्हारी की हुई स्तुति (Gajendra Moksha in hindi) करेंगे, उन्हें मैं मृत्यु के समय निर्मल बुद्धि का दान करूँगा।

 

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