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Gyanvapi History in Hindi

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Gyanvapi History in Hindi

ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi History) को लेकर आज बहुत चर्चित विषय बना हुआ है। वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर और उसी मंदिर में बना विवादित ढांचा जिसे लोग ज्ञानवापी मस्जिद कहते हैं दोनों के निर्माण और पुनर्निमाण को लेकर कई तरह की धारणाएँ हैं। आज हम जानते हे, मंदिर और मस्जिद के 350 साल से भी ज्यादा पुराना विवाद का इतिहास और क्या कहते है हिंदू धर्म ग्रंथ भगवान शिव के विश्वनाथ मंदिर होने का दावा और क्या कहते हे इतिहासकार?

ज्ञानवापी का शाब्दिक अर्थ हे, ज्ञान+वापी = ज्ञान का तालाब। कुछ लोग जिसे ज्ञानवापी मस्जिद कह रहे है उसीके परिसर में एक 10 फीट गहरा कुआं है जिसका नाम ज्ञानवापी है। स्कंद पुराण के अनुसार स्वयं भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से कुएं का निर्माण किया है। भगवान शिव ने यहीं माता पार्वती को ज्ञान दिया था, इसलिए इस जगह का नाम ज्ञानवापी पड़ा था। धार्मिक मान्यता हे की ज्ञानवापी कुएं का जल बहुत ही पवित्र है, और काशी विश्वनाथ का अभिषेक किया जाता है। यह जल पीने से ज्ञान प्राप्त होता है।

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काशी विश्वनाथ मंदिर:-

सबसे प्रतिष्ठित और प्राचीन हिंदू मंदिरों में से एक, काशी विश्वनाथ मंदिर, भारत के उत्तर प्रदेश के पवित्र शहर वाराणसी (जिसे काशी भी कहा जाता है) में, पवित्र गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित, यह मंदिर हिंदू धर्म में सर्वोच्च भगवान शिव को समर्पित है। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है, और सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, वाराणसी को ब्रह्मांड का ब्रह्मांडीय केंद्र माना जाता है, और इस स्थान पर विश्वनाथ (ब्रह्मांड के भगवान) के रूप में भगवान शिव की उपस्थिति कालातीत मानी जाती है। किंवदंतियाँ कहती हैं कि इस शहर का निर्माण स्वयं भगवान शिव ने किया था, जिससे यह दुनिया के सबसे पुराने जीवित शहरों में से एक बन गया। स्कंदपुराण में काशी के माहात्म्य पर स्वतंत्र रूप से ‘काशीखंड’ नामक अध्याय लिखा गया हैं।

पुराणों के अनुसार भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती का विवाह तब कैलाश पर्वत ही उसका निवास स्थान था। फिर माता पार्वती उनके पिता के घर रहने गए। परंतु माता पार्वती को अपने पिता के घर मन लगा नहीं रहा था। जब भगवान शिव माता पार्वती से मिलने गए तो माता ने भगवान शिव के साथ ले जाने की प्रार्थना की। माता पार्वती की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव उन्हें सीधे अपने साथ काशी ले आये और तभी से वे काशी में ही रहने लगे। भगवान शिव कशी में आकर विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए।

काशी भगवान शिव की नगरी है, और यह शिव के त्रिशूल की नोक पर स्थित है। कशी विश्वनाथ मंदिर का अस्तित्व युग-युगांतर से यहां है, जिसका वर्णन वेद, पुराणमहाभारत और कई हिंदू धर्म ग्रंथो में किया गया है। भगवान काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन कई महान साधु-संत जैसे आदि गुरु शंकराचार्य, स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, गोस्वामी तुलसीदास आदि कर चुके हैं।

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स्कन्दपुराण के काशी खंड मे कथा–

भगवान विश्वेश्वर के तीर्थ ‘ज्ञानोद’ की कथा में कहा जाता है कि, ईशान कोण के अधिपति रूद्र ईशान ने इस तीर्थ में आकर भगवान शिव के ज्योतिर्मय लिंग का दर्शन किया और फिर महालिंग को स्नान कराने के लिए एक कुंड बनाया। उस कुंड से बहुत जल निकला और उससे भूमंडल का आवृत हुआ। रुद्र ईशान ने फिर सहस्त्र कलशों से जल भरकर ज्योतिर्मय विश्वेश्वर रूपी महालिंग को स्नान कराया। इस तीर्थ के स्पर्श से सर्वपाप दूर होते हैं और यहाँ स्पर्श और आचमन से अश्वमेघ तथा राजसूय यज्ञ का फल मिलता है। ज्ञानस्वरुप हमीं यहाँ द्रवमूर्ति बन जीवगण की जड़ता विनाश और ज्ञान उपदेश करते हैं। (काशीखण्ड ३०/३२/३३)

महाभारत में कशी विश्वनाथ उल्लेख –

“ततो वाराणसीं गत्वा अर्चयित्वा वषध्वजम”
“ततो (तब) वाराणसीं (वाराणसी) गत्वा (जाकर) अर्चयित्वा (पूजा करके) वषध्वजम (वषध्वज शिवलिंग)।”
अर्थ है, “तब उसने वाराणसी को जाकर वषध्वज (अर्थात् ब्रह्मांड का ध्वज) की पूजा की।
यह श्लोक महाभारत के वनपर्व (वनयात्रा) के एक अंश में है और इसमें बताया जा रहा है कि आर्जुन ने अपने वनवास के दौरान वाराणसी जाकर वहाँ वषध्वज (कशी विश्वनाथ शिवलिंग) की पूजा की थी। इस पूजा का उद्देश्य भगवान शिव की आराधना और आशीर्वाद प्राप्त करना था।

मत्स्य पुराण में शिव वाराणसी का वर्णन करते हुए कहते हैं –

वाराणस्यां नदी पु सिद्धगन्धर्वसेविता।
प्रविष्टा त्रिपथा गंगा तस्मिन् क्षेत्रे मम प्रिये॥

अर्थात्- हे प्रिये, सिद्ध गंधर्वों से सेवित वाराणसी में जहां पुण्य नदी त्रिपथगा गंगा आता है वह क्षेत्र मुझे प्रिय है।

काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार 11 वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने करवाया था। फिर काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण सम्राट विक्रमादित्य ने अपने समय में करवाया था। सम्राट विक्रमादित्य द्वारा नवनिर्मित मंदिर पर वर्ष 1194 में पहली बार विदेशी आक्रान्ता मुहम्मद गौरी ने ही इसे तुड़वा दिया था।

वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण मराठा साम्राज्य की महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा सन् 1780 में करवाया गया था। बाद में सिख जाट सम्राज्य के महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 1835 में 1000 कि.ग्रा शुद्ध सोने का छत्र बनवाया गया था। ज्ञानवापी का मंडप ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने बनवाया, और महाराजा नेपाल ने वहां भगवान शिव के वाहन नंदी की विशाल प्रतिमा स्थापित करवाई।

काशी के हिन्दुओं ने सन् 1809 में बलपूर्वक बनाई गई ज्ञानवापी मस्जिद पर कब्जा कर लिया था, क्योकि ज्ञानवापी कुए का क्षेत्र हे, जिसे आजकल ज्ञानवापी मस्जिद कहते है। काशी के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मि. वाटसन ने 30 दिसंबर 1810 में ‘वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल’ को एक पत्र जिस में कहा गया था की ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंप दिया जाय, परंतु यह संभव हो नहीं पाया।

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ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास (Gyanvapi History):

ज्ञानवापी मस्जिद, जो काशी में स्थित है, इस मस्जिद का निर्माण 17वीं शताब्दी में मुग़ल सम्राट और शासक औरंगज़ेब के शासनकाल में हुआ था। ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण काशी विश्वनाथ मंदिर के स्थान पर किया गया था। पूर्व में इसी स्थान पर काशी विश्वनाथ मंदिर था, जिसे मुघल साम्राज्य के समय में तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया।

इतिहासकारो के अनुसार वर्ष 1194 में पहली बार विदेशी आक्रान्ता मुहम्मद गौरी ने ही काशी विश्वनाथ मंदिर को तुड़वा दिया था। जिसे एक बार फिर बनाया गया परंतु वर्ष 1447 में पुनं इसे जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया। फिर नारायण भट्ट द्वारा राजा टोडरमल की सहायता से सन् 1585 ई. में इस स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। फिर शाहजहां ने सन् 1632 में इस भव्य मंदिर को तोड़ने का आदेश पारित कर सेना भेजी। हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण सेना मुख्य मंदिर को तोड़ नहीं सकी परंतु काशी के अन्य 63 मंदिर तोड़ दिए।

ईसा पूर्व 1669 में, मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश से, आखिरकार मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया और उसके स्थान पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कर दिया गया। औरंगजेब को मंदिर तोड़ने की सूचना 2 सितंबर 1669 को दी गई थी।

ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi History) और काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर पिछले 32 साल से लगातार मुकदमा चल रहा है। 1991 में पहला केस दर्ज हुआ था जो पंडित सोमनाथ व्यास, डॉ. रामरंग शर्मा और हरिहर पांडे ने कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

क्या है विवाद की जड़?

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi History) के बीच विवाद भारतीय इतिहास और सांस्कृतिक स्थलों के सम्बन्ध में है, जिसमें विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि के मुद्दे शामिल हैं। इस विवाद की जड़ें इतिहासिक और धार्मिक परंपराओं में हैं:

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद काफी हद तक अयोध्या विवाद मिलता जुलता ही है। दूसरी और, अयोध्या के विषय में (Gyanvapi History) मस्जिद बनी थी और कशी के विषय में मंदिर-मस्जिद दोनों ही बने हुए हैं। काशी विवाद में हिंदूओ का कहना है कि मुगल शासक औरंगजेब ने 1669 में काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई थी। हिंदू पक्ष के दावे के मुताबिक, 1670 से वह विश्वनाथ मंदिर को लेकर लड़ाई लड़ रहा है। परंतु मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यहां कोई मंदिर नहीं था, और यहां शुरुआत से ही मस्जिद है।

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