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सांख्य दर्शन हिंदी में

सांख्य दर्शन (Samkhya Darshan in Hindi) भारतीय दर्शन के छः दर्शन प्रकारों में से सांख्य भी एक है, जो प्राचीन काल में बहुत अधिक लोकप्रिय रहा है। भारतीय परम्परा के अनुसार अति प्राचीन काल से परमर्षि कपिल की रचना माना जाता रहा है। सांख्य दर्शन मुख्य रूप से वास्तविकता की प्रकृति, अस्तित्व के सिद्धांतों और ब्रह्मांड की उत्पत्ति को समझने से संबंधित है। सांख्य दर्शन का प्रत्यक्ष तौर पर भगवद गीता में और अप्रत्यक्ष रूप में उपनिषदों में इसका उल्लेख है।

‘सांख्य’ के नामकरण के विषय में विद्वानों की दो प्रकार की सम्मतियाँ मिलती हैं। कुछ लोग तो सांख्य का अर्थ संख्या या गणना कहते हैं कि चूँकि सांख्य में तत्वों के गुणों की ओर सृष्टि से सम्बन्ध रखने वाले विषयों की गणना करके सबकी सांख्य नियत की है, इससे वह ‘सांख्य’ कहते है । परंतु सांख्य सूत्रों का मनन करने वाले इस निर्णय को विशेष महत्व नहीं देते। वे कहते हैं कि ‘सांख्य’ का अर्थ है ‘सम्यक् ज्ञान ।’ किसी कारण में गुणों की छानबीन करके उसके सम्बन्ध में विवेक सम्मत जानकारी प्राप्त करना ‘सांख्य’ के अन्तर्गत आता है।

वास्तव में सृष्टि की उत्पत्ति के सम्बन्ध में सांख्य ने जो विवेचन किया है वह सब से अधिक आधुनिक वैज्ञानिक खोजों से सत्य सिद्ध होता है। जहाँ वैशेषिक और न्याय ने नौ द्रव्यों (मूल तत्त्वों) से सृष्टि की रचना बतलाई है, वहाँ कपिल ने सूक्ष्म दृष्टि से सृष्टि को केवल दो तत्वों से ही निर्मित माना है, जो विज्ञान के नवीनतम सिद्धान्तों से भी मिलता-जुलता है ।

सांख्य दर्शन (Samkhya Darshan in Hindi) में प्रकृति (यानि पंचमहाभूतों से बनी) जड़ है और पुरुष (यानि जीवात्मा) चेतन दो मूल तत्व हैं। इसमें तार्किक तथ्यात्मकता, मनोविज्ञान, और मोक्ष का वर्णन किया गया है। इसमें प्रकृति की 23 विकृतियाँ मिलकर 25 तत्व बताए गए हैं। व्यक्ति को प्रकृति को समझने, प्रेम से विमुक्त होने, और मोक्ष प्राप्त करने के लिए बुद्धि और अहंकार से अलग होने का सांख्य दर्शन चिन्तन करता है। व्यक्ति के जीवन में आने वाली विपत्ति का समाधान त्रिगुणात्मक प्रकृति की सर्वकारण रूप में आदर करके लोकप्रियता प्राप्त की है।

सांख्य दर्शन का लक्ष्य पुरुष और प्रकृति के बीच अंतर को स्पष्ट करके और पुरुष की शाश्वत प्रकृति को पहचानकर जन्म और मृत्यु के चक्र से मोक्ष प्राप्त करना है। यह मोक्ष तब प्राप्त होता है जब व्यक्तिगत आत्मा, अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करके, प्रकृति और उसके बंधनों से खुद को अलग कर लेती है। सांख्य दर्शन ने योग और वेदांत सहित भारतीय दर्शन के विभिन्न विद्यालयों को बहुत प्रभावित किया है। यह अस्तित्व की प्रकृति, चेतना और मोक्ष की खोज में गहरा ज्ञानचक्षु प्रदान करता है। इसे भारत की समृद्ध दार्शनिक विरासत का एक महत्वपूर्ण पहलू बनाता है।

सांख्य दर्शन में ज्ञान को अत्यधिक महत्व दिया गया है, क्योंकि यह आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की ओर ले जाता है। पुरुष और प्रकृति की प्रकृति को समझकर और उनकी विशेषताओं को समझकर, व्यक्ति भौतिक दुनिया को पार कर सकता है और आत्म संबंधी स्वतंत्रता प्राप्त कर सकता है।

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