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Shiv Tandav Stotram Lyrics in Hindi

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Shiv Tandav Stotram Lyrics in Hindi

शिव तांडव स्तोत्र हिंदी में | Shiv Tandav Stotram In Hind

शिव तांडव स्तोत्र (Shiv Tandav Stotram) का रचयता लंकापति रावण भगवान शिव का परम भक्त था। भगवान शिव के परम भक्त रावण ने 15 श्लोक का गायन करके भगवान शिव शंकर की स्तुति की थी। इस स्तुति को आज हम “शिव तांडव स्तोत्र” के नाम से जानते है। शिव तांडव स्तोत्र की भाषा बहोत ही कठिन है, परन्तु महाविद्वान रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कुछ पलो में ही इस स्तोत्र की रचना की थी।

हिन्दू धर्म में भगवान शिव शंकर को देवाधिदेव महादेव और कालो के काल महाकाल भी कहते हे, क्योकि भगवान शिव का सभी देवों में सबसे उच्च स्थान प्राप्त है। भगवान शिव की पूजा मनुष्य तो क्या सभी देवी-देवता और सुर-असुर भी करते है।

 

शिव तांडव स्तोत्र की रचना कैसे हुई:-

शिव पुराण के अनुसार महाविद्वान रावण महादेव का श्रेष्ठ भक्त था। लंकापति रावण ने भगवान शिव शंकर को अपना ईष्टदेव के साथ-साथ गुरु भी मानता था। एक दिन लंकापति रावण के मन में खयाल आया की में भक्त होकर भी की सोने की लंका में रहता हु, और वः भगवान होकर भी कैलाश पर्वत पर रहते है। क्यों न भगवान को भी इस सोने की नगरी में लाया जाए। ये सोचकर लंकापति रावण भगवान शिव को लेने कैलाश पर्वत की ओर चलपडा।

रावण कैलाश पर्वत की तलहटी में पहुंचा तो वहा शिव के वाहन नंदी से भेट हुई। अहंकार में रावण ने नंदी को कहा की में भगवान शिव को लंका ले जाने आया हु। नंदी बोले भगवान शिव की इच्छा के विरुद्ध कोई कहीं नहीं ले जा सकता। रावण ने नंदी से कहा की भगवान शिव नहीं माने तो पूरा कैलाश पर्वत उठाकर लंका ले जाऊंगा।

लंकापति रावण को अपने बल पर बहोत घमंड था, इसलिए इतना कह कर कैलाश पर्वत को उठाने लगा। पूरा कैलाश पर्वत हिलने लगा भगवान शिव के गण डर गए। कैलाश पर्वत पर बैठे भगवान शिव शंकर सब देख रहे थे। जब रावण ने कैलाश पर्वत को उठा ही लिया तब भगवान शिव ने मात्र अपने पैर के अंगूठे से कैलाश को दबा दिया। रावण का हाथ कैलाश पर्वत के निचे फंस गया। कैलाश पर्वत पर बैठे भगवान शिव मन ही मन मुस्कुरा रहे थे।

इस समय भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने कुछ पल में शिव तांडव स्तोत्र की रचना की। जिसे सुनकर भगवान शिव प्रसन्न हुए, और रावण के हाथ कैलाश पर्वत से मुक्त कर दिया थे।

 

शिव तांडव स्तोत्र (Shiv Tandav Stotram) के फायदे:-

शिव तांडव स्तोत्र का नियमित पाठ करने से धन-सम्पति की कभी भी कमी नहीं रहती है। इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के भीतर आत्मबल मजबूत होने के साथ-साथ चेहरा तेजमय रहता है।

शिवतांडव स्तोत्र का पाठ करने से वाणी की सिद्धि भी प्राप्त होती है। इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव प्रसन्न होकर सभी सिद्धियों को प्रदान करते हे।

शिव तांडव स्तोत्र का नियमित पाठ करने से सर्प योग, कालसर्प योग या पितृ दोष से मुक्त हो जाता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से शनिदेव की कृपा दृस्टि बनी रहती है।

 

यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ शिव पंचाक्षर स्तोत्र हिंदी में

 

॥ शिव तांडव स्तोत्र ॥

 

जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥1॥

अर्थ:
जिन शिव जी की सघन, वनरूपी जटा से प्रवाहित हो गंगा जी की धाराएँ उनके कंठ को प्रक्षालित करती हैं, जिनके गले में बड़े एवं लम्बे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें।

 

जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥2॥

अर्थ:
जिन शिव जी की जटाओं में अतिवेग से विलास पूर्वक भ्रमण कर रही देवी गंगा की लहरें उनके शीश पर लहरा रहीं हैं, जिनके मस्तक पर अग्नि की प्रचण्ड ज्वालायें धधक-धधक करके प्रज्वलित हो रहीं हैं, उन बाल चंद्रमा से विभूषित शिवजी में मेरा अनुराग प्रतिक्षण बढ़ता रहे।

 

यहां एक क्लिक में पढ़ें- “शिव महिम्न: स्तोत्रम्”

 

धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥

अर्थ:
जो पर्वतराजसुता (पार्वती जी) के विलासमय रमणीय कटाक्षों में परम आनन्दित चित्त रहते हैं, जिनके मस्तक में सम्पूर्ण सृष्टि एवं प्राणीगण वास करते हैं, तथा जिनकी कृपादृष्टि मात्र से भक्तों की समस्त विपत्तियां दूर हो जाती हैं, ऐसे दिगम्बर शिवजी की आराधना से मेरा चित्त सर्वदा आनन्दित रहे।

 

जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥4॥

अर्थ:
मैं उन शिवजी की भक्ति में आनन्दित रहूँ जो सभी प्राणियों के आधार एवं रक्षक हैं, जिनकी जटाओं में लिपटे सर्पों के फण की मणियों का प्रकाश पीले वर्ण प्रभा-समूह रूप केसर के कान्ति से दिशाओं को प्रकाशित करते हैं और जो गजचर्म से विभूषित हैं।

 

सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥5॥

अर्थ:
जिन शिव जी के चरण इन्द्र-विष्णु आदि देवताओं के मस्तक के पुष्पों की धूल से रंजित हैं (जिन्हें देवतागण अपने सर के पुष्प अर्पण करते हैं), जिनकी जटाओं में लाल सर्प विराजमान है, वो चन्द्रशेखर हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।

 

ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥6॥

अर्थ:
जिन शिव जी ने इन्द्रादि देवताओं का गर्व दहन करते हुए, कामदेव को अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से भस्म कर दिया, तथा जो सभी देवों द्वारा पूज्य हैं, तथा चन्द्रमा और गंगा द्वारा सुशोभित हैं, वे मुझे सिद्धि प्रदान करें।

 

करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥7॥

अर्थ:
जिनके मस्तक से धक-धक करती प्रचण्ड ज्वाला ने कामदेव को भस्म कर दिया तथा जो शिव पार्वती जी के स्तन के अग्र भाग पर चित्रकारी करने में अति चतुर हैं (यहाँ पार्वती प्रकृति हैं, तथा चित्रकारी सृजन है), उन शिव जी में मेरी प्रीति अटल हो।

 

यहां एक क्लिक में पढ़ें- “श्री शिव रूद्राष्टकम”

 

नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥

अर्थ:
जिनका कण्ठ नवीन मेघों की घटाओं से परिपूर्ण अमावस्या की रात्रि के सामान काला है, जो कि गज-चर्म, गंगा एवं बाल-चन्द्र द्वारा शोभायमान हैं तथा जो जगत का बोझ धारण करने वाले हैं, वे शिव जी हमे सभी प्रकार की सम्पन्नता प्रदान करें।

 

प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥

अर्थ:
जिनका कण्ठ और कन्धा पूर्ण खिले हुए नीलकमल की फैली हुई सुन्दर श्याम प्रभा से विभूषित है, जो कामदेव और त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दुःखों को काटने वाले, दक्षयज्ञ विनाशक, गजासुर एवं अन्धकासुर के संहारक हैं तथा जो मृत्यू को वश में करने वाले हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ।

 

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।
स्मरांतकं पुरातकं भवांतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥

अर्थ:
जो कल्याणमय, अविनाशी, समस्त कलाओं के रस का आस्वादन करने वाले हैं, जो कामदेव को भस्म करने वाले हैं, त्रिपुरासुर, गजासुर, अन्धकासुर के संहारक, दक्षयज्ञ विध्भंसक तथा स्वयं यमराज के लिए भी यमस्वरूप हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ।

 

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥

अर्थ:
अत्यंत वेग से भ्रमण कर रहे सर्पों के फूफकार से क्रमश: ललाट में बढ़ी हूई प्रचण्ड अग्नि के मध्य मृदंग की मंगलकारी उच्च धिम-धिम की ध्वनि के साथ ताण्डव नृत्य में लीन शिव जी सर्व प्रकार सुशोभित हो रहे हैं।

 

दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः सम प्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥12॥

अर्थ:
कठोर पत्थर एवं कोमल शय्या, सर्प एवं मोतियों की मालाओं, बहुमूल्य रत्न एवं मिट्टी के टुकड़ों, शत्रु एवं मित्रों, राजाओं तथा प्रजाओं, तिनकों तथा कमलों पर समान दृष्टि रखने वाले शिव को मैं भजता हूँ।

 

कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुंज-कोटरे वसन् विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मंजलिं वहन्।
विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः शिवेति मंत्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥13॥

अर्थ:
कब मैं गंगा जी के कछारगुञ में निवास करता हुआ, निष्कपट हो, सिर पर अंजलि धारण कर चंचल नेत्रों तथा ललाट वाले शिव जी का मंत्रोच्चार करते हुए अक्षय सुख को प्राप्त करूंगा?

 

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥14॥

अर्थ:
इस उत्तमोत्तम शिव ताण्डव स्तोत्र को नित्य पढ़ने या श्रवण करने मात्र से प्राणी पवित्र हो, परमगुरु शिव में स्थापित हो जाता है तथा सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त हो जाता है।

 

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मिं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥15॥

अर्थ:
प्रात: शिवपूजन के अंत में इस रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्र के गान से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं तथा भक्त रथ, गज, घोड़े आदि सम्पदा से सर्वदा युक्त रहता है।

 

॥ इति श्रीरावणकृतं शिव ताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

 

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Shiv Tandav Stotram Lyrics in English

 

॥ Shiv Tandav Stotram ॥

Jatatavigalajjala pravahapavitasthale
Galeavalambya lambitam bhujangatungamalikam ।
Damad damad damaddama ninadavadamarvayam
Chakara chandtandavam tanotu nah shivah shivam ॥1॥

Jata kata hasambhrama bhramanilimpanirjhari
Vilolavichivalarai virajamanamurdhani ।
Dhagadhagadhagajjva lalalata pattapavake
Kishora chandrashekhare ratih pratikshanam mama ॥2॥

Dharadharendrana ndinivilasabandhubandhura
Sphuradigantasantati pramodamanamanase ।
Krupakatakshadhorani nirudhadurdharapadi
Kvachidigambare manovinodametuvastuni ॥3॥

Jata bhujan gapingala sphuratphanamaniprabha
Kadambakunkuma dravapralipta digvadhumukhe ।
Madandha sindhu rasphuratvagutariyamedure
Mano vinodamadbhutam bibhartu bhutabhartari ॥4॥

Sahasra lochana prabhritya sheshalekhashekhara
Prasuna dhulidhorani vidhusaranghripithabhuh ।
Bhujangaraja malaya nibaddhajatajutaka
Shriyai chiraya jayatam chakora bandhushekharah ॥5॥

Lalata chatvarajvaladhanajnjayasphulingabha
Nipitapajnchasayakam namannilimpanayakam ।
Sudha mayukha lekhaya virajamanashekharam
Maha kapali sampade shirojatalamastu nah ॥6॥

Karala bhala pattikadhagaddhagaddhagajjvala
Ddhanajnjaya hutikruta prachandapajnchasayake ।
Dharadharendra nandini kuchagrachitrapatraka
Prakalpanaikashilpini trilochane ratirmama ॥7॥

Navina megha mandali niruddhadurdharasphurat
Kuhu nishithinitamah prabandhabaddhakandharah ।
Nilimpanirjhari dharastanotu krutti sindhurah
Kalanidhanabandhurah shriyam jagaddhurandharah ॥8॥

Praphulla nila pankaja prapajnchakalimchatha
Vdambi kanthakandali raruchi prabaddhakandharam ।
Smarachchidam purachchhidam bhavachchidam makhachchidam
Gajachchidandhakachidam tamamtakachchidam bhaje ॥9॥

Akharvagarvasarvamangala kalakadambamajnjari
Rasapravaha madhuri vijrumbhana madhuvratam ।
Smarantakam purantakam bhavantakam makhantakam
Gajantakandhakantakam tamantakantakam bhaje ॥10॥

Jayatvadabhravibhrama bhramadbhujangamasafur
Dhigdhigdhi nirgamatkarala bhaal havyavat ।
Dhimiddhimiddhimidhva nanmrudangatungamangala
Dhvanikramapravartita prachanda tandavah shivah ॥11॥

Drushadvichitratalpayor bhujanga mauktikasrajor
Garishtharatnaloshthayoh suhrudvipakshapakshayoh ।
Trushnaravindachakshushoh prajamahimahendrayoh
Sama pravartayanmanah kada sadashivam bhajamyaham ॥12॥

Kada nilimpanirjhari nikujnjakotare vasanh
Vimuktadurmatih sada shirah sthamajnjalim vahanh ।
Vimuktalolalochano lalamabhalalagnakah
Shiveti mantramuchcharan sada sukhi bhavamyaham ॥13॥

Imam hi nityameva muktamuttamottamam stavam
Pathansmaran bruvannaro vishuddhimeti santatam ।
Hare gurau subhaktimashu yati nanyatha gatim
Vimohanam hi dehinam sushankarasya chintanam ॥14॥

Puja vasanasamaye dashavaktragitam
Yah shambhupujanaparam pathati pradoshhe ।
Tasya sthiram rathagajendraturangayuktam
Lakshmim sadaiva sumukhim pradadati shambhuh ॥15॥

 

॥ Ithi Sri Shiva Tandava Stotram ॥

 

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