वेदांग ज्योतिष हिंदी में
भारतीय ज्ञान–परंपरा में ‘वेदांग’ वे छह शास्त्र माने गए हैं, जो वेदों के अध्ययन को पूर्ण, सुगम और वैज्ञानिक बनाते हैं। इन्हीं में से एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण वेदांग है। वेदांग ज्योतिष (Vedanga Jyotisha in Hindi), जिसे भारतीय समय–विज्ञान का सर्वप्रथम और सबसे प्रमाणिक ग्रंथ माना जाता है। वेदांग ज्योतिष का अत्यंत विस्तृत, शोधपरक और गूढ़ व्याख्यायुक्त संस्करण है, जिसमें न केवल प्राचीन वैदिक खगोलीय ज्ञान का विश्लेषण किया गया है, बल्कि सूर्य–चन्द्र की गतियों, नक्षत्र–चक्र, ऋतु–परिवर्तन, गणनापद्धति, काल–मापन और ज्योतिषीय संरचनाओं की वैज्ञानिक पद्धति को भी सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
वेदांग ज्योतिष पाँच प्रमुख खंडों में विभाजित है और प्रत्येक खंड भारतीय ज्योतिष–परंपरा के किसी न किसी आधारभूत तत्व का गहराई से उद्घाटन करता है। पुस्तक की शुरुआत ज्योतिष साहित्य की परंपरा, उसका विकास, अर्थ, शाखाएँ और वेदांग ज्योतिष का स्थान समझाने से होती है, और आगे चलकर यह विभिन्न वैदिक संहिताओं, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद, महाकाव्यों तथा पुराणों में मिले खगोलीय संदर्भों को भी प्रमाण के रूप में प्रस्तुत करती है।
वेदांग ज्योतिष (Vedanga Jyotisha in Hindi) स्पष्ट करती है कि वैदिक युग में सूर्य, चन्द्र और नक्षत्रों का अवलोकन केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि कृषि, ऋतु–निर्धारण, यज्ञ–संरचना और सामाजिक जीवन के आयोजन हेतु अनिवार्य माना जाता था। वैदिक ऋषियों ने समय को ‘ऋतु–चक्र’, ‘अयन’, ‘संवत्सर’, ‘मास’, ‘पक्ष’, ‘तिथि’ और ‘मुहूर्त’ के रूप में व्यवस्थित किया। पुस्तक में बताया गया है कि वेदांग–ज्योतिष उन सभी नियमों का समन्वित स्वरूप है जो समय, ग्रह–गति और खगोलीय संरचनाओं को समझाते हैं।
शुरुआती अध्यायों में यह भी बताया गया है कि ज्योतिष शब्द का मूल अर्थ प्रकाश में स्थापित विज्ञान है— यानी ऐसा ज्ञान जो प्रकाश के प्रेरक—सूर्य, चन्द्र और तारों के आधार पर समय और दिशा को तय करता है।
वेदांग ज्योतिष के पहले खंड में ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में पाए गए सूर्य–उदय, सूर्य–अस्त, अयन–चलन, मास–विभाजन, नक्षत्र–क्रम और पंचांग से जुड़े दर्जनों संदर्भ उद्धृत हैं। इनमें विशेष रूप से सूर्य के सात घोड़ों का वर्णन, चन्द्रमा का ‘नक्षत्र–पति’ रूप, ऋतु–चक्र की संरचना, वसंत, वर्षा और शरद ऋतु के ज्योतिषीय संकेत, वेदांगों में ग्रहण, संक्रांति और तिथियों की व्याख्या जैसे विषयों को प्रमाण सहित प्रस्तुत किया गया है।
वेदांग ज्योति (Vedanga Jyotisha in Hindi) का दूसरा खंड काल–विज्ञान को समर्पित है। इसमें बताया गया है कि वैदिक काल में समय को अत्यंत सूक्ष्म और वैज्ञानिक ढंग से मापा जाता था।
यह खंड निम्न बिंदुओं को विस्तार से समझाता है:
काल शब्द का अर्थ और उसका वैदिक विकास
युग, कल्प, मन्वंतर, संवत्सर
तिथि, पक्ष, मास और ऋतुओं का निर्धारण
आकाशीय गणना द्वारा दिन–रात की लंबाई
प्राचीन खगोल–संरचनाओं में काल–निर्धारण
वेदांग ज्योतिष (Vedanga Jyotisha in Hindi) में वर्णित सूर्य-चन्द्र की गति, उनके पारस्परिक संबंध और वर्ष–निर्माण की विधि को पुस्तक में उदाहरणों व सूत्रों द्वारा स्पष्ट किया गया है।
“वेदांग ज्योतिष” केवल ज्योतिष की पुस्तक नहीं, बल्कि समय को समझने का विज्ञान है। यह ग्रंथ बताता है कि हमारे ऋषियों ने हजारों वर्ष पहले बिना आधुनिक उपकरणों के सूर्य, चन्द्र और तारों के आधार पर एक ऐसा संगठित और वैज्ञानिक समय–विज्ञान बनाया, जो आज भी अद्भुत रूप से सटीक है।


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