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जानिए ५१ शक्ति पीठ कहा पे है और शक्ति पीठ की कथा

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जानिए ५१ शक्ति पीठ कहा पे है और शक्ति पीठ की कथा

जानिए 51 शक्ति पीठ (51 Shakti Peeth in Hindi) कहा पे है, शक्ति पीठ की कथा और शक्ति पीठ का महत्त्व

51 शक्ति पीठ (51 Shakti Peeth in hindi) का सनातन धर्म में विशेष महत्त्व रहा है। देवी पुराण के अनुसार देवी सती के शरीर के अंग जिस-जिस स्थान पर गिरे उसे शक्ति पीठ कहा जाता है। अति पवित्र शक्ति पीठ भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए है।

भारतीय पौराणिक कथाओं और देवी पुराण के अनुसार, देवी सती की मृत्यु के बाद, भगवान शिव बहुत क्रोधित हुए और तांडव, विनाश का एक दिव्य नृत्य करने लगे। उन्हें शांत करने के लिए, भगवान विष्णु ने हस्तक्षेप किया और देवी सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 टुकड़ों में काट दिया, जो तब पृथ्वी पर विभिन्न स्थानों पर गिरे, जिससे 51 शक्तिपीठों (51 Shakti Peeth in hindi) का निर्माण हुआ।

प्रत्येक शक्ति पीठ देवी सती के शरीर के एक विशेष अंग से जुड़ा हुआ है और इसकी अपनी अनूठी कहानी और किंवदंती है। इन स्थानों को देवी के भक्तों द्वारा बहुत पवित्र माना जाता है और माना जाता है कि इनमें अपार आध्यात्मिक और दैवीय शक्ति है।

सबसे प्रसिद्ध शक्ति पीठ असम में कामाख्या मंदिर है, जहां माना जाता है कि देवी सती की योनी या महिला जननांग गिरी थी। अन्य प्रसिद्ध शक्ति पीठों में ओडिशा में तारा तारिणी मंदिर, जम्मू और कश्मीर में वैष्णो देवी मंदिर और पश्चिम बंगाल में कालीघाट मंदिर शामिल हैं।

भक्त देवी का आशीर्वाद लेने और अपनी प्रार्थना और प्रसाद चढ़ाने के लिए इन शक्ति पीठों में जाते हैं। शक्ति पीठ भारतीय पौराणिक कथाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और लाखों लोगों के लिए प्रेरणा और भक्ति का स्रोत बने हुए हैं।

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परिचय:-

51 शक्ति पीठ (51 Shakti Peeth in hindi) देवी शक्ति के विभिन्न रूपों को समर्पित पवित्र हिंदू मंदिरों का एक समूह है, जिन्हें देवी या दिव्य माँ के रूप में भी जाना जाता है। ये तीर्थस्थल भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं, और उन्हें हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान माना जाता है।

51 शक्ति पीठ (51 Shakti Peeth in hindi) भारत, नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका के विभिन्न हिस्सों में स्थित हैं। वे उत्तर में हिमालय से दक्षिण में कन्याकुमारी तक भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं। कुछ सबसे प्रसिद्ध शक्ति पीठों में असम में कामाख्या मंदिर, जम्मू और कश्मीर में वैष्णो देवी मंदिर, कोलकाता में कालीघाट मंदिर और आंध्र प्रदेश में श्रीशैलम मंदिर शामिल हैं।

तीर्थयात्री देवी का आशीर्वाद लेने और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए शक्ति पीठों की यात्रा करते हैं। इन मंदिरों से जुड़े अनुष्ठान और प्रथाएं एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होती हैं, लेकिन इन सभी में देवी की पूजा और उनका आशीर्वाद लेने के लिए विभिन्न पूजा (अनुष्ठान) और आरती (भक्ति गीत) शामिल हैं। शक्ति पीठ हिंदू संस्कृति और विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और वे हर साल लाखों भक्तों को आकर्षित करना जारी रखते हैं।

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शक्ति पीठ कथा:-

पुराणों के अनुसार 51 शक्तिपीठ (51 Shakti Peeth in hindi) की कथा यह है कि राजा प्रजापति दक्ष कनखल (हरिद्वार) में बृहस्पति सर्व यज्ञ कर रहे थे। राजा प्रजापति दक्ष ने इस यज्ञ में ब्रह्म, विष्णु, इंद्रादि सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया, परन्तु भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया।

राजा दक्ष के इस यज्ञ के बारे में नारदजी से माता सती को पता चला कि उनके पिता यज्ञ करने जा रहे है, परन्तु उन्हें आमंत्रित नहीं किया है। यह जानकर देवी सती क्रोधित हो उठीं। नारदजी ने कहा कि पिता के यहां जाने के लिए निमंत्रण की ज़रूरत नहीं होती है।

भगवान शिव की पत्नी और राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री सती, अपने पिता द्वारा निमंत्रण न दिए जाने पर भी कनखल यज्ञ स्थल पर आ पहोची। सती ने अपने पिता से उग्र विरोध करने लगी और अपने पिता राजा दक्ष को भगवान शिव को आमंत्रित न करने का कारण पूछा।

सती की इस बात पर राजा दक्ष ने भगवान शिव को अपशब्द कहे, और भगवान शिव का अपमान किया। सती अपने पति के बारे में यह अपमानजनक बातें न सुन सकीय और देवी सती यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणो की आहुति दे दी। भगवान शिव को इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया और वीरभद्र का अवतार ले लिया।

भगवान शिव शंकर के अवतार वीरभद्र ने राजा दक्ष के यज्ञ को नष्ट करके राजा दक्ष के शीश को धड़ से अलग करके वध कर दिया। फिर सभी देवी-देवताओ के कहने पर भगवान शिव ने राजा दक्ष को बकरे का शीश लगा कर जीवित कर दिया।

भगवान शिव ने सती के निर्जीव शरीर को अपने कंधे पर धारण किया और पूरे ब्रह्मांड में शोक में भटकते रहे। अंत में, अन्य देवताओं ने उसे अपने शरीर को जमीन पर रखने और आराम करने के लिए राजी किया। हालाँकि, भगवान शिव दु:ख से तांडव नामक एक लौकिक नृत्य करना शुरू कर दिया।

ब्रह्मांड को शिव के प्रकोप से बचाने के लिए, भगवान विष्णु ने सती के शरीर को टुकड़ों में विभाजित करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को काट दिया। यह टुकड़े जहा गिरे वह शक्तिपीठ कहा गया। प्रत्येक टुकड़ा एक अलग स्थान पर पृथ्वी पर गिरा और एक शक्ति पीठ (51 Shakti Peeth in hindi) बन गया, एक ऐसा स्थान जहाँ देवी शक्ति की पूजा की जाती है।

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51 शक्ति पीठों का महत्त्व:-

51 शक्तिपीठों (51 Shakti Peeth in hindi) को हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थानों में से एक माना जाता है। माना जाता है कि वे दिव्य स्त्री ऊर्जा या देवी शक्ति के पवित्र निवास स्थान हैं, और इन तीर्थस्थलों पर जाने से तीर्थयात्री को महान आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं।

शक्ति पीठों के महत्व को कई कारकों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जैसे:

आध्यात्मिक महत्व: शक्तिपीठों (51 Shakti Peeth in hindi) को आध्यात्मिक ऊर्जा का शक्तिशाली केंद्र माना जाता है और देवी की पूजा के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता है। भक्तों का मानना है कि देवी उन्हें आध्यात्मिक उत्थान, सुरक्षा और उनकी इच्छाओं की पूर्ति का आशीर्वाद देती हैं।

पौराणिक महत्व: शक्ति पीठ हिंदू पौराणिक कथाओं के विभिन्न मिथकों और किंवदंतियों से जुड़े हैं। इन किंवदंतियों के अनुसार, देवी सती के शरीर के अंग या आभूषण इन स्थानों पर गिरे थे, जिससे वे अत्यधिक पवित्र और भक्तों द्वारा पूजनीय हो गए।

सांस्कृतिक महत्व: शक्ति पीठ (51 Shakti Peeth in hindi) हिंदू संस्कृति और विरासत का एक अभिन्न अंग हैं। वे भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और देश के धार्मिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण स्थलों के रूप में काम करते हैं।

स्थापत्य महत्व: कई शक्तिपीठों को उनकी अनूठी स्थापत्य शैली और जटिल डिजाइनों के लिए जाना जाता है। उन्हें प्राचीन भारतीय वास्तुकला का चमत्कार माना जाता है और उनकी सुंदरता और भव्यता के लिए आगंतुकों द्वारा प्रशंसा की जाती है।

कुल मिलाकर, शक्तिपीठों का हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व है, और दुनिया भर से तीर्थयात्री देवी का आशीर्वाद लेने और इन पवित्र तीर्थस्थलों से जुड़ी आध्यात्मिक ऊर्जा और सांस्कृतिक समृद्धि का अनुभव करने के लिए उनके पास आते हैं।

 

51 शक्ति पीठ (51 Shakti Peeth in hindi) नाम और स्थल:-

1) हिंगलाज माता
यह शक्तिपीठ कराची, पाकिस्तान से लगभग 125 कि॰मी॰ उत्तर-पूर्व में यह माता का ब्रह्मरंध्र (सिर का ऊपरी भाग) गिरा था। इस शक्तिपीठ की कोट्टरी शक्ति और भीमलोचन भैरव है।

2) शर्कररे
यह शक्तिपीठ कराची पाकिस्तान के सुक्कर स्टेशन के पास है। और इसके अलावा नैनादेवी मंदिर, बिलासपुर, हि.प्र. भी कहा जाता है। यह देवी सती की आँख गिरी थी। यह महिष मर्दिनी शक्ति और क्रोधीश भैरव हे।

3) सुगंधा
यह शक्तिपीठ बांग्लादेश में शिकारपुर के बरिसल से 20 कि॰मी॰ दूर सोंध नदी तट पर है। यहां माता सती की नासिका गिरी थी। इस शक्तिपीठ में सुनंदा त्रयंबक भैरव है।

4) महामाया
यह शक्तिपीठ अमरनाथ, पहलगाँव, काश्मीर में स्थित हे। यह माता सती का कंठ गिरा था। इस शक्तिपीठ में महामाया और त्रिसंध्येश्वर भैरव है।

5) ज्वाला देवी
यह शक्तिपीठ हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा घाटी में स्थित है। यहा देवी सती की जीभ गिरी थी। इस शक्तिपीठ में सिधिदा (अंबिका) और उन्मत्त भैरव है।

6) त्रिपुरमालिनी
त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ पंजाब के जालंधर में छावनी स्टेशन निकट देवी तलाब के तट स्थित है। यह पर माता सती का बांया वक्ष(स्तन) गिरा था। यह ‘त्रिपुरमालिनी’ शक्ति और ‘भीषण’ भैरव के रुप में स्थित है।

7) अम्बाजी
अम्बाजी माता का यह शक्तिपीठ गुजरात और राजस्थान की बॉर्डर पर स्थित हे। यहा माता सती हृदय गिरा था। इस शक्तिपीठ में अम्बाजी बटुक भैरव विराजमान है।

8) गुजयेश्वरी
गुजयेश्वरी शक्तिपीठ नेपाल में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर के निकट है। यहा पर देवी सती के दोनों घुटने गिरे थे। इस शक्तिपीठ में शक्ति महाशिरा और कपाली भैरव है।

9) मानसा-दाक्षायणी
मानसा-दाक्षायणी माता का शक्तिपीठ तिब्बत में स्थित मानस, कैलाश पर्वत, मानसरोवर के निकट एक पाषाण शिला में स्थित है। यहा देवी सती का दायां हाथ गिरा था। यहा दाक्षायनी शक्ति और अमर भैरव विराजमान है।

10) विरजा देवी
यह शक्तिपीठ उड़ीसा के उत्कल में विरजा माता के नाम शक्तिपीठ है। यह माता सती का नाभि गिरी थी। इस शक्तिपीठ में शक्ति विमला और भैरव जगन्नाथ है।

11) बहुला शक्तिपीठ
बहुला शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिला में अजेय नदी तट पर स्थित है। यहां देवी सती का बायां हाथ गिरा था। इस शक्तिपीठ में देवी बाहुला शक्ति और भैरव भीरुक विराजमान है।

12) गण्डकी
गण्डकी शक्तिपीठ नेपाल के पोखरा में गण्डकी नदी के तट पर स्थित है। इस जगह माता सती का मस्तक गिरा हुआ है। इस शक्तिपीठ में शक्ति गंडकी चंडी और भैरव चक्रपाणि है।

13) उज्जयिनी चण्डिका
उज्जयिनी चण्डिका बंगाल के वर्धमान जिले के गुस्कुर स्टेशन से 16 कि॰मी॰ दूर उज्जय‍नी नामक स्थान पर विराजमान है। यहा देवी सती दायीं कलाई गिरी थी और इस शक्तिपीठ में मंगल चंद्रिका शक्ति और भैरव कपिलांबर है।

14) त्रिपुर सुंदरी
त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ उदरपुर के माताबाढ़ी पर्वत शिखर के निकट राधाकिशोरपुर गाँव में स्थित है। इस जगह देवी सती का दायां पैर गिरा था। इस मंदिर में शक्ति त्रिपुर सुंदरी और भैरव त्रिपुरेश रूप में विराजमान हे।

15) भवानी
भवानी शक्तिपीठ बांग्लादेश के चिट्टागौंग जिला में चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर स्थित है। यह माता सती की दांयी भुजा गिरी थी। यहा पर शक्ति भवानी और भैरव चंद्रशेखर विराजमान है।

16) भ्रामरी शक्तिपीठ
भ्रामरी शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी जिला में सालबाढ़ी गाँव में स्थित है। यहा देवी माता का बायां पैर गिरा था। इस शक्तिपीठ में शक्ति भ्रामरी और भैरव अंबर विराजमान है।

17) देवी कामाख्या
कामाख्या देवी शक्तिपीठ असम के गुवाहाटी जिले में नीलांचल पर्वत पर स्थित है। यह देवी सती का योनि भाग गिरा था। यहा शक्ति कामाख्या देवी और भैरव उमानंद है।

18) जुगाड्या शक्तिपीठ
यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिला में खीरग्राम में स्थित है। यह शक्तिपीठ में देवी सती दायें पैर का बड़ा अंगूठा गिरा है। यहा शक्ति जुगाड्या और भैरव क्षीर खंडक विराजमान है।

19) कालिका
कालिका शक्तिपीठ कोलकाता के कालीघाट पर स्थित है। इस जगह माता सती के बाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। यहा शक्ति कालिका और नकुलीश भैरव है।

20) प्रयाग शक्तिपीठ
प्रयाग शक्तिपीठ उत्तर प्रदेश के इलाहबाद शहर में स्थित संगम तट पर विराजमान है। यहा देवी सती की हाथ की अँगुली गिरी थी। इस शक्तिपीठ में शक्ति को ललिता और भैरव को भव भैरव कहते है।

21) जयंती शक्तिपीठ
जयंती शक्तिपीठ बांग्लादेश के भोरभोग गांव में खासी पर्वत पर स्थित है। यहा देवी सती की बायीं जंघा गिरी थी। यहा शक्ति जयंती और भैरव क्रमादीश्वर है।

22) किरीट विमला शक्तिपीठ
किरीट विमला शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिला के किरीटकोण ग्राम में स्थित है। यह स्थान पर देवी सती का मुकुट गिरा था। यहा शक्ति को विमला कहते हे और भैरव को सांवर्त कहते है।

23) विशालाक्षी एवं मणिकर्णी
विशालाक्षी शक्तिपीठ उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी विश्‍वनाथ मंदिर के निकट स्थित है। यह माता सती का मणिजड़ीत कुंडल गिरे थे। इस शक्तिपीठ में शक्ति विशालाक्षी और काल भैरव विराजमान है।

24) श्रवणी शक्तिपीठ
श्रवणी शक्तिपीठ तमिल नाडु के कन्याश्रम में स्थित है। यहा देवी सती की पीठ गिरी थी। यहा शक्ति श्रवणी और भैरव निमिष है।

25) सावित्री
सावित्री शक्तिपीठ हरियाणा के कुरुक्षेत्र में स्थित है। यहा माता सती दाहिने घुटने गिर थे। यहा शक्ति सावित्री और भैरव स्थाणु है।

26) मणिबंध शक्तिपीठ
मणिबंध शक्तिपीठ राजस्थान के प्रसिद्ध पुष्कर से लगभग 5 कि.मी की दूरी पर गायत्री पहाड़ के पास स्थित है। यहा पर देवी सती के हाथ की कलाई गिरी थी। इस पवित्र स्थान पर शक्ति को गायत्री कहते हे, और भैरव को सर्वानंद कहते है।

27) श्रीशैल शक्तिपीठ
श्रीशैल शक्तिपीठ बांग्लादेश के जैनपुर गाँव से 3 कि॰मी॰ उत्तर-पूर्व में स्थित है। इस जगह पर देवी सती का गला (ग्रीवा) गिरा था। यहाँ पर शक्ति माँ महालक्ष्मी और भैरव शम्बरानंद विराजमान हैं।

28) देवगर्भा शक्तिपीठ
देवगर्भा शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के बीरभुम जिले में कोपई नदी तट पर स्थित है। यहा देवी सती की अस्थि गिरी थी। इस शक्तिपीठ में शक्ति देवगर्भ और भैरव रुरु है।

29) कालमाधव शक्तिपीठ
कालमाधव शक्तिपीठ मध्यप्रदेश के अमरकंटक में शोन नदी के तट पर स्थित है। यह शक्तिपीठ में माता सती का बायां नितंब गिरा था। यहा पर शक्ति काली और भैरव असितांग है।

30) शोणाक्षी शक्तिपीठ
शोणाक्षी शक्तिपीठ मध्य प्रदेश के अमरकण्टक में नर्मदा के उद्गम स्थल पर स्थित है। यह देवी माता का दायां नितंब गिरा था। यहां पर शक्ति नर्मदा और भैरव भद्रसेन विराजमान है।

31) रामगिरि शक्तिपीठ
रामगिरि शक्तिपीठ उत्तरप्रदेश के चित्रकूट में झांसी-माणिकपुर रेलवे लाइन पर स्थित हे। यहा पर देवी माता का दायां वक्ष (स्तन) गिरा था। इस स्थान पर शक्ति के रूप में शिवानी और भैरव चंड है।

32) उमा शक्तिपीठ
उमा शक्तिपीठ उत्तर प्रदेश के वृंदावन में स्थित है। यहा पर केश गुच्छ/ चूड़ामणि गिरे थी। इस शक्तिपीठ में उमा शक्ति स्वरुप और भैरव भूतेश है।

33) शुचि-नारायणी शक्तिपीठ
शुचि-नारायणी शक्तिपीठ तमिल नाडु के कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर विराजमान है। यह माता सती की ऊपरी दाड़ गिरी थी। यहा शक्ति नारायणी और भैरव संहार है।

34) पंच सागर
पंच सागर शक्तिपीठ उत्तर प्रदेश के वाराणसी माँ वराही है। यहा पर माता सती के निचला दाड़ गिरा था। इस जगह पर शक्ति वाराही और भैरव महारुद्र है।

35) अपर्णा शक्तिपीठ
अपर्णा शक्तिपीठ शक्तिपीठ बांग्लादेश के भवानीपुर गांव से 28 कि॰मी॰ दूर सदानीरा नदी के तट पर स्थित है। यहा पर देवी सती का बायां पायल गिरा था। यहा शक्ति अर्पण और भैरव वामन है।

36) श्री सुंदरी शक्तिपीठ
श्री सुंदरी शक्तिपीठ आंध्र प्रदेश के कुर्नूल जिला में स्थित है। (अन्य मान्यता:श्री पर्वत, लद्दाख, कश्मीर) यहा देवी सती का दायां पायल गिरा था। यहा शक्ति श्री सुंदरी और भैरव सुंदरानंद है।

37) विभाष शक्तिपीठ
विभाष शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर जिले में तामलुक में स्थित है। यहाँ पर देवी माता की बायीं एड़ी गिरी थी। यहाँ शक्ति कपालिनी और भैरव शिवानन्द कहते है।

38) चंद्रभागा शक्तिपीठ
चंद्रभागा शक्ति पीठ गुजरात के गिर सोमनाथ जिले में वेरावल सोमनाथ मंदिर के निकट स्थित है। यहां माता सती आमाशय (उदर) गिरा था। यहां शक्ति के रूप में चंद्रभागा और भैरव वक्रतुंड है।

39) अवंती शक्तिपीठ
मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित क्षिप्रा नदी तट पर भैरवपर्वत में अवंती शक्तिपीठ है। यहां पर देवी सती का ऊपरी ओष्ठ गिरा था। यहा शक्ति अवंति और भैरव लंबकर्ण है।

40) जनस्थान शक्तिपीठ
जनस्थान शक्तिपीठ महाराष्ट्र के नासिक गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। यहा पर माता सती की ठोड़ी गिरी थी। यहा शक्ति के रूप में भ्रामरी हे और भैरव के रूप में विकृताक्ष है।

41) सर्वेशेल शक्तिपीठ
सर्वेशेल शक्तिपीठ आंध्र प्रदेश के राजमहेंद्री गोदावरी नदी तीरे स्थित है। यहा देवी सती का गला गिरा था। यहा शक्ति विश्वेश्वरी और भैरव दंडपाणि है।

42) अंबिका शक्तिपीठ
अंबिका शक्तिपीठ राजस्थान के भारत पुर निकट स्थित है। यहां माता सती के बायें पैर की अंगुली गिरी थी।

43) रत्नावली शक्तिपीठ
रत्नावली शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के गुहली जिले में रत्नाकर नदी के तट स्थित है। यहा देवी सती का दायां स्कंध गिरा था। यहा शक्ति कुमारी और भैरव शिवा है।

44) मिथिला
मिथिला शक्तिपीठ भारत-नेपाल बॉर्डर पर मिथिला में स्थित है। इस जगह पर माता सती का बायां स्कंध गिरा था। यहा शक्ति को उमा और भैरव को महोदर कहते है।

45) कालिका शक्तिपीठ
कालिका शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला में नलहाटी में स्थित है। यह जगह पर देवी सती के पैर की हड्डी गिरी थी। यहां शक्ति को कलिका देवी और भैरव को योगेश कहते है।

46) जयदुर्गा
हिमाचल प्रदेश के कर्नाट में स्थित है। यहा देवी माता के दोनों कान गिरे थे। यहां शक्ति जयदुर्गा और अभिरु भैरव है।

47) महिषमर्दिनी शक्तिपीठ
महिषमर्दिनी शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला के वक्रेश्वर में स्थित है। इस जगह माता का भ्रूमध्य (मन:) गिरा था। यहां शक्ति को महिषमर्दिनी और भैरव को वक्रनाथ कहते है।

48) यशोरेश्वरी
यशोरेश्वरी शक्तिपीठ बांग्लादेश के खुलना जिला के ईश्वरीपुर में स्थित है। इस जगह माता सती के हाथ एवं पैर गिरे थे। यहां शक्ति यशोरेश्वरी और भैरव चंद्र है।

49) अट्टाहास शक्तिपीठ
अट्टाहास शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला के अट्टहास में स्थित है और यहां देवी माता का ओष्ठ गिरा था। यहा शक्ति को फुल्लरा और भैरव को विश्वेश कहते है।

50) नंदीपुर शक्तिपीठ
नंदीपुर शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के सैंथिया में बरगद के वृक्ष के निकट स्थित है। इस जगह देवी सती के गले का हार गिरा था। यह शक्ति नंदिनी और भैरव नंदिकेश्वर है।

51) इन्द्राक्षी शक्तिपीठ
इन्द्राक्षी शक्तिपीठ श्री लंका (स्थान अज्ञात) में स्थित हे। यहां पर देवी सती की पायल गिरी थी। यहा शक्ति को इंद्रक्षी और भैरव को राक्षसेश्वर कहते है।

 

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