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Garga Samhita श्री गर्ग संहिता

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Garga Samhita श्री गर्ग संहिता

श्री गर्ग संहिता (Garga Samhita) हिंदू धर्म में एक पवित्र ग्रंथ है, जो विशेष रूप से पौराणिक शैली से संबंधित है। इसका श्रेय ऋषि गर्ग को दिया जाता है, जो हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रतिष्ठित ऋषि थे और ज्योतिष, खगोल विज्ञान और वेदों के गहन ज्ञान के लिए जाने जाते थे।

श्री गर्ग संहिता (Garga Samhita) मुख्य रूप से भगवान कृष्ण के जीवन और लीलाओं पर केंद्रित है, जो हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं और महाकाव्य महाभारत में एक अधिपति हैं। इसमें कृष्ण के बचपन, युवावस्था और वयस्क जीवन से संबंधित संवाद और प्रवचन और विभिन्न कहानियाँ, शिक्षाएँ शामिल हैं, जो भक्तों को उनके दिव्य स्वभाव और शिक्षाओं के बारे में गहन जानकारी प्रदान करती हैं। श्री गर्ग संहिता में कृष्ण की लीलाओं का व्यापक वर्णन मुख्य है, जिसमें उनके बचपन के कारनामे, भक्तों के साथ बातचीत, और राधा और गोपियों के साथ वृन्दावन में दिव्य रासलीला (लीला) शामिल हैं।

यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ सूर्य सिद्धांत हिंदी में

कई पौराणिक ग्रंथों की तरह, गर्ग संहिता (Garga Samhita) में भक्ति का स्वर है और इसे भक्ति (भक्ति) परंपरा के अनुयायियों द्वारा पवित्र माना जाता है। यह भगवान कृष्ण के प्रति भक्तों के प्रेम और भक्ति पर जोर देता है। गर्ग संहिता की विभिन्न पांडुलिपियाँ और संस्करण मौजूद हैं, और उनमें सामग्री में कुछ भिन्नताएँ हो सकती हैं। यह पाठ संस्कृत में लिखा गया है, और वर्षों से विभिन्न भाषाओं में अनुवाद का प्रयास किया गया है।

श्री गर्ग संहिता (Garga Samhita) को विभिन्न खंडों या अध्यायों में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रत्येक कृष्ण के जीवन और शिक्षाओं के विभिन्न पहलुओं से संबंधित है। यह हिंदू धर्म के भीतर विष्णु परंपरा के अनुयायियों, वैष्णवों द्वारा पूजनीय है, और अक्सर भारत और उसके बाहर के मंदिरों और घरों में इसका पाठ, अध्ययन और सम्मान किया जाता है।

यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ गीतावली हिंदी में

श्रीगर्ग संहिता (Garga Samhita) यदुकुलके महान् आचार्य महामुनि श्रीगर्गकी रचना है। यह सारी संहिता अत्यन्त मधुर श्रीकृष्णलीला से परिपूर्ण है। श्रीराधाकी दिव्य माधुर्यभावमिश्रित लीलाओंका इसमें विशद वर्णन है। श्रीमद्भागवत में जो कुछ सूत्ररूपमें कहा गया है, गर्ग संहितायें वही विशद वृत्तिरूपमें वर्णित है। एक प्रकारसे यह श्रीमद्भागवतोक्त श्रीकृष्णलीलाका महाभाष्य है। श्रीमद्भागवतमें भगवान् श्रीकृष्णकी पूर्णताके सम्बन्धमें महर्षि व्यासने ‘कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्’ – इतना ही कहा है, महामुनि गर्गाचार्यने –(Garga Samhita)

यस्मिन् सर्वाणि तेजांसि विलीयन्ते स्वतेजसि ।
तं वदन्ति परे साक्षात् परिपूर्णतमं स्वयम् ।।
– कहकर श्रीकृष्णमें समस्त भागवत-तेजोंके प्रवेशका वर्णन करके श्रीकृष्णकी परिपूर्णतमताका वर्णन किया है।

श्रीकृष्ण की मधुरलीला की रचना हुई है दिव्य ‘रस’के द्वारा; उस रसका रासमें प्रकाश हुआ है। श्रीमद्भागवत में उस रासके केवल एक बारका वर्णन पाँच अध्यायोंमें किया गया है; किंतु इस गर्ग-संहितामें वृन्दावनखण्डमें, अश्वमेधखण्डके प्रभासमिलनके समय और उसी अश्वमेधखण्डके दिग्विजयके अनन्तर लौटते समय-यों तीन बार कई अध्यायोंमें उसका बड़ा सुन्दर वर्णन है। परम प्रेमस्वरूपा, श्रीकृष्णसे नित्य अभिन्नस्वरूपा शक्ति श्रीराधाजीके दिव्य आकर्षणसे श्रीमथुरानाथ एवं श्रीद्वारकाधीश श्रीकृष्णने बार-बार गोकुलमें पधारकर नित्यरासेश्वरी, नित्यनिकुञ्जेश्वरीके साथ महारासकी दिव्य लीला की है- इसका विशद वर्णन है। इसके माधुर्यखण्डमें विभिन्न गोपियोंके पूर्वजन्मोंका बड़ा ही सुन्दर वर्णन है। और भी बहुत-सी नयी-नयी कथाएँ हैं।(Garga Samhita)

यह संहिता भक्त-भावुकोंके लिये परम समादरकी वस्तु है; क्योंकि इसमें श्रीमद्भागवतके गूढ तत्त्वोंका स्पष्ट रूपमें उल्लेख है। आशा है ‘कल्याण’ के पाठकगण इससे विशेष लाभ उठायेंगे।

श्री गर्ग-संहिता

।। श्रीहरिः ॥

ॐ दामोदर हृषीकेश वासुदेव नमोऽस्तु ते

“श्री गोविंद स्तोत्रम” भगवान कृष्ण के गुणों और दिव्य गुणों की प्रशंसा करने वाली एक भक्ति रचना है। यह भगवान कृष्ण को समर्पित एक विशिष्ट भजन है, श्री कृष्ण को गोविंदा के नाम से भी जाना जाता है। श्री गोविंद स्तोत्रम पाठ अक्सर भक्त पूजा या ध्यान के दौरान परमात्मा से जुड़ने के लिए ऐसे स्तोत्र का पाठ करते हैं।

यहां पढ़िए श्रीगोविन्दस्तोत्रम्
गर्ग ऋषि द्वारा रचित श्री गर्ग संहिता में गोलोकखण्ड के प्रथम अध्याय में शौनक-गर्ग-संवादः राजा बहुलाश्वके पूछनेपर नारदजीके द्वारा अवतार-भेदका निरूपण किया गया है। दूसरे अध्याय में ब्रह्मादि देवोंद्वारा गोलोकधाम का दर्शन का वर्णन किया है। तीसरे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण के श्री विग्रह में श्री विष्णु आदिका प्रवेश; देवताओं द्वारा भगवान की स्तुति; भगवान का अवतार लेने का निश्चयः श्रीराधा की चिन्ता और भगवान का उन्हें सान्त्वना-प्रदान कारन है....

यहां पढ़े गर्ग संहिता गोलोक खंड पहले अध्याय से पांचवा अध्याय तक
गर्ग संहिता गोलोक खण्ड अध्याय छ: से अध्याय दस में कालनेमिके अंशसे उत्पन्न कंसके महान् बल-पराक्रम और दिग्विजयका वर्णन, कंसकी दिग्विजय - शम्बर, व्योमासुर, बाणासुर, वत्सासुर, कालयवन तथा देवताओं की पराजय वर्णन, सुचन्द्र और कलावतीके पूर्व-पुण्यका वर्णन...

यहां पढ़े गर्ग संहिता गोलोक खण्ड अध्याय छ: से अध्याय दस तक
श्री गर्ग संहिता में गोलोकखण्ड के ग्यारहवाँ अध्याय में भगवान का वसुदेव-देवकी में आवेश; देवताओंद्वारा उनका स्तवन; आविर्भावकाल; अवतार-विग्रह की झाँकी;आदि का वर्णन किया गया हे। बारहवाँ अध्याय में श्रीकृष्ण-जन्मोत्सवकी धूम; गोप-गोपियोंका उपायन लेकर....

यहां पढ़े गर्ग संहिता गोलोक खण्ड ग्यारहवाँ अध्याय से पंद्रहवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में गोलोक खण्ड के सोलहवें अध्याय में भाण्डीर-वनमें नन्दजीके द्वारा श्रीराधाजीकी स्तुति; श्रीराधा और श्रीकृष्णका ब्रह्माजीके द्वारा विवाह ब्रह्माजीके द्वारा श्रीकृष्णका स्तवन तथा नव-दम्पतिकी मधुर लीलाओ का वर्णन है। सत्रहवाँ अध्याय में श्रीकृष्णकी बाल-लीलामें दधि-चोरीका वर्णन, अठारहवाँ अध्याय में नन्द, उपनन्द और...

यहां पढ़े गर्ग संहिता गोलोक खण्ड सोलहवाँ अध्याय से बीसवाँ अध्याय
श्री गर्ग संहिता में वृन्दावनखण्ड के प्रथम अध्याय में सन्नन्दका गोपोंको महावनसे वृन्दावनमें चलनेकी सम्मति देना और व्रजमण्डलके सर्वाधिक माहात्यका वर्णन कहा गया है। दूसरे अध्याय में गिरिराज गोवर्धन की उत्पत्ति तथा उसका व्रजमण्डल में आगमन हुआ है।

यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता वृन्दावनखण्ड पहले अध्याय से पांचवे अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में वृन्दावनखण्ड के अध्याय छः में अघासुर का उद्धार और उसके पूर्व जन्म का परिचय दिया गया है। अध्याय सात में ब्रह्माजी के द्वारा गौओं, गोवत्सों एवं गोप-बालकों का हरण का वर्णन किया है। अध्याय आठ में ब्रह्माजी के द्वारा भगवान श्री कृष्ण के सर्वव्यापी विश्वात्मा स्वरूप का दर्शन वर्णन है।

यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता वृन्दावनखण्ड अध्याय छः अध्याय दस तक
श्री गर्ग संहिता में वृन्दावनखण्ड के ग्यारहवां अध्याय से पंद्रहवाँ अध्याय (Vrindavan Khand Chapter 11 to 15) में धेनुकासुरका उद्धार, श्री कृष्ण द्वारा कालिया दमन तथा दावानल-पान का वर्णन, मुनिवर वेदशिरा और अश्वशिराका परस्पर के शाप से क्रमशः कालियनाग और काकभुशुण्ड होना तथा शेषनाग का भूमण्डल को धारण...

यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता वृन्दावनखण्ड ग्यारहवां अध्याय से पंद्रहवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में वृन्दावनखण्ड के सोलहवें अध्याय से बीसवां अध्याय में तुलसीका माहात्म्य, श्रीराधाद्वारा तुलसी-सेवन-व्रतका अनुष्ठान तथा दिव्य तुलसीदेवीका प्रत्यक्ष प्रकट हो श्रीराधाको वरदान देना, श्रीकृष्णका गोपदेवीके रूपसे वृषभानु भवनमें जाकर श्रीराधासे मिलना...

यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता वृन्दावनखण्ड के सोलहवें अध्याय से बीसवां अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में वृन्दावनखण्ड के इक्कीसवाँ अध्याय से छब्बीसवां अध्याय में गोपाङ्गनाओ के साथ श्रीकृष्ण का वन-विहार, रास-क्रीड़ा; मानवती गोपियों को छोड़कर श्रीराधा के साथ एकान्त-विहार तथा मानिनी श्रीराधा को भी छोड़कर उनका अन्तर्धान होना...

यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता वृन्दावनखण्ड के इक्कीसवाँ अध्याय से छब्बीसवां तक
श्री गर्ग संहिता के गिरिराजखण्ड पहले अध्याय से पांचवे अध्याय में श्री कृष्ण के द्वारा गोवर्धनपूजन का प्रस्ताव और उसकी विधिका वर्णन, गोपोंद्वारा गिरिराज पूजन का महोत्सव, श्रीकृष्णका गोवर्धन पर्वतको उठाकर इन्द्रके द्वारा क्रोधपूर्वक करायी गयी घोर जलवृष्टि से रक्षा करना...

यहाँ पढ़े श्री गर्ग संहिता के गिरिराजखण्ड पहले अध्याय से पांचवे अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के गिरिराजखण्ड छठे अध्याय से ग्यारहवाँ अध्याय में गोपोंका वृषभानुवरके वैभवकी प्रशंसा करके नन्दनन्दनकी भगवत्ताका परीक्षण करनेके लिये उन्हें प्रेरित करना और वृषभानुवरका कन्याके विवाहके लिये वरको देनेके निमित्त बहुमूल्य एवं बहुसंख्यक मौक्तिक-हार...

यहाँ पढ़े श्री गर्ग संहिता के गिरिराजखण्ड छठे अध्याय से ग्यारहवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के माधुर्यखण्ड पहले अध्याय में श्रुतिरूपा गोपियों का वृत्तान्त, उनका श्रीकृष्ण और दुर्वासामुनिकी बातों में संशय तथा श्रीकृष्णद्वारा उसका निराकरण कहा गया है। दूसरे अध्याय में ऋषिरूपा गोपियों का उपाख्यान- वङ्गदेशके मङ्गल-गोपकी कन्याओं का नन्दराज के व्रजमें आगमन तथा यमुनाजी के तटपर रासमण्डल में प्रवेश वर्णन है।

यहा पढ़े श्री गर्ग संहिता के माधुर्यखण्ड में पहले अध्याय से पाँचवे तक
श्री गर्ग संहिता के माधुर्यखण्ड छठे अध्याय से ग्यारहवाँ अध्याय में अयोध्यापुरवासिनी स्त्रियोंका राजा विमलके यहाँ पुत्रीरूपसे उत्पन्न होना, राजा विमलका संदेश पाकर भगवान् श्रीकृष्णका उन्हें दर्शन और मोक्ष प्रदान करना तथा उनकी राजकुमारियोंको साथ लेकर व्रजमण्डलमें लौटना...

यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता के माधुर्यखण्ड छठे अध्याय से ग्यारहवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के माधुर्यखण्ड बारहवाँ अध्याय से अठारहवाँ अध्याय में दिव्यादिव्य, त्रिगुणवृत्तिमयी भूतल-गोपियोंका वर्णन तथा श्रीराधासहित गोपियों की श्रीकृष्ण के साथ होली का वर्णन, देवियों के रूप में गोपियाँ, कौरव-सेनासे पीड़ित रंगोजि गोपका कंसकी सहायतासे व्रजमण्डलकी सीमापर निवास तथा उसकी पुत्रीरूपमें...

यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता के माधुर्यखण्ड बारहवाँ अध्याय से अठारहवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में माधुर्यखण्ड के अन्तर्गत श्री सौभरि और मांधाता के संवादमें ‘श्री यमुना सहस्रनाम का वर्णन’ कहा गया है। श्री यमुनासहस्रनाम में यमुना के हजार नामों का संग्रह है, जो उनकी महिमा, गुण, और महत्त्व को बताते हैं।...

यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता में माधुर्यखण्ड के उन्नीसवाँ अध्याय श्री यमुना सहस्रनाम
श्री गर्ग संहिता के माधुर्यखण्ड बीसवाँ अध्याय से चौबीसवाँ अध्याय में बलदेवजी के हाथ से प्रलम्बासुर का वध तथा उस के पूर्वजन्म का परिचय, दावानल से गौओं और ग्वालों का छुटकारा तथा विप्रपत्नियों को श्री कृष्ण का दर्शन, श्री कृष्ण का नन्दराज को वरुणलोक से ले आना और गोप-गोपियों को वैकुण्ठधाम का दर्शन कराना...

यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता में माधुर्यखण्ड के बीसवाँ अध्याय से चौबीसवां अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के श्रीमथुराखण्ड पहले अध्याय में कंसका नारदजीके कथनानुसार बलराम और श्रीकृष्णको अपना शत्रु समझकर वसुदेव-देवकीको कैद करना, न दोनों भाइयोंको मारनेकी व्यवस्थामें लगना तथा उन्हें मथुरा ले आनेके लिये अक्रूरजीको नन्दके व्रजमें जानेकी आज्ञा देना कहा गया है।...

यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता में श्रीमथुराखण्ड पहले अध्याय से पाँचवे तक
श्री गर्ग संहिता के श्रीमथुराखण्ड छठे अध्याय में सुदामा माली और कुब्जापर कृपा; धनुर्भङ्ग तथा मथुरा की स्त्रियों पर श्रीकृष्ण के मधुर-मोहन रूप का प्रभाव वर्णन, सातवाँ अध्याय में मल्ल-क्रीड़ा-महोत्सवकी तैयारी; रङ्गद्वारपर कुवलयापीड़का वध तथा श्रीकृष्ण और बलरामका चाणूर और मुष्टिकके साथ मल्लयुद्धमें प्रवृत्त होना।...

यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता में श्रीमथुराखण्ड छठे अध्याय से दसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के श्रीमथुराखण्ड ग्यारहवें अध्याय में कुब्जा और कुवलयापीडके पूर्वजन्मगत वृत्तान्तका वर्णन कहा गया है। बारहवें अध्याय में चाणूर आदि मल्ल, कंसके छोटे भाइयों तथा पञ्चजन दैत्यके पूर्वजन्मगत वृत्तान्तका वर्णन दिया गया है। तेरहवां अध्याय में श्रीकृष्ण की आज्ञा से उद्भव का व्रज में जाना और श्रीदामा आदि...

यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता में श्रीमथुराखण्ड ग्यारहवाँ अध्याय से पंद्रहवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के श्रीमथुराखण्ड सोलहवें अध्याय में उद्धवद्वारा श्रीराधा तथा गोपीजनों को आश्वासन वर्णन दिया गया है। सत्रहवाँ अध्याय में श्रीकृष्ण को स्मरण करके श्रीराधा तथा गोपियोंके करुण उद्गार किया गया है। अठारहवाँ अध्याय में गोपियों के उद्गार तथा उनसे विदा लेकर उद्भव का मथुरा को लौटने का वर्णन...

यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता में श्रीमथुराखण्ड सोलहवें अध्याय सेबीसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के श्रीमथुराखण्ड इक्कीसवाँ अध्याय में श्रीकृष्ण की द्रवरूप ताकि प्रसंग में नारदजी का उपाख्यान दिया गया है। बाईसवाँ अध्याय में नारद का अनेक लोकों में होते हुए गोलोक में पहुँचकर भगवान श्रीकृष्ण के समक्ष अपनी कलाका प्रदर्शन करना तथा श्रीकृष्ण का द्रवरूप होने का वर्णन है।...

यहां पढ़े श्री गर्ग संहिता में श्रीमथुराखण्ड इक्कीसवें अध्याय पच्चीसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के द्वारकाखण्ड पहला अध्याय में जरासंधका विशाल सेनाके साथ मथुरापर आक्रमण; श्रीकृष्ण और बलरामद्वारा उसकी सेनाका संहार; मगधराजकी पराजय तथा श्रीकृष्ण-बलरामका मथुरामें विजयी होकर लौटना। दूसरे अध्याय में मथुरापर जरासंध और कालयवनका आक्रमण; भगवान का युद्ध छोड़कर एक गुफामें जाना और...

यहां पढ़िए गर्ग संहिता में द्वारकाखण्ड पहले अध्याय से पांचवे अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के द्वारकाखण्ड छठे अध्याय में श्री कृष्ण द्वारा रुक्मिणी का अपहरण तथा यादव वीरों के साथ युद्धमें विपक्षी राजाओं की पराजय वर्णन है। सातवें अध्याय में श्री कृष्ण के हाथों से रुक्मीकी पराजय तथा द्वारका में रुक्मिणी और श्रीकृष्ण का विवाह होने का कहा गया है। आठवाँ अध्याय में श्री कृष्ण का सोलह हजार एक सौ आठ रानियों के साथ विवाह...

यहां पढ़िए गर्ग संहिता में द्वारकाखण्ड छठे अध्याय से दसवें अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के द्वारकाखण्ड ग्यारहवाँ अध्याय में गज और ग्राह बने हुए मन्त्रियों का युद्ध और भगवान विष्णु के द्वारा उनका उद्धार करना। बारहवाँ अध्याय में महामुनि त्रित के शाप से कक्षीवान का शङ्खरूप होकर सरोवर में रहना और श्रीकृष्ण के द्वारा उसका उद्धार होना; शङ्खोद्धार-तीर्थ की महिमा का वर्णन कहा गया है...

यहां पढ़िए गर्ग संहिता में द्वारकाखण्ड ग्यारहवें अध्याय से पंद्रहवां अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता के द्वारकाखण्ड सोलहवाँ अध्याय में सिद्धाश्रम की महिमा के प्रसङ्ग में श्रीराधा और गोपाङ्गनाओं के साथ श्रीकृष्ण और उनकी सोलह हजार रानियों का समागम वर्णन है। सत्रहवाँ अध्याय में सिद्धाश्रम में श्रीराधा और श्रीकृष्ण का मिलन; श्रीकृष्ण की रानियों का श्रीराधा को अपने शिविर में बुलाकर उनका सत्कार करना तथा...

यहां पढ़िए गर्ग संहिता में द्वारकाखण्ड सोलहवें अध्याय से बाईसवां अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड के पहला अध्याय में राजा मरुत्तका उपाख्यान कहा गया है। दूसरे अध्याय में राजा उग्रसेनके राजसूय यज्ञका उपक्रम; प्रद्युम्नका दिग्विजयके लिये बीड़ा उठाना और उनका विजयाभिषेक कहा गया है। तीसरे अध्याय में प्रद्युम्नके नेतृत्वमें दिग्विजयके लिये प्रस्थित हुई यादवोंकी गजसेना...

यहां पढ़िए गर्ग संहिता विश्वजीतखण्ड पहले अध्याय से पांचवे अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड के छठे अध्याय में प्रद्युम्न का मरुधन्व देश के राजा गयको हराकर मालवनरेश तथा माहिष्मती पुरी के राजा से बिना युद्ध किये ही भेंट प्राप्त करने का वर्णन है। सातवें अध्याय में गुजरात नरेश ऋष्यपर विजय प्राप्त करके यादव सेना का चेदिदेश के स्वामी दमघोष के यहाँ जाना; राजाका यादवों से...

यहां पढ़िए गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड छठे अध्याय से दसवें अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड के ग्यारहवाँ अध्याय में दन्तवक्र की पराजय तथा करूष देश पर यादव सेना का विजय वर्णन है। बारहवाँ अध्याय में उशीनर आदि देशोंपर प्रद्युम्नकी विजय तथा उनकी जिज्ञासापर मुनिवर अगस्त्यद्वारा तत्त्वज्ञानका प्रतिपादन कहा गया है। तेरहवाँ अध्याय में शाल्व आदि देशों तथा द्विविद वानरपर...

यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड ग्यारहवें अध्याय से पंद्रहवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड के सोलहवाँ अध्याय में मिथिला के राजा धृतिद्वारा ब्रह्मचारी के रूप में पधारे हुए प्रद्युम्न का पूजन; उन दोनों का शुभ संवाद; प्रद्युम्न का राजा को प्रत्यक्ष दर्शन दे, उनसे पूजित हो शिविर में जाने का वर्णन कहा गया है। सत्रहवाँ अध्याय में मगध देश पर यादवों की विजय तथा मगधराज जरासंध की पराजय...

यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड सोलहवें अध्याय से बीसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड के इक्कीसवाँ अध्याय में कौरव तथा यादव वीरों का घमासान युद्ध; बलराम और श्रीकृष्ण का प्रकट होकर उनमें मेल कराने का वर्णन है। बाईसवाँ अध्याय में अर्जुनसहित प्रद्युम्न का कालयवन पुत्र चण्ड को जीतकर भारतवर्ष के बाहर पूर्वोत्तर दिशा की ओर प्रस्थान करने का वर्णन कहा गया है। तेईसवाँ अध्याय में यादव सेना का बाणासुर...

यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड इक्कीसवें अध्याय से पचीसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड के छब्बीसवाँ अध्याय में किम्पुरुषवर्ष के रङ्गवल्लीपुर में किम्पुरुषों द्वारा हरि चरित्र का गान; वहाँ के राजा द्वारा भेंट पाकर यादव-सेनाका आगे जाना; मार्ग में अजगर रूप धारी शापभ्रष्ट गन्धर्व का उद्धार; वसन्ततिलका पुरीके राजा शृङ्गार-तिलक को पराजित करके प्रद्युम्न का हरिवर्ष के लिये...

यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड छब्बीसवें अध्याय से तीसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड के इकतीसवाँ अध्याय में रम्यकवर्ष में मन्मथशालिनी पुरी के लोगों द्वारा श्री कृष्णलीला का गान; प्रजापति व्यति संवत्सर द्वारा प्रद्युम्न का पूजन; कामवन में प्रद्युम्न का अपने कामदेव स्वरूप में विलय होने का वर्णन किया गया है। बत्तीसवाँ अध्याय में भद्राश्ववर्षमें भद्रश्रवाके द्वारा प्रद्युम्नका पूजन...

यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड इकतीसवें अध्याय से पैंतीसवाँ अध्याय तक
श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड के छत्तीसवाँ अध्याय में दीप्तिमान्द्वारा महानाभ का वध वर्णन है। सैंतीसवाँ अध्याय में श्रीकृष्ण पुत्र भानु के हाथ से हरिश्मश्रु दैत्य का वध कहा गया है। अड़तीसवाँ अध्याय में प्रद्युम्न और शकुनि के घोर युद्ध का वर्णन है। उनतालीसवाँ अध्याय में शकुनि के मायामय अस्त्रों का प्रद्युम्न द्वारा निवारण तथा उनके...

यहां पढ़िए श्री गर्ग संहिता में विश्वजीतखण्ड छत्तीसवें अध्याय से चालीसवाँ अध्याय तक
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2 thoughts on “Garga Samhita श्री गर्ग संहिता

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      Madhurya kand ke baad ke adhyay kahan hai

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        मैं थोड़ा-थोड़ा करके संपूर्ण श्री गर्ग संहिता जोड़ने जा रहा हूं।
        माधुर्य खंड के बाद कुछ समय बाद अध्याय जोड़े जायेंगे।

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